मोदी सरकार का 'वक्फ बिल' सही या गलत ? ओवैसी-इमरान मसूद समेत 31 सांसद बनाएंगे रिपोर्ट, हुआ JPC का ऐलान

मोदी सरकार का 'वक्फ बिल' सही या गलत ? ओवैसी-इमरान मसूद समेत 31 सांसद बनाएंगे रिपोर्ट, हुआ JPC का ऐलान
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नई दिल्ली: लोकसभा ने वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के गठन को मंजूरी दे दी है। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने जेपीसी में शामिल होने के लिए 21 लोकसभा सदस्यों और 10 राज्यसभा सांसदों के नाम प्रस्तावित किए हैं। JPC में गौरव गोगोई, इमरान मसूद, कृष्ण देवरायुलु, मोहम्मद जावेद, कल्याण बनर्जी, जगदंबिका पाल, निशिकांत दुबे, तेजस्वी सूर्या, दिलीप सैकिया, ए राजा, दिलेश्वर कामैत, अरविंद सावंत, नरेश मस्के, अरुण भारती और असदुद्दीन ओवैसी, अपराजिता सारंगी, संजय जयसवाल, अभिजीत गंगोपाध्याय, डीके अरुणा, मोहम्मद जावेद, मौलाना मोहिबुल्लाह नदवी, लावु श्री कृष्ण देवरायलू और सुरेश गोपीनाथ  जैसे लोकसभा सदस्यों को शामिल किया गया है।

वहीं, राज्यसभा से बृज लाल, डॉ मेधा विश्राम कुलकर्णी, गुलाम अली, डॉ राधा मोहन दास अग्रवाल, सैयद नसीर हुसैन, मोहम्मद नदीम उल हक, वी विजयसाई रेड्डी, एम मोहम्मद अब्दुल्ला, संजय सिंह, और डॉ धर्मस्थल वीरेंद्र हेगड़े को शामिल किया गया है। प्रस्तावित नामों के लिए प्रस्ताव राज्य सभा में पारित हो गया, जिसके बाद ऊपरी सदन की कार्यवाही अनिश्चित काल के लिए स्थगित हो गई। इससे पहले गुरुवार (9 अगस्त) को लोकसभा में पेश किए गए वक्फ (संशोधन) विधेयक को गहन बहस के बाद जेपीसी को सौंप दिया गया। सरकार ने दावा किया कि प्रस्तावित संशोधनों का उद्देश्य 1995 के मौजूदा वक्फ अधिनियम में आवश्यक सुधार लाना है, जबकि विपक्ष ने तर्क दिया कि विधेयक मुसलमानों को लक्षित करता है और संविधान पर हमला है।

क्या है वक्फ एक्ट और इसके पास कितने अधिकार :-

वक्फ अधिनियम को पहली बार नेहरू सरकार द्वारा 1954 में संसद द्वारा पारित किया गया था। इसके बाद, इसे निरस्त कर दिया गया और 1995 में एक नया वक्फ अधिनियम पारित किया गया, जिसमें वक्फ बोर्डों को और अधिक अधिकार दिए गए। 2013 में, मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने इसे असीमित अधिकार दे दिए। जिसके बाद ये प्रावधान हो गया कि अगर वक्फ किसी संपत्ति पर दावा ठोंक दे, तो पीड़ित अदालत भी नहीं जा सकता, ना ही राज्य और केंद्र सरकारें उसमे दखल दे सकती हैं। पीड़ित को उसी वक्फ के ट्रिब्यूनल में जाना होगा, जिसने उसकी जमीन हड़पी है, फिर चाहे उसे जमीन वापस मिले या ना मिले। 

यही कारण है कि बीते कुछ सालों में वक्फ की संपत्ति दोगुनी हो गई है, जिसके शिकार अधिकतर दलित, आदिवासी और पिछड़े समाज के लोग ही होते हैं। वक्फ कई जगहों पर दावा ठोंककर उसे अपनी संपत्ति बना ले रहा है और आज देश का तीसरा सबसे बड़ा जमीन मालिक है। रेलवे और सेना के बाद सबसे अधिक जमीन वक्फ के पास है, 9 लाख एकड़ से अधिक जमीन।  लेकिन गौर करने वाली बात तो ये है कि, रेलवे और सेना की जमीन के मामले अदालतों में जा सकते हैं, सरकार दखल दे सकती है, लेकिन वक्फ अपने आप में सर्वेसर्वा है। उसमे किसी का दखल नहीं और ना ही उससे जमीन वापस ली जा सकती है। मोदी सरकार इसी असीमित ताकत पर अंकुश लगाने के लिए बिल लाइ है, ताकि पीड़ित कम से काम कोर्ट तो जा सके और वक्फ इस तरह हर किसी की संपत्ति पर अपना दावा न ठोक सके। इस बिल को विपक्ष, मुस्लिमों पर हमला बताकर विरोध कर रहा है। सरकार ने विपक्ष की मांग को मानते हुए इसे JPC के पास भेजा है, जहाँ लोकसभा के 21 और राज्यसभा के 10 सांसद मिलकर बिल पर चर्चा करेंगे और इसके नफा-नुकसान का पता लगाएंगे। 

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