शुक्रवार को सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने कहा कि सशस्त्र बल मानवाधिकार कानूनों का अत्यधिक सम्मान करते हैं. वे न केवल देशवासियों के मानवाधिकारों की रक्षा करते हैं बल्कि दुश्मनों के अधिकारों की रक्षा करते हैं. जनरल रावत मानव अधिकार भवन में ‘युद्धकाल और युद्धबंदियों के मानवाधिकारों का संरक्षण’ विषय पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के प्रशिक्षुओं और वरिष्ठ अधिकारियों को संबोधित कर रहे थे.
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मीडिया रिपोर्ट के अनुसार एक बयान में जनरल रावत के हवाले से बताया गया कि भारतीय सशस्त्र बल बेहद अनुशासित हैं और वे मानवाधिकार कानूनों और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों का अत्यधिक सम्मान करते हैं. वे बेहद धर्मनिरपेक्ष हैं. भारतीय सशस्त्र बल न केवल अपने लोगों के मानवाधिकारों का संरक्षण सुनिश्चित करते हैं, बल्कि युद्धबंदियों के साथ भी जिनेवा संधि के अनुसार व्यवहार करते हैं.
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इसके अलावा जनरल बिपिन रावत संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों पर टिप्पणी करते हुए गुरुवार को कहा कि यदि नेता हमारे शहरों में आगजनी और हिंसा के लिए विश्वविद्यालयों और कॉलेज के छात्रों सहित जनता को उकसाते हैं, तो यह नेतृत्व नहीं है.सेना प्रमुख ने कहा था कि नेता जनता के बीच से उभरते हैं, नेता ऐसे नहीं होते जो भीड़ को अनुचित दिशा में ले जाएं.’उन्होंने कहा था कि नेता वह होते हैं, जो लोगों को सही दिशा में ले जाते हैं. उनके इस बयान पर विपक्षी नेताओं ने उनकी जमकर आलोचना की और उनके बयान को राजनीति से प्रेरित बताया.
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