देश और प्रदेश भर में सड़कों का जाल बिछाने का दावा करती केंद्र और राज्य सरकार भले ही अपनी पीठ थपथपाने में लगी हो मगर जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर है. हालत ये है कई कई जगत टूटी-फूटी सड़कों के कारण आवागमन दूभर है. तो कही खस्ता हाल सड़क के चलते सफर का समय दोगुना लग रहा है. पुलों और ओवर ब्रिज का तो भगवान् ही मालिक है कि वे कब अपने मलबे के निचे जिंदगिया दबोच लेंगे.
ताज़ा मामले का जिक्र करे तो नेमावर का पुल क्षतिग्रस्त होने के कारण इंदौर बैतूल नेशनल हाईवे बंद हो गया है और पुल पर पड़े बड़े -बड़े गड्डे चीख-चीख कर निर्माण के समय बरती गई गुणवत्ता नीति की दुहाई दे रहे है. साथ ही होने वाली दुर्घटना का अलार्म भी बजा रहे है. फ़िलहाल एतियात के तौर पर आवागमन बंद कर दिया गया है. गौरतलब है कि देश भर के अखबारों में इस तरह की ख़बरें छप रही है जो सिर्फ सुर्खियां मात्र है. इन पर एक्शन के नाम पर शून्य ही हासिल है.
हाल हि में वाराणसी में निर्माणाधीन पुल गिरने और उसमे दबकर 18 लोगों के मारे जाने के बाद देशभर में बन रहे या पुराने पुलों और सड़कों को लेकर बहस छिड़ गई थी . बिहार की राजधानी पटना के गांधी सेतु को कभी एशिया में सबसे लंबा सड़क पुल होने का तमगा हासिल था जो आज बस किसी ऐसे ही हादसे का गवाह बनने को खड़ा है. यह पुल पटना से पूरे उत्तर बिहार को जोड़ता है. साढ़े 6 किमी लंबा महात्मा गांधी सेतु 1982 में बना था. तब इस पर महज 81 करोड़ की लागत आई थी. तब यह एशिया का सबसे बड़ा पुल था. पर अब हजारों लोग डर और घंटों जाम के बीच इस पुल से यात्रा कर रहे हैं. साथ हि ये पुल कब किस वक़्त एक बड़े हादसे का गवाह बनेगा कोई नहीं जनता. सरकार के सबसे आला मंत्री का ख़िताब पाने वाले नितिन गडकरी फ़िलहाल इन मुद्दों से दुरी बनायें हुए है.
जिंदगियां मलबे में दबाने को आतुर, पटना का महात्मा गांधी सेतु
वाराणसी: निर्माणाधीन फ्लाईओवर का एक हिस्सा गिरा, 12 से ज्यादा लोगों की मौत