नई दिल्ली: पीएम नरेंद्र मोदी की दो दिवसीय रूस यात्रा के चलते, नई दिल्ली और मॉस्को ने व्यापार, ऊर्जा, जलवायु और अनुसंधान सहित विभिन्न क्षेत्रों में 9 समझौतों पर हस्ताक्षर किए। इस के चलते, दोनों देशों ने कई अहम परियोजनाओं पर सहमति व्यक्त की, जिसमें रूस के सहयोग से भारत में 6 नए परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण की योजना सम्मिलित है। रूस की परमाणु ऊर्जा एजेंसी रोसाटॉम (Rosatom) इन संयंत्रों के निर्माण में भारत की सहायता करेगी। गौरतलब है कि रोसाटॉम पहले भी कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र (KKNPP) की स्थापना में भारत की मदद कर चुकी है।
अपनी यात्रा के चलते, पीएम मोदी ने क्रेमलिन में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की। दोनों नेताओं ने चाय पर चर्चा की तथा बाद में द्विपक्षीय वार्ता की, जिसमें रोसाटॉम ने 6 नए परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण के लिए भारत को सहायता की पेशकश की। इसके अतिरिक्त, रूसी प्रत्यक्ष निवेश कोष ने फार्मा, जहाज निर्माण और शिक्षा क्षेत्र में भारत के साथ समझौतों पर हस्ताक्षर किए। रूस के दूसरे सबसे बड़े बैंक ने व्यापार बढ़ाने के लिए पेमेंट फ्लो को आसान बनाने के प्रयासों पर चर्चा की।
रोसाटॉम ने एक बयान में कहा कि भारत के साथ सहयोग के नए क्षेत्रों पर चर्चा की जा रही है, जिसमें एक नई साइट पर रूसी डिजाइन की 6 हाई-पावर न्यूक्लियर यूनिट्स का निर्माण एवं कुछ छोटे परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनाने का भी प्रस्ताव है। इसी वर्ष मई में, रोसाटॉम ने भारत को फ्लोटिंग परमाणु ऊर्जा संयंत्र (FNPP) की तकनीक ऑफर की थी। रूस वर्तमान में दुनिया का एकमात्र देश है जिसके पास पानी पर तैरता हुआ परमाणु ऊर्जा संयंत्र है। इस संयंत्र को एकेडेमिक लोमोनोसोव जहाज (Akademik Lomonosov) पर असेंबल किया गया है, जिससे रूस के पेवेक शहर में बिजली सप्लाई हो रही है।
रोसाटॉम एवं भारत उत्तरी समुद्री मार्ग (Northern Sea Route) की ट्रांजिट क्षमता को विकसित करने पर भी चर्चा कर रहे हैं। यह मार्ग नॉर्वे से अलास्का तक फैला हुआ है एवं रूस को उम्मीद है कि इसके माध्यम से 2030 तक 150 मिलियन मीट्रिक टन का परिवहन किया जा सकेगा, जो इस वर्ष 80 मिलियन मीट्रिक टन रहा है। कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र (KKNPP) भारत का सबसे बड़ा न्यूक्लियर पावर स्टेशन है, जो तमिलनाडु के तिरुनेलवेली जिले में स्थित है। भारत और रूस के बीच हुए समझौते के तहत इस संयंत्र की पहली दो इकाइयों का निर्माण 2002 में आरम्भ हुआ था, लेकिन स्थानीय विरोध के कारण इसे देरी का सामना करना पड़ा। इस संयंत्र में रूसी द्वारा डिजाइन किए गए VVER-1000 रिएक्टरों का उपयोग होता है और इसकी योजना 6,000 मेगावाट बिजली उत्पन्न करने की है।
यूनिट 1 को 2013 में और यूनिट 2 को 2016 में पावर ग्रिड के साथ सिंक्रनाइज किया गया। यूनिट 3 और 4 का निर्माण कार्य जारी है। कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र का विरोध भी हुआ था, खासकर 2011 में जापान के फुकुशिमा दाइची परमाणु दुर्घटना के बाद। स्थानीय लोगों ने संयंत्र के खिलाफ प्रदर्शन किया और सुरक्षा चिंताओं को उठाया। हालांकि, 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने कुडनकुलम न्यूक्लियर पावर प्रोजेक्ट को जनहित में मान्यता दी और इसके निर्माण की अनुमति दी।
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