जजों की संपत्ति जानना 'जनहित' में नहीं? 749 में से सिर्फ 98 का डाटा मौजूद

जजों की संपत्ति जानना 'जनहित' में नहीं? 749 में से सिर्फ 98 का डाटा मौजूद
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नई दिल्ली: देश में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की संपत्ति सार्वजनिक करने को लेकर लंबे समय से बहस जारी है। इस मुद्दे पर मोदी सरकार 2.0 के अंतिम चरण में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया था, जिसमें जजों की संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करने के लिए नियम बनाए जाने की बात कही गई थी। इस संबंध में फरवरी 2024 में सरकार ने राज्यसभा में सुशील कुमार मोदी की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति को जानकारी दी थी कि वह इस मुद्दे पर कानून बनाने पर विचार कर रही है।

जजों की संपत्ति का ब्यौरा अभी अनिवार्य नहीं :-

फिलहाल, भारत में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों के लिए अपनी संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करना अनिवार्य नहीं है। एक रिपोर्ट के अनुसार, देश के लगभग 87% हाई कोर्ट जजों की संपत्ति का विवरण सार्वजनिक नहीं किया गया है। सुप्रीम कोर्ट के जजों की संपत्ति की जानकारी भी जनता के सामने उपलब्ध नहीं है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट के अनुसार, वर्तमान में कार्यरत 27 जजों ने अपनी संपत्ति का ब्यौरा चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को सौंपा है, लेकिन इसे सार्वजनिक पटल पर नहीं रखा गया है।

एक रिपोर्ट में बताया गया है कि देश के विभिन्न 25 हाई कोर्ट में कुल 749 जज कार्यरत हैं, जिनमें से केवल 98 जजों की संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है। यह जानकारी उन हाई कोर्ट की वेबसाइट्स पर मौजूद है, जहाँ यह जज अपनी सेवाएँ दे रहे हैं। दिल्ली हाई कोर्ट के 39 में से 11, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के 55 में से 31, हिमाचल प्रदेश के 12 में से 10 और केरल के 39 में से 37 जजों की संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक किया गया है।

इसके अलावा, कुछ हाई कोर्ट में संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है। उदाहरण के लिए, मद्रास हाई कोर्ट के 62 में से सिर्फ 5 जजों की संपत्ति का विवरण सार्वजनिक किया गया है, जबकि छत्तीसगढ़ और कर्नाटक हाई कोर्ट में केवल 2-2 जजों की संपत्ति का ब्यौरा जनता के सामने है। रिपोर्ट के अनुसार, देश के बाकी 18 हाई कोर्ट के किसी भी जज की संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है। इसमें इलाहाबाद और बॉम्बे हाई कोर्ट भी शामिल हैं, जो जजों की संख्या के लिहाज से सबसे बड़े हाई कोर्ट माने जाते हैं। किसी भी हाई कोर्ट में 100% जजों की संपत्ति सार्वजनिक नहीं की गई है, जिससे इस मुद्दे पर पारदर्शिता को लेकर सवाल उठते रहे हैं।

RTI का जवाब और हाई कोर्ट के तर्क:

जिन हाई कोर्ट के जजों की संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई, उन पर रिपोर्ट के बाद RTI के माध्यम से जानकारी माँगी गई। अधिकांश हाई कोर्ट ने जजों की संपत्ति का खुलासा ना करने के पीछे अलग-अलग कारण बताए हैं। बॉम्बे हाई कोर्ट का तर्क है कि वह RTI अधिनियम के तहत नहीं आता, जबकि उत्तराखंड हाई कोर्ट ने इस जानकारी को सार्वजनिक करने पर ऐतराज जताया है। गुवाहाटी हाई कोर्ट ने कहा कि उन्हें जजों की संपत्ति का खुलासा करने में कोई ‘जनहित’ नहीं दिखाई देता।

सुप्रीम कोर्ट की फुल बेंच का फैसला:-

सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार, 1997 में सुप्रीम कोर्ट की फुल बेंच ने यह प्रस्ताव पारित किया था कि प्रत्येक जज को अपनी संपत्ति का ब्यौरा चीफ जस्टिस को देना होगा। इसमें जज के पति/पत्नी और आश्रितों की संपत्ति का विवरण भी शामिल होगा। 2009 में सुप्रीम कोर्ट की फुल बेंच ने एक और निर्णय लिया था, जिसमें कहा गया था कि सभी जज अपनी संपत्ति का ब्यौरा वेबसाइट पर अपलोड कर सकते हैं, लेकिन यह उनके विवेक पर निर्भर करेगा कि वे इसे सार्वजनिक करना चाहते हैं या नहीं।

भारत में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की संपत्ति सार्वजनिक करने को लेकर अब तक कोई कानून नहीं बना है। जजों पर यह निर्भर करता है कि वे अपनी संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक करना चाहते हैं या नहीं। हालाँकि, मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के अंतिम दिनों में कानून मंत्रालय ने राज्यसभा की संसदीय समिति को जानकारी दी थी कि वह इस मुद्दे पर नियम बना रही है। 30 सदस्यों वाली इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया कि जजों को भी नेताओं और अफसरों की तरह अपनी संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करना चाहिए। इससे जनता का न्यायिक व्यवस्था पर विश्वास मजबूत होगा। केंद्र सरकार इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट से भी सलाह मशविरा कर रही है।

भ्रष्टाचार के आरोप और पारदर्शिता की माँग:

हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की संपत्ति सार्वजनिक करने की माँग लंबे समय से की जा रही है। इसके पीछे तर्क दिया जाता रहा है कि जजों का पद भी एक सार्वजनिक पद है और पारदर्शिता अनिवार्य है। कई मौकों पर हाई कोर्ट के जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे हैं। 2008 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की पूर्व जज निर्मला यादव पर ₹15 लाख की रिश्वत लेने का आरोप लगा था। यह रिश्वत एक जमीनी विवाद से जुड़े फैसले को प्रभावित करने के लिए दी गई थी, लेकिन गलती से रिश्वत का बैग दूसरे जज के पास पहुँच गया और यह मामला खुल गया।

इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जज एसएन शुक्ला पर भी आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज किया गया था। ऐसे कई उदाहरणों ने न्यायपालिका में पारदर्शिता की कमी की ओर इशारा किया है और इस मुद्दे पर सरकार और न्यायपालिका के बीच सहमति बनाने की जरूरत बढ़ गई है। आगे देखने वाली बात होगी कि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर किस तरह के कानून या नियम बनाती है और न्यायपालिका का इस पर क्या रुख होता है।

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