नई दिल्ली: आज 16 दिसंबर 2024 को भारत पूरे गर्व और सम्मान के साथ विजय दिवस मना रहा है। यह दिन उन बहादुर सैनिकों की याद में मनाया जाता है, जिन्होंने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अपनी जान की परवाह किए बिना देश का मान बढ़ाया और बांग्लादेश को स्वतंत्रता दिलाने में अहम भूमिका निभाई। इस खास मौके पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन शूरवीरों को श्रद्धांजलि प्रदान की, जिनकी कुर्बानी से यह ऐतिहासिक जीत मुमकिन हो सकी।
1971 में उस वक्त पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना ने आम नागरिकों पर जो जुल्म ढाए, वह इतिहास का एक काला अध्याय है। भारत ने इस संकट में दखल देकर बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन किया। 16 दिसंबर का वह दिन, जब पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण किया, भारतीय इतिहास में सदा के लिए दर्ज हो गया। पाकिस्तानी जनरल ए.ए.के. नियाज़ी ने करीब 93,000 सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण किया, ये दुनिया का सबसे बड़ा किया गया सरेंडर था। यह संख्या अपने आप में बताती है कि भारतीय सेना ने कैसे न सिर्फ युद्ध जीता, बल्कि आजादी की एक पूरी नई इबारत लिख दी। लेकिन इस जीत की कीमत भी बड़ी थी। लगभग 3,900 भारतीय सैनिक इस युद्ध में शहीद हुए, और कई अन्य घायल हुए।
इस युद्ध में भारतीय वायु सेना ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारतीय वायु सेना के साहसी पायलटों ने पश्चिमी और पूर्वी मोर्चों पर 4,400 से ज्यादा मिशन पूरे किए। यही वजह है कि दुश्मन सेना का मनोबल टूट गया। एक बार जनरल नियाज़ी से पूछा गया कि इतनी बड़ी सेना होने के बावजूद उन्होंने आत्मसमर्पण क्यों किया। उन्होंने भारतीय वायु सेना के प्रतीक की ओर इशारा करते हुए कहा, "इसके कारण - भारतीय वायु सेना।"
प्रधानमंत्री मोदी ने इस मौके पर अपने संदेश में कहा, "विजय दिवस सिर्फ एक दिन नहीं है। यह हमारे सैनिकों के बलिदान और साहस की गवाही है। उनका समर्पण हमें हमेशा प्रेरित करता रहेगा।" रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी शहीदों को नमन करते हुए कहा, "हमारे सैनिकों की वीरता और बलिदान ने न केवल देश की सुरक्षा सुनिश्चित की, बल्कि भारत को दुनिया में सम्मान दिलाया।" राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस दिन को उन वीर सपूतों के नाम किया, जिनके साहस ने भारतीय इतिहास को गौरवशाली बनाया। उन्होंने कहा, "उनकी कहानियां आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी।"