अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस: महिलाओं ने दुनियाभर में अपना परचम लहराया है लेकिन आज भी लोग कहते हैं, 'तुम लड़की हो, कर क्या सकती हो'। अंग्रेजों से लड़कर दुनिया को आजादी दिलवाने के लिए महिलाओं ने भी प्रयास किया है लेकिन आज भी गर्भ में बेटी होने पर लोग उसे मार देते हैं। भारत को कई क्षेत्रों में गोल्ड मेडल दिलवाने के लिए महिलाओं का नाम आगे है लेकिन फिर भी लोग कहते हैं रात को अकेली बाहर मत जाना... आखिर क्यों...? लड़कियों से ही इतने सवाल क्यों...? लड़कियों पर ही रोक-टोक क्यों...? लडकियां ही बुरी नजरों का शिकार क्यों...? ऐसे बहुत से सवाल हैं जो लड़कियों के मन में उठते हैं। 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस आने वाला है और अब उस दिन महिलाओं का सम्मान होगा लेकिन अगर आप लड़कियों को उस लायक ही नहीं समझते तो आप उन्हें अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की बधाई नहीं दे सकते हैं। इसका आपको कोई हक नहीं है। दुनियाभर में महिलाएं हर दिन अपराध का शिकार हो रहीं हैं और आप कह रहे हैं ''अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएं''। किस बात की शुभकामनाएं, महिलाओं के साथ होने वाले बढ़ते अपराध की शुभकामनाएं, या फिर हर दिन गर्भ में मरने वाली बच्चियों को शुभकामनाएं...? आखिर किस बात की शुभकामनाएं देता है समाज, समझ ही नहीं आता...?
महिलाओं के प्रति दिन पर दिन बढ़ रहे अपराध- आज आप देखेंगे तो हर दिन कम से कम 50 मामले ऐसे आ जाते हैं जिनमे महिलाओं, बच्चियों, बुजुर्ग महिलाओं के साथ अपराध होता है। ये आंकड़ा तो हम कम ही बता रहे हैं क्योंकि इससे कहीं अधिक मामले सामने आते हैं जिनमे महिलाएं अपराध का शिकार हो जाती हैं। इनमे कुछ मामले दिख जाते हैं तो कुछ छुप जाते हैं। कई महिलाएं समाज के डर से नहीं बोलती, कई महिलाएं परिवार की इज्जत बचाने के लिए कुछ नहीं कहती तो कई महिलाएं ऐसी होती हैं जो अपने खुद के सम्मान को बचाने के लिए चुप रह जाती हैं। अपराध में हत्या, दुष्कर्म, मार-पीट, छेड़छाड़ शामिल है जिससे जुड़े मामले आप हर दिन अखबार में पढ़ते होंगे। न्यूज़ वेबसाइट्स पर देखते होंगे। न्यूज़ चैनल पर देखते होंगे। हर दिन जब हम खबर देखने के लिए बैठते हैं तो उनमें 50 ब्रेकिंग भी हो तो उनमे से 25 तो आपको यही मिलेंगी कि आज इस महिला संग लूट-पाट, आज इस महिला संग हुई छेड़छाड़, महिला ने किया दुष्कर्म का विरोध तो हुई हत्या, लड़की के साथ दुष्कर्म...! यह सुनकर कभी-कभी तो इतना गुस्सा आता है कि आखिर ये हो क्या रहा है...? समाज में शर्म-लाज कुछ बचा है या नहीं...?
करीबी भी होते हैं आरोपी- महिलाओं के साथ होने वाले अपराध में कहीं ना कहीं अपने भी शामिल होते हैं। दुनियाभर में आपको कई ऐसे मामले सुनने को मिल जाएंगे जिनमे चाचा, मामा, काका, नाना, दादा, मौसा, फूफा, भाई और यहाँ तक की एक पिता तक ने महिला के साथ दुष्कर्म किया होगा। फिर वो महिला एक बेटी हो सकती है, एक माँ हो सकती है, एक बहन हो सकती है, भतीजी-भांजी हो सकती है। आज वो युग आ चुका है जहाँ रिश्तों का भी लिहाज नहीं है। व्यक्ति की नियत कब, कहाँ, बिगड़ जाए कोई भरोसा नहीं है। ऐसी खबरों को सुनकर मन में कई सवाल पैदा होते हैं जैसे- 'कैसे कोई पिता अपनी बेटी के साथ ऐसा कर सकता है।' 'कैसे कोई भाई अपनी बहन की आबरू के साथ खेल सकता है।' वो सब तो छोड़िये, यहाँ तो छोटी-छोटी बच्ची जिन्हे दुनिया में आए कुछ महीने भी नहीं होते हैं लोग उनसे भी दुष्कर्म करते हैं और उन्हें जान से मार भी देते हैं। ऐसे लोग मानव कहलाने के काबिल ही नहीं और इन्हे तो राक्षस भी नहीं कहा जा सकता है बल्कि ये तो ऐसी प्रजाति में आते हैं जिन्हे दुनिया में रहने का कोई हक़ ही नहीं।
पुलिस भी नहीं करती मदद- महिलाओं के साथ हो रहे अपराध बढ़ने का एक कारण यह भी है कि कई बार पुलिस भी अपने कदम पीछे ले लेती है। कई मामले अब तक ऐसे भी सामने आये हैं जिनमे पुलिस ने सतर्कता नहीं दिखाई, वहीं कई बार तो पीड़िता ने थाने में जाकर अपने साथ हुए पूरे किस्से को बताया लेकिन पुलिस ने तब भी कोई शिकायत दर्ज नहीं की। पुलिस की लापरवाही भी ऐसे मामलों को बढ़ावा देती है। कई मामले ऐसे भी सामने आए हैं जिनमे बड़े घर के लोग पुलिस को रिश्वत देकर पुलिस का मुंह बंद कर देते हैं फिर पीड़िता कितना भी चीखे, चिल्लाये लेकिन पुलिस उसकी बात पर यकीन नहीं करती। पुलिस ऐसे मामलों में अगर कड़ा एक्शन लेने लगे, सतर्क रहें तो एक हद तक इन बढ़ते हुए अपराधों को रोका जा सकता है लेकिन यह केवल हमारी सोच है क्योंकि ऐसा होना काफी हद तक मुश्किल ही है...!
