अमृतसर: जरनैल सिंह भिंडरावाले पंजाब को भारत से अलग करने के हिंसक संघर्ष से जुड़ा एक जाना-माना नाम है। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान भारतीय सेना ने उन्हें मार गिराया था। उनकी मृत्यु के बाद, कई महत्वपूर्ण हत्याएँ हुईं: अक्टूबर 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, अगस्त 1986 में पूर्व सेना प्रमुख अरुण श्रीधर वैद्य और अगस्त 1995 में पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की क्रमशः दिल्ली, पुणे और चंडीगढ़ में हत्या कर दी गई।
अमृतपाल की रिहाई की माँग कांग्रेस का पूर्व मुख्यमंत्री
— Avkush Singh (@AvkushSingh) July 25, 2024
सांसद चन्नी कर रहा हैं।
अमृतपाल तो जानते हो ना कौन हैं क्यूँ जेल में बंद हैं ?
कांग्रेस का हाथ पंजाब में किसके साथ हैं ? pic.twitter.com/NuCWC5X5KC
ऐतिहासिक विश्लेषण से पता चलता है कि कांग्रेस पार्टी की कार्रवाइयों ने स्थिति को और बिगाड़ दिया। भिंडरावाले, जिसे कुछ खालिस्तानी चरमपंथी 'संत' मानते थे, कथित तौर पर कांग्रेस द्वारा समर्थित थे। अब वही पार्टी एक अन्य खालिस्तानी व्यक्ति अमृतपाल सिंह का समर्थन करते नज़र आ रही है। कांग्रेस के पूर्व सीएम चरणजीत सिंह चन्नी ने खालिस्तानी सांसद अमृतपाल सिंह पर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) लगाए जाने की भी 'आपातकाल' के रूप में आलोचना की। चन्नी ने कहा कि, एक चुने हुए सांसद का इस तरह जेल में रहना, भी एक तरह का आपातकाल ही है। डिब्रूगढ़ में कैद अमृतपाल सिंह, बिना कोई चुनाव प्रचार किए और बिना कोई वादे किए खडूर साहिब लोकसभा क्षेत्र से निर्दलीय सांसद चुने गए थे, वो भी भारी मतों से। उन्होंने कांग्रेस, भाजपा, अकाली दल और आप जैसी प्रमुख पार्टियों को हराया था। उनका चुनाव पंजाब के लोगों के बीच उनके लिए महत्वपूर्ण समर्थन दर्शाता है, जो भिंडरावाले के 1980 के दशक की याद दिलाता है।
जालंधर से अब कांग्रेस सांसद चरणजीत सिंह चन्नी ने अमृतपाल सिंह की नजरबंदी की आलोचना करते हुए तर्क दिया कि यह उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है। कभी दुबई में बिना पगड़ी के रहने वाले अमृतपाल सिंह, अचानक भारत आकर खालिस्तानी आंदोलन में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गए हैं, ठीक उसी तरह जैसे भारत के विभाजन के दौरान जिन्ना ने मुसलमानों को प्रभावित किया था। मोदी सरकार द्वारा तीन कृषि कानून निरस्त किए जाने के बाद, आरोप सामने आए कि अमृतपाल सिंह सहित खालिस्तानी तत्वों ने किसान आंदोलन में घुसपैठ की थी।
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री ने खालिस्तानी आतंकवादी अमृतपाल सिंह की रिहाई की मांग की।
— Surya Pratap Singh IAS Rtd. (@suryapsingh_IAS) July 25, 2024
ये आतंकी पंजाब को भारत से अलग कर ख़ालिस्तान बनाना चाहता है।
लगता है, जब से कांग्रेस ने 98 सीट क्या जीत लिया, उसे सत्ता के लिए जिहादी आतंकवादियों तक का साथ लेने से भी परहेज़ नहीं।
आज पता चल गया… pic.twitter.com/8QGj6VjuG0
