जानिए कैसे इंद्रपुरी से इंदूर और इंदूर से बना इंदौर?

जानिए कैसे इंद्रपुरी से इंदूर और इंदूर से बना इंदौर?
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इंदौर: इन दिनों नगरों का जन्मोत्सव गौरव दिवस के तौर पर मनाया जा रहा है। इंदौर का गौरव दिवस 31 मई मतलब की आज इंदौर का गौरव दिवस मनाया जा रहा है। इस शहर में वक़्त के साथ स्वयं में बदलाव किए और अपनी सीमाएं फैलाई। इंदौर पिछले 6 सालों से स्वच्छता के मामले देेशभर में नाम कमा रहा है, किन्तु इंदौर को आधुनिक बनाने के प्रयास 100 वर्ष पहले होलकर राजवंश के समय से आरम्भ हो गए थे। तब शहर में आग बुझाने के लिए विदेशों की भांति व्यवस्था की गई थी। यशवंत सागर तालाब से शहर में आग बुझाने के लिए विशेष लाइनें बिछाई गई थी। शहर के बाजार, उद्योग, बसाहट के लिए 1918 में इंदौर का पहला मास्टर प्लान बनाने के लिए स्काॅटलैंड से सर पेट्रिक गिडिज को बुलाया गया। 10 वीं सदी के तीसरे दशक में मास्टर प्लान के हिसाब से काम हुए। तब शहर की आबादी दो से तीन लाख थी।

मालवा की कुशल शासिका देवी अहिल्याबाई होलकर की जयंती होने के चलते 31 मई को इंदौर के गौरव दिवस के तौर पर चुना गया है। कई तरह के आयोजन हो रहे हैं तथा इंदौर को सजाया भी गया है। आज आपको बताते है कई सौ साल पहले जब इंदौर, इंदौर नहीं था। दरअसल, इंदौर को मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी, मिनी मुंबई तक बोला जाता है। हर तरफ इसका नाम है किन्तु इसका आरम्भ 3 मार्च 1716 को हुआ था जब इंदौर के राजा राव नंदलाल मंडलोई ने मुग़ल बादशाह से फरमान हासिल कर इंदौर को करमुक्त जोन बनाया था। 

पुरातत्व विभाग में उपलब्ध जानकारियों के अनुसार, इंदौर पर आधिपत्य के लिए बंगाल के पाल, मध्य क्षेत्र के प्रतिहार तथा दक्षिण के राजपूतों के बीच आठवीं शताब्दी में त्रिकोणीय संघर्ष हुआ। इसमें कभी पालों का, कभी प्रतिहारों का और कभी राजपूत शासन रहा। आठवीं शताब्दी में राजकोट के राजपूत राजा इंद्र तृतीय त्रिकोणीय संघर्ष में जीते तो इस विजय को यादगार बनाने के लिए उन्होंने यहां पर एक शिवालय की स्थापना की तथा नाम रखा इंद्रेश्वर महादेव। इसी मंदिर की वजह से शहर का नाम इंद्रपुरी हो गया। 18वीं शताब्दी में मराठा शासनकाल में इंद्रपुरी का नाम परिवर्तित कर इंदूर हुआ तथा यही जुबां पर चढ़ा। अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में बिट्रिशों ने इंदूर का नाम इंग्लिश में INDOR किया तथा बाद में बदलकर INDORE कर दिया। इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका में 1715 में इंदौर को मराठा प्रमुखों से कारोबार में रुचि रखने वाले जमींदारों द्वारा बसाया जाना बताया गया है। 1741 में कंपेल के इन्हीं जमींदारों ने इंद्रेश्वर मंदिर बनवाया था, जिसके नाम पर बस्ती का नाम इंद्रपुर, फिर इंदूर व इंडोर तथा आखिर में इंदौर पड़ा।

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