इंदौर : सरकार की भले ही मंशा अच्छी हो , लेकिन यदि उसका क्रियान्वयन अच्छा नहीं है तो योजना सफल नहीं हो सकती.ऐसा ही हुआ म.प्र. की दसवीं की परीक्षा में फेल हुए छात्रों को अवसाद में जाने से रोकने के लिए जोर-शोर से शुरू हुई 'रुक जाना नहीं' योजना के साथ.सरकार की छोटी सी गलती ने हजारों छात्रों के न केवल दो साल बर्बाद कर दिए, बल्कि उनका भविष्य भी रोक दिया.यह योजना छात्रों के लिए मुसीबत का सबब बन गई.
बता दें कि दसवीं की परीक्षा में फेल हुए निराश विद्यार्थियों की आत्महत्या के मामले सामने आने के बाद छात्रों को अवसाद में जाने से रोकने के लिए 'रुक जाना नहीं' योजना शुरू की गई थी.मुख्य परीक्षा में फेल हुए हजारों छात्र इस योजना में राज्य ओपन बोर्ड से दोबारा परीक्षा देकर पास हुए, लेकिन माध्यमिक शिक्षा मंडल उन्हें पास नहीं मान रहा.पहले छात्रों का एक साल बिगड़ा था. योजना में शामिल होने से दूसरा साल भी बिगड़ गया. छात्रों के सामने अगले साल दसवीं की परीक्षा देने के सिवाय कोई रास्ता नहीं बचा है. पिछले साल दसवीं की परीक्षा का परिणाम मई-2016 में आया था. इसमें फेल हुए छात्रों के लिए जुलाई-2016 में 'रुक जाना नहीं" योजना में परीक्षा आयोजित की गई थी. इसका रिजल्ट अगस्त 2016 में आया था.
उल्लेखनीय है कि दसवीं की परीक्षा माध्यमिक शिक्षा मंडल आयोजित करता है, जबकि रुक जाना नहीं योजना में परीक्षा राज्य ओपन बोर्ड ने ली थी. बोर्ड बदलने की स्थिति में सरकार को इस संबंध में आदेश जारी करना होता है, ताकि रिजल्ट लिंक हो सकें.योजना लागू करने के बाद सरकार ऐसा करना ही भूल गई. इसी कारण इस योजना में पास हुए छात्रों को मंडल ने न तो 10वीं पास माना और न एडमिशन मिला. 'रुक जाना नहीं' योजना ने छात्रों का दो साल का भविष्य रोक दिया.
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