अमृतपाल सिंह ने अपने संस्थापक दीप सिद्धू की मौत के बाद खालिस्तानी समर्थक संगठन 'वारिस पंजाब दे' संगठन की कमान संभाली, जो 2021 के गणतंत्र दिवस पर लाल किले पर हुई हिंसा में शामिल था। भिंडरावाले से प्रेरित अमृतपाल सिंह ने सिखों की 'आज़ादी' की वकालत करते हुए रैलियाँ कीं और पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब को ढाल के रूप में लेकर अजनाला में एक पुलिस स्टेशन पर हिंसक हमला कर दिया। विवाद काफी बढ़ जाने के बाद पंजाब पुलिस ने अमृतपाल को गिरफ्तार कर लिया था और AAP सरकार ने उन पर NSA के तहत केस दर्ज किया था। लेकिन, अमृतपाल का इस तरह अचानक आना, शांत पड़े खालिस्तान मुद्दे का फिर से जन्म लेना और पंजाब में अराजकता फैलना, ये सब 80 के दशक की याद दिलाता है, जब कांग्रेस समर्थित भिंडरावाले ने हरे भरे पंजाब को रक्तरंजित कर दिया था।
भारत की ख़ुफ़िया एजेंसी RA&W के पूर्व स्पेशल सेक्रेटरी GBS सिद्धू और लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) कुलदीप सिंह बराड़ सहित पूर्व खुफिया और सैन्य अधिकारियों ने कहा है कि कांग्रेस ने डर पैदा करने और राजनीतिक स्थितियों में हेरफेर करने के लिए जानबूझकर भिंडरावाले का निर्माण किया था और उसका समर्थन किया था। पंजाब में अकाली दल-जनता पार्टी गठबंधन का मुकाबला करने के लिए जैल सिंह और संजय गांधी जैसे कांग्रेस नेताओं ने भिंडरावाले के उदय को प्रोत्साहित किया। भिंडरावाले को एक संत के रूप में पंजाब में प्रचारित किया गया, जबकि उनमे सिख समुदाय के 10 गुरुओं जैसा रहम करुणा कहीं से कहीं तक नहीं थी। GBS सिद्धू ने साफ़ कहा था कि खालिस्तान का मुद्दा अस्तित्व में ही नहीं था, इसे पैदा किया गया। ताकि सिख गुट वाले अकाली दल और हिन्दू गुट वाले जनता दल की दोस्ती में दरार डाली जा सके और इसका राजनितिक लाभ कांग्रेस को मिले। यहाँ तक कि संजय गांधी और कमलनाथ, भिंडरावाले को पैसे भी भेजते थे।
RA&W के पूर्व अधिकारी सिद्धू ने बताया था कि, उन लोगों (जेल सिंह और संजय गांधी) ने इसके लिए ‘एक हाईप्रोफाइल’ संत (भिंडरावाले) को अपनी ओर से पंजाब भेजने की बात कही। उनकी साजिश थी कि वो कथित संत, अकाली दल की नरम नीतियों पर कुछ कहेगा, तो उसके जवाब में जनता दल की ओर से भी प्रतिक्रिया आएगी और आख़िरकार दोनों एक-दूसरे से नाता तोड़ लेंगे। स्पष्ट शब्दों में कहें तो, कांग्रेस ने हिन्दुओं को डराने के लिए भिंडरांवाले को प्लांट किया और खालिस्तान जैसे मुद्दे को पैदा किया, जिससे देश की एक बड़ी आबादी ये सोचने लगे कि देश की अखंडता खतरे में है।
सिद्धू ने आगे बताया कि कमलनाथ ने उस वक़्त कट्टर सिख संतों की भर्ती करने की बात कही थी। उन्होंने बताया कि पुलिस-प्रशासन से लेकर तमाम लोग भिंडरांवाले को ‘सर/जनाब’ कहा करते थे। उसे पूरी योजना के साथ एक बड़ा आदमी बनाया गया था। उन्होंने बताया कि इंदिरा गाँधी खुद कहती थीं कि उनकी हत्या हो सकती है, मगर उन्हें इसकी कोई फ़िक्र नहीं है। R&AW के पूर्व अधिकारी ने कहा कि उस समय गृह मंत्री रहे ज्ञानी जैल सिंह ने मीडिया में भिंडरांवाले की छवि गढ़ी थी।
