जानिए राजनीती और मीडिया से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

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बात यहां से शुरू करते हैं...

इसे कहते हैं मैनेजमेंट। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा जिस अंदाज में काम कर रहे हैं, उसे उनके बेहतर मैनेजमेंट का नतीजा ही कहा जा सकता है।निकाय चुनाव भले ही टलने की नौबत आ गई हो, लेकिन शर्मा ने प्रदेश के करीब एक दर्जन उन शहरों को नाप डाला है जहां नगर निगम है। उनका यह दौरा जितने सुनियोजित तरीके से हुआ वैसा आज तक भाजपा के इतिहास में बहुत कम अध्यक्ष कर पाए हैं। पार्टी के हर वर्ग के कार्यकर्ता और नेता से न केवल उन्होंने सीधा संवाद स्थापित किया बल्कि अपने पास जो फीडबैक था उसके आधार पर मोर्चा संगठनों को उनकी कमजोरी बताने से भी परहेज नहीं किया। पार्टी के दिग्गजों को वे यह संदेश पहुंचाने में कामयाब रहे कि मुझसे बड़ा शुभचिंतक आपका कोई नहीं। एक शहर को उन्होंने पूरा एक दिन दिया और इसी भागमभाग के बीच कुछ जगह अपनी उपस्थिति भी दर्ज करवा आए।

जब कमलनाथ मुख्यमंत्री थे तब दिग्विजय सिंह के तेवर और सक्रियता को देखते हुए यह चर्चा आम थी कि सरकार राजा ही चला रहे हैं। अलग-अलग फोरम पर कई बार यह मुद्दा उठा और कमलनाथ अपने अंदाज में इसे नकारते रहे। अब कमलनाथ के प्रदेश अध्यक्ष होते हुए राजा फिर सक्रिय हैं लेकिन यह बात कोई नहीं कर पा रहा है कि मध्यप्रदेश में पर्दे के पीछे कांग्रेस दिग्विजय ही चला रहे हैं। दोनों के बीच विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस को मध्यप्रदेश में किस तरह के तेवर अख्तियार करना चाहिए सहित कुछ और मुद्दों को लेकर बहुत ज्यादा मत भिन्नता है और यही कारण है कि इन दिनों कमलनाथ पार्टी मामलों में राजा से ज्यादा अपनी चौकड़ी की राय को तवज्जो दे रहे हैं। समझ गए ना आप यह चौकड़ी कौन सी है। दिग्विजय समर्थक माणक अग्रवाल को कांग्रेस से निकालना भी तो एक संकेत ही है। ‌

1-2 नहीं पूरे 72 करोड़। यह आंकड़ा इन दिनों भारतीय जनता पार्टी में बहुत ज्यादा चर्चा में है। दरअसल राजेंद्र सिंह की भाजपा कार्यालय से विदाई के बाद भोपाल से लेकर दिल्ली तक अलग-अलग तरह की चर्चाएं हैं। पहले कहा जा रहा था कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के न चाहने के बावजूद राजेंद्र सिंह को भाजपा कार्यालय से रुखसत कर दिया गया। अब पता चला है कि पार्टी फंड में बड़ी गड़बड़ी पकड़े जाने के बाद जब तहकीकात की गई तो मामला एक दो नहीं पूरे 72 करोड़ की गड़बड़ी का निकला। पार्टी फंड में सहयोग करने वाले कुछ वजनदार लोगों ने जब इसकी पुष्टि की तो फिर मुख्यमंत्री भी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के निर्णय से सहमत नजर आए। वैसे राजेंद्र ने दिल्ली दरबार में दस्तक देकर अपना पक्ष रख दिया है और कहा है कि मैं हर तरह की जांच के लिए तैयार हूं। ‌