क्या कर रही है सरकार- आपको याद है निर्भया वाला केस, निर्भया को करीब 8 सालों बाद इन्साफ मिला था वो भी उनके परिवार और उनकी वकील के चलते यह सब संभव हो पाया वरना आज निर्भया संग दिल दहला देने वाल कृत्य कर उसे मौत देने वाले आरोपी बाहर घूम रहे होते। खैर क्या ही कहा जाए क्योंकि आज भी एक आरोपी बाहर ही है। सरकार क्या कर रही है ये सवाल केवल हमारे या आपके मन में नहीं बल्कि ना जाने कितनी ही लड़कियों और लोगों के मन में होगा लेकिन सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। सब राजनीति करने में लगे हुए हैं। कोई लड़की मर रही है, उसके साथ दुष्कर्म हो रहा है किसी को कोई मतलब नहीं। सरकार चाहे तो इसके लिए कड़े कानून बना सकती है और ऐसे कानून भी जिससे यह अपराध एकदम से खत्म ही हो जाए लेकिन नहीं।।
सऊदी अरब में लड़कियों के साथ दुष्कर्म करने वाले को तब तक पत्थर मारे जाते हैं, जब तक उसकी मृत्यु न हो जाए। वहीं ईरान में अगर कोई लड़की से बलात्कार करता है तो उसे मौत की सज़ा दी जाती है। उत्तर कोरिया में बलात्कार करने वाले के सिर में गोली मार देते हैं। इंडोनेशिया में बलात्कार करने वाले को नपुंसक बना दिया जाता है। अब भारत की बात करें तो यहाँ के अधिकतर राज्यों में 12 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ अगर कोई दुष्कर्म करता है तो उसे मृत्युदंड दिया जाता है लेकिन उससे अधिक की उम्र वाली लडकियां, महिलाओं की आबरू का कोई मोल नहीं...? और जो भी हो अगर दूसरे देशों जैसे कानून दुष्कर्म या अन्य अपराधों के लिए हमारे देश में भी बना दिए जाएं तो इनमे कमी आए। हम यही नहीं कहते कि मृत्युदंड जैसी सजा देने से अपराध बंद हो जाएंगे लेकिन यह जरूर कहा जा सकता है कि अपराधों में कमी आएगी।
बाल अपराधी को कोई सजा नहीं- निर्भया के मामले में एक बाल अपराधी भी था लेकिन उसे कोई सजा नहीं दी गई बल्कि बाल सुधारगृह में भेजा गया और एक साल बाद उसे छोड़ दिया गया। तो आप बताइए क्या बाल अपराधी, अपराधी नहीं है...? जब उसमे इतना दिमाग है कि अपराध करना है तो क्या उसे सजा देने के लिए सोचने की जरूरत है...? दुष्कर्म जैसे अपराध के लिए, हत्या जैसे अपराध के लिए क्या बाल अपराधी को खुली छूट है...? यह ऐसे सवाल हैं जो कभी खत्म नहीं हो सकते और सरकार इन सवालों पर आँख मूंदे बैठी है। आपको पता है एमनेस्टी इंटरनेशनल की 2013 की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में आठ देश ऐसे हैं जहाँ बाल अपराधियों के लिये फाँसी की सज़ा का प्रावधान है। इन देशों में चीन, नाइज़ीरिया, कांगो, पाकिस्तान, ईरान, सऊदी अरब, यमन और सूडान शामिल है। इन्हे देखकर कहा जा सकता है कि यही देश अच्छे हैं कम से कम यहाँ बाल अपराधी को सजा तो मिलती है।
तो अब आप क्या कहेंगे? क्या अब भी आप अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की बधाई देने के लिए तैयार हैं।।।?
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