'निर्दोष पति और परिवार ना फंसे…', दहेज उत्पीड़न के मामले पर सुप्रीम कोर्ट सख्त

'निर्दोष पति और परिवार ना फंसे…', दहेज उत्पीड़न के मामले पर सुप्रीम कोर्ट सख्त
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दहेज उत्पीड़न से संबंधित मामलों में बढ़ती चिंताओं को लेकर कड़ा रुख अपनाया हैं और निर्दोष व्यक्तियों के खिलाफ कानूनी प्रक्रियाओं के दुरुपयोग को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणी की। जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और एन. कोटिस्वर सिंह की बेंच ने कहा कि इन मामलों में निर्दोष पारिवारिक सदस्यों को अनावश्यक रूप से शामिल करना आम चलन बनता जा रहा है। अदालत ने चेतावनी दी कि अगर कोई केस बिना ठोस सबूतों और स्पष्ट आरोपों के दर्ज किया गया हो, तो ऐसे मामलों में कठोर कार्रवाई की आवश्यकता है।

बेंच ने कहा कि शादी के पश्चात् उत्पन्न विवादों के चलते अक्सर पति के पूरे परिवार को मामले में घसीट लिया जाता है। इस प्रकार के आरोप, यदि स्पष्ट और प्रामाणिक न हों, तो उन्हें कानूनी आधार नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि बिना किसी वैध और ठोस सबूत के केवल आरोप लगाकर किसी को कानूनी पचड़े में फंसाना न सिर्फ अन्यायपूर्ण है, बल्कि न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग भी है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी तेलंगाना हाईकोर्ट के एक आदेश को खारिज करते हुए की। उच्च न्यायालय ने एक शादी से जुड़े मामले में पति, उसके माता-पिता और अन्य पारिवारिक सदस्यों के खिलाफ दर्ज दहेज उत्पीड़न के आरोपों को खारिज करने से इनकार कर दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के इस दृष्टिकोण को अनुचित बताते हुए कहा कि यह फैसला परिवार के निर्दोष सदस्यों को अनावश्यक परेशान करने का कारण बन सकता है।

कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि धारा 498ए का दुरुपयोग रोकना आवश्यक है। यह धारा, जो महिलाओं को उनके पति और ससुराल वालों द्वारा किए गए उत्पीड़न के खिलाफ कानूनी सुरक्षा प्रदान करती है, का कई बार अनुचित तरीके से इस्तेमाल किया जाता है। कोर्ट ने उल्लेख किया कि यह देखा गया है कि पत्नी द्वारा कभी-कभी इस धारा का उपयोग व्यक्तिगत दुश्मनी निकालने या अपनी मांगें मनवाने के लिए किया जाता है।

सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि किसी भी महिला को, जो धारा 498ए के अंतर्गत क्रूरता झेल रही है, उसे शिकायत करने से नहीं रोका जाना चाहिए, किन्तु , इस धारा का उपयोग केवल उस स्थिति में हो जब स्पष्ट और मामला पुख्ता हो. FIR को रद्द करते हुए, कोर्ट ने कहा कि पत्नी द्वारा शिकायत व्यक्तिगत दुश्मनी और परिवार के खिलाफ गणना करने के उद्देश्य से दायर की गई थी. 

मामले में एफआईआर को रद्द करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने पाया कि पत्नी द्वारा दर्ज शिकायत मुख्य रूप से व्यक्तिगत दुश्मनी एवं परिवार के खिलाफ प्रतिशोध के उद्देश्य से की गई थी। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस तरह के मामलों में गंभीरता और सतर्कता आवश्यक है जिससे निर्दोष व्यक्तियों को परेशान न किया जाए। वही कोर्ट का यह फैसला कानूनी प्रक्रियाओं के उचित एवं न्यायपूर्ण इस्तेमाल की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो समाज में संतुलन एवं न्याय की भावना को बनाए रखने में मदद करेगा।

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