नंदू भैया यानी नंदकुमार सिंह चौहान को इस दुनिया से गए ज्यादा वक्त नहीं हुआ है और खंडवा संसदीय क्षेत्र से भाजपा के संभावित उम्मीदवार को लेकर खुसर पुसर शुरू हो गई है। सबसे मजबूत दावेदार मानी जा रहीं अर्चना चिटनिस का नाम सामने आते ही चौहान समर्थक बिफर पड़ते हैं और कहते हैं कि फिर आप हर्षवर्धन सिंह चौहान यानी नंदू भैया के बेटे को बागी उम्मीदवार के रूप में मैदान में देख सकते हैं। नंदू भैया और अर्चना दीदी की अदावत खंडवा बुरहानपुर की राजनीति में किसी से छुपी हुई नहीं थी। नंदू भैया कैलाश जोशी को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे और हर चुनाव में उन्हें जोशी के प्रभाव वाले बागली क्षेत्र से अच्छी खासी बढ़त मिलती थी। ऐसे में चौहान समर्थकों के तीखे तेवरों को देखते हुए यदि यहां से दिवंगत जोशी के बेटे दीपक जोशी का नाम संभावित उम्मीदवार के रूप में आगे बढ़े तो चौंकने की जरूरत नहीं।

ऐसे समय में जब पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में लाने में कैलाश विजयवर्गीय कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं उनके हनुमान दादा दयालु यानी रमेश मेंदोला की राजनीति के बजाय धर्म में ज्यादा रुचि ने सबको चौंका रखा है। कहा तो यह जा रहा है कि दादा को नंदीग्राम में तैनात किया जाना है जहां ममता दीदी का मुकाबला शुभेंदु अधिकारी से होना है। मेंदोला इन दिनों कनकेश्वरी देवी के साथ चार धाम की यात्रा पर हैं और इस यात्रा के समाप्त होने के बाद वे उत्तम स्वामी जी के साथ नर्मदा की परिक्रमा पर निकलने वाले हैं। हो सकता है अंतिम दौर में दादा स्वामी जी से इजाजत लेने के बाद नंदीग्राम में मोर्चा संभाल लें।

रेरा का चेयरमैन नहीं बन पाए वरिष्ठ आईएएस अधिकारी मनोज श्रीवास्तव का सेवानिवृत्ति के बाद नया मुकाम क्या हो सकता है, इसको लेकर बड़ी चर्चाएं हैं। पढ़ने लिखने में रुचि रखने वाले श्रीवास्तव को सुशासन संस्थान में नई भूमिका मिल सकती है, वहां से आर. परशुराम की विदाई के बाद सरकार को किसी योग्य उत्तराधिकारी की तलाश भी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सरकारी कामकाज को व्यवस्थित करने के लिए सुशासन संस्थान की मदद लेना चाहते हैं और नीति और नियमों से जुड़े मामले में श्रीवास्तव से बेहतर मददगार उन्हें कोई नहीं मिल सकता। देखना यह है कि रेरा में पहुंचने से वंचित रहे श्रीवास्तव सुशासन संस्थान का सफर तय कर पाते हैं या नहीं। ‌

किसी राजनीतिक दल से संलग्नता या किसी संगठन में अति सक्रियता कितनी नुकसानदायक साबित हो सकती है, इसका एहसास इस बार हाई कोर्ट जज बनने से वंचित रहे विधि क्षेत्र के तीन दिग्गजों पुरूषेंद्र कौरव,शशांक शेखर और मनोज द्विवेदी को अब हो रहा होगा। अंदरखाने की खबर यह है कि अपने शानदार प्रोफेशनल करियर  के आधार पर तो इन तीनों के हाई कोर्ट जज बनने में कोई दिक्कत नहीं थी। लेकिन राजनीतिक दलों और इनसे जुड़े संगठनों में अति सक्रियता इनकी ताजपोशी में बाधक बन गई। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट से जो नाम आगे बढ़े थे उन पर जब दिल्ली से तहकीकात हुई और जो रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची तो बड़ा उलटफेर हो गया। जिन तीन लोगों का हाईकोर्ट जज बनना तय माना जा रहा था वे इस बार तो दौड़ से बाहर हो गए।

