इंडियन टीम की जान काहे जाने वाले रमन लाम्बा को तो आप सभी जानते ही होंगे. रमन लाम्बा. 4 टेस्ट और 32 वन डे मैच खेलने वाला इंडियन क्रिकेटर. मेरठ में 2 जनवरी, 1960 को पैदा हुआ. राइट हैण्ड बैट्समैन. और एक फील्डर, जिसके बारे में मशहूर था कि बल्लेबाज के आस-पास खड़े फील्डिंग करते हुए भी वो हेल्मेट नहीं पहनता था. और यही मशहूरियत एक दिन इसे ले डूबी. रमन लाम्बा मज़ाक में कहता था, “मैं ढाका का डॉन हूं.” मैच के दिन बांग्लादेशी लेफ़्ट आर्म स्पिनर सैफ़ुल्ला खान बॉलिंग कर रहा था. ओवर की तीन गेंदें बची थीं. मेहराब हुसैन स्ट्राइक पर. कप्तान ने रमन लाम्बा को फॉरवर्ड शॉर्ट लेग पर बुलाया. यानी बैट्समैन से एक कदम दूर. मोहम्मद अमीनुल इस्लाम कप्तानी कर रहे थे. बांग्लादेश के भी कप्तान थे. अमीनुल ने लाम्बा से हेल्मेट पहनने को कहा. लाम्बा ने कहा कि तीन ही गेंद तो बाकी हैं, खड़े रहने दे.
मोहम्मदन स्पोर्टिंग क्लब के मेहराब हुसैन ने ओवर की चौथी गेंद खेली. पुल मारा. गेंद सीधे रमन लाम्बा के सर पर जा लगी. गेंद इतनी जोर से मारी गयी थी कि सर पर लगने के बाद वो सीधे विकेटकीपर के ग्लव्स में पहुंच गई. कप्तान अमीनुल इस्लाम दौड़ कर लाम्बा के पास पहुंचे. पूछा कि वो ठीक हैं या नहीं. लाम्बा का जवाब था “बुल्ली, मैं तो मर गया यार.” देखने से लाम्बा के सर में लगी चोट इतनी खतरनाक नहीं लग रही थी. मगर उन्हें अस्पताल ले जाया गया. उनके सर के अंदर खून बह रहा था. दिल्ली से एक न्यूरोसर्जन ने भी उड़ान भरी. लेकिन कुछ नहीं किया जा सका. लाम्बा कोमा में चले गए और 23 फरवरी 1998 को उनकी मौत हो गयी.
लाम्बा ने एक बहुत बड़ा सबक दिया. बचाव ज़रूरी है. इलाज़ से भी ज़्यादा. इलाज और बचाव में जब चुनाव की बात आये तो ये भी ज़रूरी है कि बचाव को चुना जाये. इलाज से दूरी ही बेहतर. बाइक लेकर 500 मीटर भी जाना हो तो हेल्मेट पहना जाए. 1 गेंद भी खेलनी हो तो सारे साज-ओ-सामान धारण किये जायें.
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