स्वास्तिक चिन्ह की अगर बात की जाए तो हिन्दू धर्म में इसका काफी महत्व है. किसी भी प्रकार के शुभ कार्यो में इसका इस्तेमाल जरूर किया जाता है. खास बात तो यह है कि इस चिन्ह को एक परंपरा के अनुसार माना जाता है, जो आज से नहीं बल्कि आदिकाल से चला आ रहा है. स्वास्तिक चिन्ह दो प्रकार का होता है, जिसका मुख दायीं तरफ हो, उसे नर का प्रतीक मानते है, और जिसका मुख बायीं तरफ हो उसे नारी का प्रतीक मानते है. स्वास्तिक की सभी चारों रेखाएं एक समान होती है और ऐसी मान्यता है, कि यह चारों दिशाओं को दर्शाती है, किन्तु हिन्दू धर्म में इसे चारों वेदों की संज्ञा दी गई है ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद का प्रतीक मानी जाती है.
प्राचीन काल से ही स्वास्तिक के चिन्ह का बहुत महत्व है, इसे कई देशों में मंगल व सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है. सिन्धु घाटी सभ्यता में भी स्वास्तिक के चिन्ह का उपयोग किया जाता था, जिसके प्रमाण सिन्धु घाटी सभ्यता में देखने को मिलते है. स्वास्तिक चिन्ह हमेशा ही लाल रंग से बनाया जाता है, क्योंकि लाल रंग को भारतीय संस्कृति में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. सभी शुभ कार्यों में रोली, कुमकुम से ही स्वास्तिक का चिन्ह बनाया जाता है.
व्यक्ति को स्वास्तिक का चिन्ह किसी भी अनुचित स्थान जैसे शौचालय और अपवित्र जगहों पर नहीं बनाना चाहिए. यदि व्यक्ति ऐसा करता है, तो इससे उसके जीवन में कई प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हो जाती है. स्वास्तिक का चिन्ह व्यक्ति को अपने रसोई घर तिजोरी प्रवेश द्वार मकान दुकान पूजा स्थल आदि जगहों पर बनाना शुभ व लाभदायक होता है.
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