एक ओर जहां राज्य पुलिस सेवा के 1995 बैच के कुछ अफसर अभी तक भारतीय पुलिस सेवा में पदोन्नति नहीं पा सके हैं, वहीं राज्य प्रशासनिक सेवा के 1999 बैच के भी कुछ अफसर इस साल भारतीय प्रशासनिक सेवा में पदोन्नत हो जाएंगे। राप्रसे के जो अफसर इस बार पदोन्नति के दायरे में आ रहे हैं, उनमें वरद मूर्ति मिश्रा, विनय निगम और विवेक सिंह जैसे वे अधिकारी भी शामिल हैं जो लंबे समय से पदोन्नति की बाट जोह रहे हैं। कुल 18 अफसरों को पदोन्नति का फायदा मिलना है और इनमें इंदौर में पदस्थ दो अधिकारी अभय बेडेकर और अजय देव शर्मा के साथ ही पूर्व में एडीएम रहे सुधीर कोचर भी शामिल हैं।

चलते चलते

असिस्टेंट सॉलिसीटर जनरल रहे विवेक शरण का सपना था हाईकोर्ट जज बनना, जो पूरा हो गया। वे सर्विस मैटर और शिक्षा से जुड़े मामलों के विशेषज्ञ माने जाते हैं। श्री शरण के पिता डॉक्टर मैथिलीशरण भी उच्च न्यायिक सेवा के अधिकारी थे और बाद में हाई कोर्ट जज बने थे। ‌उनकी बहन विधि शरण भी अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश हैं।

पुछल्ला

सरकार के बड़े आयोजनों में भोपाल वाले कंजे मियां की वापसी के बाद मुकेश श्रीवास्तव के लिए रही सही संभावनाएं भी खत्म हो गई हैं। कांग्रेस सरकार के दौर में श्रीवास्तव बड़े इवेंट प्लानर बन गए थे और उनकी तूती बोलती थी।

अब बात मीडिया की

 ♦️   दैनिक भास्कर के सर्वेसर्वा सुधीर अग्रवाल का वह पत्र इन दिनों जबरदस्त चर्चा में है, जिसमें उन्होंने अपने चंडीगढ़ के सिटी रिपोर्टर संजीव महाजन की करतूतों से ब्रांड दैनिक भास्कर को हुए नुकसान पर अफसोस जताते हुए एक मेल आईडी जारी किया है। इस पत्र में सुधीर जी ने अपनी टीम से कहा है कि यदि उन्हें ऐसा लगता है कि उनके आसपास का या साथ कम करने वाला कोई साथी अनैतिक गतिविधियों में लिप्त है और दैनिक भास्कर में अपनी हैसियत का दुरुपयोग कर रहा है तो उसकी जानकारी प्रमाण के साथ इस मेल पर दें। जानकारी की पुष्टि होने पर वह सख्त कदम उठाएंगे। सूचना देने वाले की पहचान पूरी तरह गोपनीय रखी जाएगी। ‌

 ♦️   दैनिक भास्कर में यह चर्चा इन दिनों बड़े जोरों पर है कि शीर्ष संपादकीय पदों पर बैठकर जिन लोगों ने जमकर भ्रष्टाचार किया और जहां जहां भी पदस्थ रहे वहां बेशुमार संपत्ति खड़ी कर ली उन पर सुधीर जी की वक्र दृष्टि कब पड़ेगी। इनमें से कई सुधीर जी के बहुत नजदीकी होने का दावा करते हैं।

 ♦️   इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का जाना पहचाना नाम है संदीप भम्मरकर। संदीप कई बड़े चैनल्स में अहम भूमिका निभा चुके हैं। अब वे news24 के रीजनल चैनल में मध्य प्रदेश हेड की भूमिका निभाते नजर आएंगे।‌ संदीप ने ज़ी टीवी से नाता तोड़ लिया है।

 ♦️   वरिष्ठ पत्रकार पंकज मुकाती का नया प्रयोग पॉलिटिक्सवाला साप्ताहिक अखबार के रूप में सामने आया है। इसके पहले ही संस्करण की बहुत चर्चा है। मीडियाट्रॉनिक्स के नाम से खुद की कंसलटेंट कंपनी खोलने वाले मुकाती आप शायद मधु भाषी समूह में समूह संपादक की भूमिका न निभाएं।

 ♦️  प्रजातंत्र में बहुत छोटी पारी खेलने के बाद मृदुभाषी पहुंचे वरिष्ठ पत्रकार मिलिंद वायवर अब इस अखबार समूह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते नजर आएंगे।

अरविंद तिवारी
प्रेस क्लब अध्यक्ष ​

 

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