बैंगलोर: कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) घोटाले में राज्यपाल द्वारा उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी को चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने कहा कि शिकायतकर्ताओं द्वारा की गई शिकायत और राज्यपाल की मंजूरी उचित है और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए के तहत जांच का आदेश दिया गया था। उच्च अदालत ने सिद्धारमैया की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि इस मामले में तथ्यों की जांच की आवश्यकता है।
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अपनी याचिका में तर्क दिया था कि राज्यपाल का मंजूरी आदेश प्रथम दृष्टया दोषी होने का कोई कारण नहीं बताता है और राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियां सीमित हैं। वहीं, सिद्धारमैया की ओर से वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि एक निर्वाचित लोक सेवक के खिलाफ इस तरह की कार्यवाही चुनावी प्रक्रिया को कमजोर कर सकती है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए को 2010 से पहले के मामलों में लागू नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह कानून 2010 के बाद लागू हुआ था।
दूसरी ओर, राज्यपाल कार्यालय की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि राज्यपाल ने सभी तथ्यों पर विचार कर मंजूरी दी है, और इस स्तर पर प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। इस फैसले के बाद कांग्रेस पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। एक तरफ, पार्टी के नेता और वकील, सीएम को कानूनी प्रक्रिया से बाहर निकालने का प्रयास कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ, कांग्रेस की सरकार वाले राज्यों में भ्रष्टाचार के बड़े मामले सामने आ रहे हैं।
कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप
कर्नाटक के अलावा, झारखंड में भी कांग्रेस के नेताओं पर गंभीर आरोप लगे हैं। झारखंड में कांग्रेस मंत्री आलमगीर आलम के नौकर के घर से 30 करोड़ रुपये नकद मिले थे, जबकि कांग्रेस सांसद धीरज साहू के पास से 350 करोड़ रुपये की बरामदगी हुई थी। कर्नाटक में भी वाल्मीकि विकास विभाग में कांग्रेस मंत्री बी नागेंद्र को भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार किया गया था। कांग्रेस शासित राज्यों में लगातार ऐसे घोटाले सामने आ रहे हैं, जिससे जनता के मन में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर कांग्रेस पर भरोसा कैसे किया जाए? वहीं, पार्टी के शीर्ष नेता राहुल गांधी और सोनिया गांधी इन तमाम मामलों पर चुप्पी साधे हुए हैं। इससे पार्टी की छवि और भी खराब हो रही है।
कांग्रेस वैसे ही कम राज्यों में सत्ता में है और जहां वह सत्ता में है, वहां से भ्रष्टाचार के गंभीर मामले सामने आ रहे हैं। झारखंड और कर्नाटक जैसे राज्यों में घोटालों की खबरें पार्टी की साख को और नुकसान पहुंचा रही हैं। जब जनता देख रही है कि पार्टी के बड़े नेता भ्रष्टाचार के मामलों में फंसे हैं और शीर्ष नेतृत्व मौन है, तो ऐसे में जनता का भरोसा पार्टी से और दूर हो रहा है। इस स्थिति में सवाल उठता है कि आखिर कांग्रेस कब इन घोटालों पर एक्शन लेगी? क्या पार्टी के नेता सिर्फ कानूनी दांव-पेंचों का सहारा लेकर खुद को बचाने की कोशिश करते रहेंगे, या फिर वे जनता को जवाबदेह ठहराएंगे? कांग्रेस की मौजूदा हालत देखकर यह साफ है कि अगर पार्टी ने जल्द ही आत्मनिरीक्षण नहीं किया, तो उसे और भी राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ सकता है।
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