बीते सोमवार चीनी सैनिकों के साथ हिंसक झड़प में भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हो गए. वहीं 47 चीनी सैनिक भी मारे गए हैं. यह झड़प दोनों देशों के बीच व्याप्त तनाव को और बढ़ा सकती है. यह झड़प गलवन क्षेत्र में हुई. 1962 के बाद यह पहली बार है जब इस क्षेत्र में तनाव पैदा हुआ है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह वो इलाका है जहां पर वास्तविक नियंत्रण रेखा स्पष्ट रूप से परिभाषित है और दोनों ही देशों ने इसे स्वीकार भी किया है. हालांकि चीन का इस क्षेत्र में दखल बताता है कि वो अपनी आक्रामक विस्तारवादी नीति को एक बार फिर सामने रखकर आगे बढ़ रहा है. यह क्षेत्र भारत के लिए विभिन्न दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है. ऐसे में जानते हैं कि क्यों चीन इस इलाके को कब्जा करने की कोशिशों में जुटा है.
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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि चीन और भारत के बीच यह 44 सालों में पहली घटना है. 1975 में भारत-चीन सीमा पर एक कार्रवाई के दौरान कुछ सैनिक शहीद हो गए थे. इससे पहले दोनों देशों के बीच 1967 में गोलीबारी हुई थी. इसके पीछे भी अलग-अलग कारण बताए जाते हैं, लेकिन मुख्य कारण चीन की विस्तारवादी नीति को माना जाता है. चीन सिक्किम से भारतीय सेना की वापसी पर जोर दे रहा था. इसी बीच भारतीय इंजीनियरों और जवानों ने सेना पर बाड़ लगाने का काम शुरू किया. चीन पहले से ही सीमा पर खाई खोद रहा था.
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इसके अलावा 11 सितंबर को चीन ने हाथापाई शुरू कर दी. इसके नाथूला में गोलीबारी शुरू हुई और 14 सितंबर को युद्ध विराम हुआ. दो दिनों शवों का आदान प्रदान हुआ. एक अक्टूबर को चोला में फिर गोलीबारी हुई और दोनों पक्षों को नुकसान हुआ. इन घटनाओं में भारत के 80 से अधिक सैनिक शहीद हुए और करीब 300 से 400 चीनी सैनिक मारे गए. वहीं 1975 की घटना को आकस्मिक माना जाता है, जिसमें घने कोहरे में चार भारतीय सैनिक चीनी सैनिकों की गोलीबारी में मारे गए. यह भी कहा जाता है कि भारतीय सैनिकों पर घात लगाकर हमला किया गया था.
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