मेहसाणा : इस बार गुजरात का चुनाव पीएम मोदी विरूद्ध हार्दिक पटेल बन गया है. क्योंकि जन चर्चाएं अनामत (आरक्षण), अभिमान और विकास के इर्द-गिर्द घूम रही हैं. मेहसाणा को गुजरात की राजनीतिक प्रयोगशाला कहा जाता है. पीएम मोदी और अमित शाह यहीं की देन है, तो हार्दिक पटेल का पाटीदार आंदोलन भी यहीं से शुरू हुआ. इस बीच बीजेपी से पाटीदारों की नाराजगी से कांग्रेस अगर जीत के ख्वाब देख रही है ,तो यह जल्दबाजी होगी, क्योंकि पाटीदारों की बीजेपी से नाराजगी के बाद भी कांग्रेस की जीत आसान नहीं है .
उल्लेखनीय है कि इस इलाके में पाटीदारों का बीजेपी के प्रति आक्रोश है. यहां हार्दिक की रैलियों में बड़ी संख्या में लोग भी जुट रहे हैं. लेकिन पाटीदारों के इस गुस्से को अभी कांग्रेस के पक्ष में मतदान के रूप में नहीं देखा जा सकता है, क्योंकि कई गांवों में पाटीदार आरक्षण विरोधी हैं और कांग्रेस के खिलाफ भी.
बता दें कि किसान बीजेपी की नीतियों से नाराज हैं, खासतौर से 2015 में पाटीदार आंदोलन के प्रति बीजेपी सरकार के रवैये से ज्यादा दुखी हैं. उस समय आंदोलन के दौरान 14 पाटीदार युवकों की मौत हुई थी .पाटीदारों का मानना है कि मेहसाणा के बीजेपी विधायकों ने तब आंदोलनकारियों का साथ नहीं दिया था.
अंजा गांव के कपास किसान श्रवण पटेल इसे आरक्षण के साथ आत्म सम्मान की लड़ाई बताया है.वहीँ हार्दिक को सभी पाटीदारों का समर्थन मिलता नहीं दिख रहा है. विजयनगर के वसई गांव के नानाभाई पटेल ने कहा, वह अब आरक्षण की बात भूल गए हैं और केवल बीजेपी को हराने पर जोर लगा रहे हैं. पाटीदारों को कांग्रेस से विकास की उम्मीद नहीं है. जबकि गुजराती मोदी को 2019 में फिर पीएम बनता भी देखना चाहते हैं. ऐसे असमंजस में कांग्रेस पाटीदारों की नाराजगी के भरोसे अपनी जीत की उम्मीद नहीं कर सकती.
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