काशी: काशी विश्वनाथ मंदिर से गंगा को एकाकार करने वाला काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनकर तैयार हो गया है और अब तकरीबन 250 वर्ष के उपरांत काशी नगरी को एक नई काशी से रुबरू होने का अवसर मिला है। देश के पीएम मोदी इसे राष्ट्र को भेंट कर दिया है। इस ऐतिहासिक मौके पर देश के जाने माने संत और साधुजन, शंकराचार्य, महामंडलेश्वर, श्री महंत सहित सनातन धर्म के सभी संप्रदायों के प्रमुख और गणमान्य लोग काशी में शामिल होने वाले है। वहीं, विश्वनाथ धाम के साथ सजकर तैयार पूरी काशी मंत्रोच्चार और शंखनाद से गूंजती हुई सुनाई देने वाली है।
तकरीबन 250 वर्ष पूर्व महारानी अहिल्याबाई के उपरांत अब विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार विश्वनाथ धाम के रूप में उभरा है। वास्तविक रूप से धर्म नगरी में आने और आनंद को महसूस कराने वाला चुनार के गुलाबी पत्थरों की आभा से दमकता विश्वनाथ धाम रिकॉर्ड समय यानी 21 माह में बनकर तैयार हो चुकी है। मंदिर के लिए सात तरह के पत्थरों से विश्वनाथ धाम को साझा दिया गया है। यहां आने वाले श्रद्धालु रुद्र वन यानी रुद्राक्ष के पेड़ों के मध्य से होकर बाबा विश्वनाथ का दर्शन करने पहुंचने वाले है। 352 वर्ष पूर्व पहले अलग हुआ ज्ञानवापी कूप एक बार फिर से बाबा विश्वनाथ धाम परिसर में आ चुके है।
विश्वनाथ धाम में आदि शंकराचार्य, महारानी अहिल्याबाई, भारत माता और कार्तिकेय की प्रतिमाओं को स्थापित करने का कार्य शनिवार रात्रि से शुरू होकर रविवार सुबह तक पूरा कर लिया गया था। जिसके लिए विशेषज्ञों की टीम ने कड़ी मेहनत की है। घाट से धाम जाते वक़्त सबसे पहले कार्तिकेय, जिसके उपरांत भारत माता और फिर अहिल्याबाई की प्रतिमा लगी है। अंत में आदि शंकराचार्य की प्रतिमा है। पीएम के बाबा के दरबार मे जाने के लिए मंदिर चौक की सीढ़ियां नहीं उतरनी होगी। उनके लिए रैंप बना उसपर शेड भी लगाया गया है।
काशी विद्वत परिषद काशी विश्वनाथ मंदिर के इतिहास से संबंधित दस्तावेजों को संरक्षित करने वाल है। मुगल शासक औरंगजेब के फरमान से 1669 में आदि विश्वेश्वर के मंदिर को ध्वस्त किए जाने के उपरांत 1777 में मराठा साम्राज्य की महारानी अहिल्याबाई ने विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। जिसके साल 1835 में राजा रणजीत सिंह ने मंदिर के शिखर को स्वर्ण मंडित कराया तो राजा औसानगंज त्रिविक्रम सिंह ने मंदिर के गर्भगृह के लिए चांदी के दरवाजे भी चढ़ाए जा चुके है।
काशी विश्वनाथ से संबंधित महत्वपूर्ण कालखंड पर नजर डाली जाए तो औरंगजेब से पहले 1194 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने काशी विश्वनाथ मंदिर पर अटैक कर दिया था। 13वीं सदी में एक गुजराती व्यापारी ने मंदिर का नवीनीकरण किया गया तो 14वीं सदी में शर्की वंश के शासकों ने मंदिर को हानि पहुंचाई। 1585 में एक बार फिर टोडरमल द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया था। अब 436 साल में तीसरी बार मंदिर का जीर्णोद्धार विश्वनाथ धाम के रूप में हुई है।
जहां इस बात का पता चला है कि काशी के बाबा विश्वनाथ के दर्शन मात्र से ही पापों से मुक्ति मिल जाती है और देहांत के उपरांत मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। शास्त्रों और पुराणों के मुताबिक जब संसार में प्रलय आएगी और पूरी सृष्टि का विनाश हो जाएगा तब काशी ही एकमात्र स्थान होगा जो सुरक्षित रहने वाला है। क्योंकि काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर टीका हुआ है। इसलिए देश-विदेश से भक्तजन मंदिर के दर्शन करने आते हैं। काशी में देवी मां का एक शक्तिपीठ भी स्थित है, जिससे इस स्थान की पवित्रता और भी तेजी से बढ़ती जा रही है।
इतना ही नहीं कुछ ऐसा भी कहा जाता है कि सृष्टि के निर्माण के वक़्त काशी में ही भगवान शिव ने अपने शरीर से नारी शक्ति रूप में देवी आदिशक्ति कोण जन्म दिया था। यहीं पर भगवान विष्णु का प्राकट्य हुआ था। काशी के विषय में यह भी बोला जाता है कि इस स्थान को भगवान शिव स्वयं अपने त्रिशूल को धारण कर लेते है। 5 कोश में फैली काशी की भूमि को अविमुक्तेश्वर स्थान बोला जाता है, जो भगवान शिव की राजधानी है।
पुराणिक कथाओं की माने तो रुद्र ने भगवान शिव से इस स्थान को अपनी राजधानी बनाने का अनुग्रह किया था। दूसरी ओर देवी पार्वती को हिमालय पर रहते हुए मायके में रहने की भांति लगता है और वह किसी अन्य स्थान पर अपना निवास बनाने के लिए भगवान शिव से मांग करती है। ऐसे में भगवान शिव ने लंका में सोने की नगरी का निर्माण करवाया लेकिन यह नगरी रावण ने भगवान शिव से दक्षिणा भी मांगी थी। बद्रीनाथ में भगवान शिव ने अपना ठिकाना बनाया तो भगवान विष्णु ने यह स्थान शिवजी से लिया गया था। तब भगवान शिव ने काशी को अपना निवास बनाया। जहां इस बारें में आज कहा जाता है कि भगवान शिव से पहले यह जगह भगवान विष्णु का स्थान हुआ करती थी। काशी विश्वनाथ के रूप में भगवान शिव ने स्वयं अपने तेज से विश्वेश्वर शिवलिंग को स्थापित कर दिया गया था। यह स्वयंभू लिंग साक्षात शिव रूप पूजा जाता है। कहा जाता है कि जब भगवान शिव काशी में आ गए थे तब उनके पीछे-पीछे उत्तम देव स्थान, नदियां, वन, पर्वत आदि काशी में पहुंचे थे।
ऐसा भी कहा जाता है कि शिव और काल भैरव की इस नगरी को सप्तपुरियों में शामिल कर लिया गया था। काल भैरव को इस शहर का कोतवाल भी बोलै जाता है और भैरव बाबा पूरे शहर की व्यवस्था का ध्यान रखते है। बाबा विश्वनाथ के दर्शन से पहले काल भैरव के दर्शन करने होते हैं तभी दर्शन का अहम् कहा जाता है। काशी दो नदियां वरुणा और असी के मध्य बसा होने के कारण से इसका नाम वारणसी पड़ा। कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने अपने चिंतन से यहां एक पुष्कर्णी का निर्माण कराकर लगभग पचास हजार वर्ष तक तपस्या को पूरा किया था। भैरव को भगवान शिव का गण और माता पार्वती का अनुचर भी बोला जाता है। ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक काशी को दुनिया का प्राचीनतम प्राचीन शहर कहा जाता है।
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