भारतीय तीरंदाजों का कमाल, खेल में जीता एक गोल्ड समेत सात मेडल

भारतीय तीरंदाजों का कमाल, खेल में जीता एक गोल्ड समेत सात मेडल
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भारत के जाने माने तीरंदाजों ने  कुछ प्रतियोगिताओं में शानदार प्रदर्शन पर वर्ष 2019 में राष्ट्रीय महासंघ का निलंबन और गुटबाजी हावी रही और अब जबकि टोक्यो ओलंपिक में कुछ महीनों का समय बचा है तब भी हालात सुधरने के बजाय बिगड़ते जा रहे हैं. भारतीय तीरंदाजी को अगस्त में करारा झटका लगा जब विश्व तीरंदाजी ने भारतीय तीरंदाजी संघ (एएआई) को निलंबित कर दिया था. विश्व संस्था ने यह फैसला दो गुटों द्वारा दिल्ली और चंडीगढ़ में समानांतर चुनाव कराने के कारण लिया क्योंकि यह उसके दिशानिर्देशों के खिलाफ है.

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस निलंबन के कारण बैंकॉक एशियाई चैंपियनशिप में एक गोल्ड, दो सिल्वर और चार ब्रॉन्ज मेडल जीतकर शानदार प्रदर्शन करने वाले तीरंदाजों पर किसी का ध्यान नहीं गया और उन्हें विश्व तीरंदाजी के ध्वज तले तटस्थ तीरंदाज के रूप में भाग लेने पर मजबूर होना पड़ा. भारतीयों ने एशिया में कोरिया के बाद खुद को दूसरा मजबूत प्रतिस्पर्धी साबित किया. अभिषेक वर्मा और ज्योति सुरेखा ने कंपाउंड मिश्रित युगल का स्वर्ण जीतकर कोरिया को क्लीन स्वीप करने से रोक दिया था, लेकिन जब वे पोडियम पर पहुंचे तो न तो राष्ट्रगान बजा और ना ही तिरंगा लहराया और इन खिलाड़ियों को ‘ओलंपिक एथलीट’ के तौर पर संबोधित किया जाना आवश्यक है.

वहीं जब इस बारे में वर्मा से बात हुई तो उन्होंने जीत के बाद कहा, ‘यह बहुत बुरा अहसास था और इससे यहां तक कि हमारे प्रतिस्पर्धी भी हैरान था. हम कुछ नहीं कर सकते. मेरा सभी से आग्रह है कि वह इस गुटबाजी को छोड़ें क्योंकि इसका खामियाजा हम तीरंदाजों को भुगतना पड़ रहा है.’ असल में भारतीयों को बैंकॉक में खेलने की अनुमति केवल इसलिए मिली क्योंकि यह महाद्वीपीय ओलिंपिक क्वॉलिफायर था जिसमें दीपिका कुमारी ने तोक्यो ओलिंपिक के लिए कोटा हासिल किया. निलंबन के कारण भारत को नेपाल में दक्षिण एशियाई खेलों में भी प्रवेश नहीं मिला जिसका फायदा उठाकर बांग्लादेश ने दांव पर लगे सभी दस स्वर्ण पदक जीते.

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