नई दिल्ली: संसद के शीतकालीन सत्र का पहला हफ्ता हंगामे की भेंट चढ़ गया। कार्यवाही के दौरान विपक्षी दल कार्यस्थगन प्रस्ताव के नोटिस देते रहे, लेकिन लोकसभा स्पीकर और राज्यसभा के सभापति ने इन पर अनुमति नहीं दी। इसके बाद विपक्ष ने दोनों सदनों में लगातार हंगामा किया, जिससे सदन की कार्यवाही पहले कुछ समय और फिर पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी गई। यह स्थिति पहले हफ्ते के अधिकांश दिनों में देखने को मिली।
राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने इस स्थिति पर गहरी नाराजगी जताई। शुक्रवार को कार्यवाही स्थगित करते हुए उन्होंने कहा कि यह जनता के लिए एक खराब उदाहरण है और हम उनकी उम्मीदों पर खरे नहीं उतर रहे। उन्होंने कहा कि संसद की जिम्मेदारी जनता के हितों के लिए काम करना है, लेकिन हम उनकी अपेक्षाओं को नकार रहे हैं। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि नियम 267 का इस्तेमाल व्यवधान उत्पन्न करने के लिए किया जा रहा है, जो सही नहीं है।
लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने भी सदन की कार्यवाही में रुकावट पर चिंता जाहिर की। उन्होंने विपक्ष से अपील की कि सदन को चलने दिया जाए, क्योंकि जनता यह उम्मीद करती है कि संसद में उनके मुद्दों पर चर्चा होगी। उन्होंने कहा कि सहमति और असहमति लोकतंत्र की ताकत है, और हर विषय पर नियमों के तहत चर्चा की जाएगी। उन्होंने विपक्षी सांसदों से अपनी सीटों पर लौटने और सदन को सामान्य रूप से चलने देने का आग्रह किया।
स्पीकर ने यह भी बताया कि प्रश्नकाल के दौरान महत्वपूर्ण विषयों, जैसे स्वास्थ्य और महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर चर्चा होनी थी। लेकिन विपक्ष के विरोध और हंगामे के कारण लोकसभा की कार्यवाही पहले दोपहर 12 बजे और फिर पूरे दिन के लिए स्थगित करनी पड़ी।संसद के इस गतिरोध से यह साफ है कि जनता के मुद्दों पर चर्चा करने के बजाय राजनीति और हंगामा सत्र को प्रभावित कर रहे हैं।
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