नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 की वैधता को चुनौती देने वाले अपीलों के एक बैच पर फैसला सुनाएगी. सुप्रीम कोर्ट कल दोनों पक्षों की सुनवाई करते हुए यह विचार करेगी की सामान लिंग में सेक्स करने को अपराध ठहराने वाले इस अधियनियम को लागू रखना है या नहीं. धारा 377 उन महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक है जिनपर मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा उनके सेवानिवृत्त होने से पहले फैसला देने के उम्मीद है, मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा 2 अक्टूबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं.
क्या है धारा 377 ?
यह कानून ब्रिटिश काल 1861 का है जिसके तहत अप्राकृतिक यौन गतिविधियों को अपराध माना जाता है इसके अंतर्गत "जो भी स्वेच्छा से किसी भी पुरुष, महिला या पशु के साथ अप्राकृतिक शारीरिक संभोग करता है, उसे आजीवन कारावास, या दस साल तक की अवधि के लिए कारावास के साथ दंडित किया जा सकता है, साथ ही इस धारा के अंतर्गत अपराधियों पर जुरमाना लगाने का भी प्रावधान है.
अब तक ये हुआ है इस मामले में
इससे पहले जनवरी 2018 में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि न्यायाधीशों का एक बड़ा समूह पिछले निर्णय पर फिर से विचार करेगा और धारा 377 की संवैधानिक वैधता की जांच करेगा. अपने 2013 के फैसले की समीक्षा करते हुए, शीर्ष अदालत ने कहा था कि मुकदमा चलने के डर में रहने वाले पांच लोगों द्वारा दायर याचिका पर भी फैसला किया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने तब भी कहा था "जो लोग अपनी पसंद का प्रयोग करते हैं, उनका वर्ग डर की स्थिति में कभी नहीं रहना चाहिए."
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