बिना नींव के बना है तंजावुर का बृहदेश्वर मंदिर, 6 बड़े भूकंप के बाद भी नहीं आई खरोंच

बिना नींव के बना है तंजावुर का बृहदेश्वर मंदिर, 6 बड़े भूकंप के बाद भी नहीं आई खरोंच
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आजतक आप सभी ने कई मंदिरों के बारे में पढ़ा और सुना होगा, लेकिन आज हम आपको जिस मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं उसके बारे में जानने के बाद आपको हैरानी होगी। यह मंदिर अपनी अनोखी चीजों के लिए मशहूर हैं। इस मंदिर में कई ऐसी चीजें हैं जो चौकाने वाली है और इस मंदिर को देखने हज़ारों नहीं लाखों लोग हर साल आते हैं। जी दरअसल हम बात कर रहे हैं तमिलनाडु के तंजावुर में स्थित बृहदीश्वर/बृहदेश्वर मंदिर के बारे में। यह मंदिर एक अद्भुत और रहस्यमयी संरचना का मेल है और इसे देखने वालों को अपनी आँखों पर यकीन नहीं होता है।

किसने बनवाया था- यह मंदिर चोल साम्राज्य के ‘द ग्रेट लिविंग टेंपल्स’ में से एक है और भगवान शिव को समर्पित बृहदीश्वर मंदिर को महान चोल शासक राजराज चोल प्रथम ने बनवाया था। कहा जाता है इसे पेरिया कोविल, राजराजेश्वर मंदिर या राजराजेश्वरम के नाम से भी जाना जाता है और द्रविड़ वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण है यह बृहदीश्वर मंदिर भारत के कुछ विशाल मंदिरों में से एक है।

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बृहदीश्वर मंदिर की पेंटिंग- कहते हैं कांचीपुरम स्थित पल्लव राजसिम्हा मंदिर को देखकर राजराज चोल के मन में भगवान शिव के लिए एक विशालकाय मंदिर को बनवाने की ललक उठी और उनकी इसी ललक के चलते बृहदीश्वर मंदिर का निर्माण हो सका। सम्राट ने सन् 1002 में इस मंदिर की नींव रखी गई और सबसे हैरान कर देने वाली बात तो यह है कि आज से हजारों साल पहले इतना विशाल मंदिर मात्र 5-6 सालों में बनकर तैयार हो गया था। जी हाँ, केवल यही नहीं बल्कि इस मंदिर में उत्कीर्णित लेखों से यह प्रमाण मिलता है कि राजराज चोल ने अपने जीवन के 19वें साल (सन् 1004) में इस मंदिर का निर्माण शुरू करवाया और सम्राट के 25वें साल (सन् 1010) के 275वें दिन इस मंदिर का निर्माण समाप्त हुआ। 

आप सभी ने देखा होगा भारत में कई मंदिर है जिनकी वास्तुकला अपने आप में सर्वश्रेष्ठ है, हालाँकि जिस मंदिर के बारे में हम बता रहे हैं उसकी वास्तुकला न केवल विज्ञान और ज्यामिति के नियमों का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है, बल्कि इसकी संरचना कई रहस्य भी उत्पन्न करती है। बृहदीश्वर मंदिर का निर्माण द्रविड़ वास्तुशैली के आधार पर हुआ है। इस मंदिर के निर्माण में ‘ग्रेनाइट’ के चौकोर पत्थर के ब्लॉक्स को (आकार में घटते क्रम में) एक-दूसरे के ऊपर इस प्रकार जमाया गया कि वो आपस में फँसे रहें। इसको साधारण भाषा में ‘पजल टेक्निक (Puzzle Technique) कहा गया जो आज के समय में बहुत कम दिखती है। इसके अलावा मंदिर का मुख्य भाग (जो श्रीविमान कहलाता है) लगभग 216 फुट (66 मीटर) ऊँचा है, इसका मतलब है कि पत्थर के ब्लॉक 216 फुट तक जमाए गए। जी हाँ और यह सभी पत्थर मात्र एक-दूसरे के ऊपर रखे गए हैं न कि इन्हें किसी सीमेंट जैसे पदार्थ से (जैसा कि आजकल होता है) आपस में जोड़ा गया है।

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केवल यही नहीं बल्कि सबसे बड़ी और हैरानी की बात तो यह है कि बृहदीश्वर मंदिर को बिना नींव के बनाया गया है। सुनकर आपको हैरानी होगी लेकिन यह सत्य है। बृहदीश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इस मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है जो 8.7 मीटर ऊँचा है। शिव के अलावा यहाँ मंदिर में गणेश, सूर्य, दुर्गा, हरिहर, भगवान शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ हैं। 

इस मंदिर में श्रीविमान के अलावा अर्धमंडप, मुखमंडप, महामंडप और नंदीमंडप है। इसके अलावा मंदिर के परिसर में दो गोपुरम भी हैं। यहाँ नंदीमंडप में भगवान शिव की सवारी नंदी की प्रतिमा है और इस प्रतिमा को लेकर यह कहा जाता है कि इसे भी एक ही पत्थर से बनाया गया है और यह लगभग 25 टन वजनी है।

बृहदीश्वर मंदिर से जुड़े रोचक तथ्य-

* कहा जाता है मंदिर के 50 किमी के दायरे में भी ग्रेनाइट उपलब्ध नहीं है, ऐसे में इतनी मात्रा में ग्रेनाइट जहाँ से भी लाया गया होगा, निश्चित रूप से उस प्रक्रिया में जो मेहनत लगी उसका मोल नहीं है।

* बृहदीश्वर मंदिर के श्रीविमान के ऊपर स्थित ‘कुंभम्’ हैरान करने वाला है। हैरान करने वाला इसलिए कि कुंभम् भी एक ही पत्थर से निर्मित है। जी हाँ और इसका वजन 81 टन अर्थात 81,000 किग्रा है। अब सोचने वाली बात यह है कि यह वजनी पत्थर लगभग 200 फुट की ऊँचाई तक पहुँचा कैसे?

* कहा जाता है ये अद्भुत मंदिर 6 बड़े भूकंप का भी सामना कर चुका है, लेकिन आज तक इसे कुछ नहीं हुआ। 

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