सिद्धू ने बताया था कि, 'कांग्रेस ने अकाली दल से बातचीत करने का प्लान बनाया, ताकि उन्हें ऐसा लगे कि समस्या का निराकरण किया जा रहा है। दोनों में 26 दौर की वार्ता चली, जिनमें से कुछ में इंदिरा गाँधी ने भी हिस्सा लिया। संजय गाँधी ने 1985 से पहले के चुनाव भिंडरांवाले-खालिस्तान मुद्दे पर जीतने की प्लानिंग की थी। लेकिन, 1982 में हमें सूचना मिली कि इंदिरा गाँधी की जान जोखिम में है। भिंडरांवाले गोल्डन टेंपल में शिफ्ट हो गया था। उसे अरेस्ट करने की साजिश भी ऐसे रची गई, जैसे वो बहुत बड़ा शख्स था और उसे पकड़ना सरल नहीं था।' बता दें कि, भिंडरावाले को पकड़ने के लिए भारतीय सेना को ऑपरेशन ब्लू स्टार नामक बड़ा ऑपरेशन चलना पड़ा था और स्वर्ण मंदिर में सेना के घुसने से सिखों की भावनाएं आहत हो गई थी। यही आगे जाकर पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की हत्या का कारण बनीं और फिर 1984 में कांग्रेस समर्थकों द्वारा सिखों का नरसंहार किया गया था।
They created Bhindranwale and what happened to Indira
— BALBIR SINGH ???????? (@balbir59) July 25, 2024
Now they support Amritpal and another story will unfold https://t.co/MZJU0vwhaQ
अब अमृतपाल पर चन्नी के बयान के बाद ऐसी चिंता है कि कांग्रेस पंजाब में सत्ता हासिल करने के लिए अमृतपाल सिंह का इसी तरह से फायदा उठाने की कोशिश कर सकती है। सिख किसान नेताओं के साथ राहुल गांधी की बैठकें और देश में अस्थिर स्थिति के बारे में बयान इस अटकल को और बढ़ाते हैं। कनाडा में खालिस्तानी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या जैसी अंतरराष्ट्रीय घटनाओं से स्थिति और भी जटिल हो गई है, जिसके कारण तनाव बढ़ गया और हिंदू मंदिरों पर हमले हुए। अकाल तख्त द्वारा हरमंदिर साहिब में निज्जर सहित खालिस्तानी आतंकवादियों की तस्वीरें प्रदर्शित करने का प्रस्ताव खालिस्तानी आंदोलन के लिए चल रहे समर्थन को उजागर करता है।
इसका राजनितिक महत्त्व इसलिए भी है क्योंकि, बीते चुनाव में हमने देखा है कि, किस तरह आम आदमी पार्टी (AAP) ने एकतरफा तरीके से पंजाब का चुनाव जीता था, राज्य पर काफी समय तक शासन करने वाली कांग्रेस और अकाली दल उसे चुनौती देने लायक भी नहीं रहे थे। बाद में आरोप लगे कि AAP को खालिस्तानियों ने समर्थन किया है, ये बड़ी जीत इसी का नतीजा है। आतंकी संगठन सिख फॉर जस्टिस (SFJ) के सरगना गुरपतवंत सिंह पन्नू ने भी कहा था कि, उसने AAP को पैसे दिए थे, ताकि AAP सत्ता में आए और दविंदर पाल सिंह भुल्लर को जेल से छुड़ाया जा सके। इससे कुछ चीज़ें स्पष्ट होती है कि पंजाब पर वही शासन करेगा, जो खालिस्तान का समर्थन करेगा। वरना वहां की पुरानी पार्टी अकाली दल, जो सिखों का ही संगठन है, चुनावों में उसकी हालत भी बेहद ख़राब रही है। लेकिन, इस लोकसभा चुनाव में राज्य विधानसभा में लगभग ख़त्म हो चुकी कांग्रेस ने जबरदस्त वापसी की और 7 सीटें जीतीं। ये भी एक इशारा है कि पंजाब का सियासी परिदृश्य क्या कह रहा है ?
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