भोपाल: बांग्लादेश में जो हुआ, उसमे भारत के कुछ विपक्षी नेताओं को अवसर दिखाई दे रहा है। इसे भारत सरकार के खिलाफ एक हथियार की तरह देखा जा रहा है। शांतिपूर्ण आंदोलनों वाले देश भारत में बांग्लादेश जैसी हिंसा भड़काने वाले बयान दिए जा रहे हैं। अब इनमे मध्य प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री सज्जन सिंह वर्मा का नाम भी शामिल हो गया है। वर्मा ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया है कि बांग्लादेश की तरह भारत में भी लोग एक दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के घर पर धावा बोल देंगे। कांग्रेस नेता ने यह टिप्पणी उस वक़्त की, जब बांग्लादेश में हजारों प्रदर्शनकारियों ने सोमवार को राजधानी ढाका में शेख हसीना के आधिकारिक आवास पर तोड़फोड़ की थी। यह घटना शेख हसीना के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने और भारत में शरण के कुछ ही घंटों बाद हुई थी।
कांग्रेस कार्यकर्ताओं के सामने भाषण देते हुए सज्जन सिंह वर्मा ने कहा कि टीवी चैनल बता रहे हैं कि शेख हसीना और उनकी सरकार की गलत नीतियों के कारण पड़ोसी देश में नागरिक अशांति के दौरान बांग्लादेश के लोग प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास में घुस गए। उन्होंने केंद्र सरकार को धमकी देते हुए कहा कि, "नरेंद्र मोदी जी को याद रखिए, एक दिन आपकी गलत नीतियों के कारण लोग प्रधानमंत्री आवास में घुस जाएंगे और उस पर (पीएम आवास पर) कब्जा कर लेंगे। यह हाल ही में श्रीलंका में (2022 में) हुआ, जहां लोगों ने प्रधानमंत्री (राष्ट्रपति) के आवास में प्रवेश किया और फिर बांग्लादेश में और अब भारत की बारी है।"
वर्मा की टिप्पणी के बाद भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) ने कांग्रेस नेता के खिलाफ उनकी "राष्ट्र-विरोधी" भाषा के लिए मामला दर्ज करने की मांग की। भाजयुमो इंदौर शहर अध्यक्ष सौगत मिश्रा ने एमजी रोड पुलिस स्टेशन में अधिकारियों को एक ज्ञापन सौंपते हुए कहा कि वर्मा ने 140 करोड़ भारतीयों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस नेता इस तरह की टिप्पणियां करके सुर्खियों में बने रहने की कोशिश कर रहे हैं।
एडिशनल DCP (जोन-3) रामसनेही मिश्रा ने पुष्टि की है कि कांग्रेस नेता के खिलाफ शिकायत मिली है और इसकी जांच की जाएगी। अधिकारी ने कहा कि बयान की वीडियो फुटेज देखी जाएगी और मामले में आगे की कार्रवाई शुरू करने से पहले कानूनी राय ली जाएगी। बता दें कि कांग्रेस नेता सज्जन सिंह वर्मा की यह टिप्पणी ऐसे समय आई है जब पार्टी के एक अन्य नेता सलमान खुर्शीद ने भी इसी तरह का बयान दिया है। कांग्रेस के दिग्गज नेता खुर्शीद ने मंगलवार को कहा था कि पड़ोसी देश बांग्लादेश में जो हो रहा है, वह भारत में भी हो सकता है।
बांग्लादेश में क्या हुआ और भारतीय विपक्ष क्यों खुश ?
