पर्यावरण हमारे आस-पास का वह स्थान है, जिसका हमारे अस्तित्व, जीवन-निर्वाह, विकास आदि पर प्रभाव पड़ता है. सामान्य अर्थों में आप इसे ‘वायुमंडल’ भी कह सकते हैं. हमारा वायुमंडल हमारे लिये प्रकृति का वरदान है. यह हमारा पालनकर्ता और जीवन का आधार है. हमें स्वस्थ और सुखमय रखने का रक्षा कवच है. आप यह सोचकर देखिये कि यदि आपका यह रक्षा कवच ही यदि यह विषाक्त हो जाए तो यह अभिशाप बनकर मानव-जीवन का संहारक बन जाता है. इसलिए पर्यावरण की सुरक्षा का दायित्व हम सबका है.
आजादी से पहले जब बड़े-बड़े उद्दोगों का विस्तार नहीं हुआ था, हमारा पर्यावरण बिलकुल शुद्ध था. शुद्ध वायु हमारा आलिंगन करती थी. शुद्ध जल हमारा अभिषेक करता था. उर्वर भूमि हमें स्वास्थ्यप्रद अन्न प्रदान करती थी. तब न अधिक बीमारियां थी और न ही अधिक तनाव, हर इंसान लगभग पूरी उम्र भोगता था और स्वच्छ वातावरण में स्वस्थ रहता था. ये वो समय था जब हम प्रकृति से जुड़े हुए थे.
लेकिन जैसे-जैसे हमने प्रकृति से दूर होना शुरू किया, हम जीवन के आनंद से भी दूर होते चले गए. बड़े-बड़े कारखाने बनवाने के लिए हमने वन नष्ट कर दिए और अब उस प्राकृतिक शुद्ध हवा की जगह चिमनियों का धुआं जब हमारे फेफड़ों में जाता है, तो हमे पर्यावरण याद आता है और हम निकल जाते हैं पर्यावरण दिवस पर एक पौधा हाथ में लेकर, ये सोचकर कि हमने हमारा कर्त्तव्य निभा दिया है. लेकिन सिर्फ इससे हमारे पाप नहीं धुलने वाले, आज प्रकृति इतनी रुष्ट है कि जगह-जगह प्राकृतिक आपदाएं जनजीवन को तहस-नहस कर रही है. अगर हम अब भी ना जागे तो हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए क्या छोड़ कर जाएंगे ?
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