भारत के वामपंथी और विपक्षी नेता, शेख हसीना के इस्तीफे पर उसी तरह की प्रतिक्रिया दे रहे हैं, जैसे बांग्लादेश में कट्टरपंथी। लेकिन माना जा रहा है कि शेख हसीना के बाद जो सरकार काम करेगी, वो उसे कट्टरपंथ के रास्ते पर ही ले जाएगी, जहाँ पहुंचकर पाकिस्तान बर्बाद हो रहा है। अभी तक भारत में हो रहे अधिकतर आतंकी हमलों में पाकिस्तान का नाम आया करता था, बांग्लादेश से हमें उतना खतरा नहीं था। क्योंकि, वहां एक ऐसी सरकार शासन कर रही थी, जो कट्टर इस्लामी नहीं थी, लेकिन अब वक्त बदल गया है। बांग्लादेश में बंग बंधु के नाम से मशहूर शेख मुजीबुर रहमान का वही कद है, जो भारत में महात्मा गांधी का है। लेकिन, अब कट्टरपंथी अब मुजीबुर रहमान की हर निशानी मिटा रहे हैं, उनकी मूर्तियां तोड़ रहे हैं। यही मुजीबुर रहमान थे, जिन्होंने पाकिस्तानी सेना के खिलाफ आवाज़ उठाकर बांग्लादेशियों को बचाया था, जब पाकिस्तानी सेना बंगाली महिलाओं के बलात्कार कर रही थी। एक रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तानी सेना ने लगभग 4 लाख बंगाली महिलाओं के बलात्कार किए थे। इसी जंग में मुजीबुर रहमान ने भारत की मदद लेकर अलग देश की स्थापना की थी। ये मुजीबुर रहमान, शेख हसीना के पिता थे। 1971 की हार पाकिस्तान बर्दाश्त नहीं कर पाया और लगातार बांग्लादेश को अस्थिर करने की कोशिश में लगा रहा।
1971 में बने बांग्लादेश में 1975 में सेना ने कट्टरपंथियों से मिलकर तख्तापलट किया, और मुजीबुर रहमान समेत उनके परिवार के 17 सदस्यों को मार डाला। शेख हसीना जान बचाकर भागीं और जर्मनी पहुंची। बांग्लादेश बिखरने लगा था, जिसके बाद 1981 में शेख हसीना ने फिर वहां पहुंचकर लोकतंत्र की आवाज़ बनीं। सेना द्वारा शासित देश में उन्हें लंबे समय तक नज़रबंद रखा गया। बांग्लादेश में 1991 के लोकसभा चुनाव में हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग बहुमत हासिल करने में नाकाम रही। उनकी प्रतिद्वंद्वी BNP की खालिदा जिया प्रधानमंत्री बनीं। पांच साल बाद, 1996 के आम चुनाव में शेख हसीना ने जीत दर्ज की, लेकिन 2001 में उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया गया था, 2008 के चुनाव में वह प्रचंड जीत के साथ फिर सत्ता में लौट आईं। तब से खालिदा जिया के नेतृत्व वाली BNP मुश्किल में फंसी हुई है। इस बीच 2004 में शेख हसीना को मारने की कोशिश भी हुई, एक ग्रेनेड विस्फोट हुआ, जिसमे वे बाल बाल बचीं। बीते 15 सालों से बांग्लादेश पर लगातार शासन कर रहीं शेख हसीना के खिलाफ कट्टरपंथी तो उबले हुए थे ही, आरक्षण वाले मुद्दे पर उन्हें मसाला भी मिल गया।
जिस जमात ए इस्लामी को बांग्लादेश सरकार ने कुछ समय पहले ही आतंकी संगठन घोषित करते हुए प्रतिबंधित किया था, वही इस आंदोलन का सूत्रधार है। सूत्रों का ये भी कहना है कि इसमें पाकिस्तानी एजेंसी ISI का भी हाथ है। भारत के जो वामपंथी नेता शेख हसीना पर तानाशाह होने का आरोप लगा रहे हैं, वे चीन के शी जिनपिंग और उत्तर कोरिया के किम जोंग उन को तानाशाह कह सकते हैं ? उत्तर है 'नहीं'। क्योंकि, दोनों देशों में वामपंथ की ही सरकार है। शेख हसीना भारत समर्थक थीं, उनके शासन में बांग्लादेश अर्थव्यवस्था में पाकिस्तान से काफी आगे था। बांग्लादेश आज जहाँ 35 रैंक पर है, वहीं पाकिस्तान का रैंक 45 है। साथ ही उस पर पाकिस्तान जितना कर्ज भी नहीं है। अब खालिदा जिया के बंगलदेश के पीएम बनने के आसार हैं, जो कट्टरपंथी तो हैं ही, भारत की परम शत्रु और चीन की परम मित्र हैं। साथ ही खालिदा जिया, उस पाकिस्तानी कमांडर जियाउर रहमान की बेटी हैं, जिसने कश्मीर युद्ध में भारत के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। जियाउर रहमान बांग्लादेश के राष्ट्रपति भी रहे, और उनकी बेटी खालिदा वहां की पहली महिला प्रधानमंत्री। भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक के अनुसार, बांग्लादेश खालिदा जिया के कार्यकाल (2001-2005) के दौरान दुनिया का सबसे भ्रष्ट देश था। खालिदा जिया को कोर्ट ने भ्रष्टाचार के मामले में 17 साल जेल की सजा सुनाई थी, लेकिन अब वे बाहर आ रहीं हैं और बांग्लादेश पर शासन करेंगी।
अब अगर भारत के वामपंथियों को ये बदलाव पसंद आ रहा है और वे इसे स्वागत योग्य मानते हैं, तो ये उनकी सोच पर निर्भर करता है। लेकिन निश्चित तौर पर भारत के लिए ये चिंता का विषय है, क्योंकि अब बांग्लादेश में आतंकवाद तेजी से पैर पसारेगा और उसका निशाना भारत ही होगा। सालों पहले बांग्लादेश जिससे लड़कर अलग हुआ था, अब उसी पाकिस्तान का मित्र बनने जा रहा है।
बता दें कि, जनवरी 2024 में ही बांग्लादेश में चुनाव हुए थे, जिसमे शेख हसीना ने एकतरफा जीत दर्ज की थी। अगर वहां की जनता नहीं चाहती तो, क्या शेख हसीना जीत सकती थी ? इतनी तानाशाही थी, तो उसी समय जनता सड़कों पर उतर जाती और चुनाव ही ना होने देती। आज भी तो प्रधानमंत्री आवास में घुसी ही है। दरअसल, आंदोलन में प्रमुख मुद्दा था, आरक्षण का, जो 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में जान गंवाने वाले लोगों के परिजनों को दिया जा रहा था। विवाद के बाद शेख हसीना ने फैसला वापस भी ले लिया था, लेकिन कट्टरपंथी ताकतों को मुद्दा मिल चुका था। प्रतिबंधित आतंकी संगठन जमात ए इस्लामी ने आंदोलन को हाईजैक कर लिया और स्थिति बेकाबू हो गई। इस संगठन को शेख हसीना ने कुछ दिनों पहले ही प्रतिबंधित किया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी सही माना था, क्योंकि जमात ए इस्लामी की गतिविधियां कट्टरपंथी थीं। अफगानिस्तान में तालिबान ने कई प्रतिबंध लगा रखे हैं, कोई आंदोलन की खबर आई ? चीन तोप लगाकर मस्जिदें उड़ा रहा है, है वहां आंदोलन ? उत्तर कोरिया में तमाम तरह के प्रतिबंध हैं, किम जोंग उन के खिलाफ किसी की आवाज़ सुनाई देती है ? असल में ये है तानाशाही, जिसके खिलाफ आवाज़ उठाने की लोगों की हिम्मत नहीं होती. बहरहाल, अगर, भारतीय विपक्ष, शेख हसीना को तानाशाह कह रहा हैं, कट्टरपंथियों की हिंसा को जन आंदोलन बता रहा है, तो ये भारत के लिए चिंता का विषय है, इसकी जांच अवश्य होनी चाहिए, कि कहीं भीतरखाने कोई बड़ी साजिश तो नहीं रची जा रही।
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