जकार्ता: इंडोनेशिया, जो आज दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम आबादी वाला देश है, इसकी जड़ें हिंदू और बौद्ध धर्म की प्राचीन परंपराओं से जुड़ी हैं। भारत और इंडोनेशिया के ऐतिहासिक संबंध लगभग दो हजार साल पुराने हैं, और इन रिश्तों की झलक दोनों देशों की सांस्कृतिक और धार्मिक समानताओं में देखी जा सकती है। 26 जनवरी 2025 को भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबिआंतो मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। यह याद दिलाता है कि 1950 में पहले गणतंत्र दिवस के अवसर पर भी इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो ही भारत के मुख्य अतिथि थे। भारत और इंडोनेशिया के इस विशेष संबंध की जड़ें न केवल व्यापारिक रिश्तों में बल्कि सांस्कृतिक विरासत में भी गहराई तक फैली हैं।
इंडोनेशिया के इतिहास में चौथी शताब्दी ईसा पूर्व से ही हिंदू और बौद्ध धर्म का प्रभाव देखा गया। बुनी या मुनि सभ्यता इस देश की सबसे पुरानी सभ्यता मानी जाती है। दो हजार सालों तक यहां हिंदू और बौद्ध धर्म का दबदबा रहा। भारतीय उपमहाद्वीप से व्यापारियों और विद्वानों ने इस द्वीप समूह में हिंदू और बौद्ध धर्म का प्रसार किया। माजापहित साम्राज्य (13वीं सदी के अंत से 15वीं सदी तक) और उसके मुखिया गजाह मदा के शासनकाल को इंडोनेशिया का 'सुनहरा युग' कहा जाता है। उस समय इंडोनेशिया में रामायण और महाभारत जैसे भारतीय महाकाव्य न केवल लोकप्रिय थे, बल्कि उन्हें स्थानीय परंपराओं और कहानियों का हिस्सा बनाया गया। यहां तक कि आज भी इंडोनेशिया में इन ग्रंथों के पात्रों को झांकियों और कठपुतलियों के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
इजो मंदिर, इंडोनेशिया में दिव्य रंग सनातन।
— Praveen Joshi (@PraveenJoshiii) June 2, 2021
यह १०वीं सदी का हिंदू मंदिर गुमुक इजो पहाड़ी के पश्चिमी ढलान पर स्थित है, और इस परिसर में १ मुख्य मंदिर और ३ छोटे मंदिर हैं जो त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और शिव को समर्पित हैं।
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इंडोनेशिया में इस्लाम का आगमन 8वीं शताब्दी में हुआ, जब अरब व्यापारी इस द्वीप समूह में व्यापार करने आए। हालांकि, इस्लाम का प्रसार 13वीं सदी के अंत में शुरू हुआ। शुरुआती दौर में सुमात्रा और जावा के तटवर्ती क्षेत्रों में मुस्लिम व्यापारियों ने इस्लाम को फैलाया। व्यापारियों ने स्थानीय महिलाओं से विवाह किया और धीरे-धीरे शासक वर्ग ने भी इस्लाम धर्म अपनाना शुरू कर दिया। मार्को पोलो ने 1292 में इंडोनेशिया में मुस्लिम नगरों का उल्लेख किया था। सुलतान मलिक अल-सालेह को यहां के पहले मुस्लिम शासक के रूप में जाना जाता है। 15वीं सदी तक इस्लाम का प्रसार तेजी से होने लगा, खासकर मलक्का सुल्तानत की सैन्य शक्ति और व्यापारिक गतिविधियों के चलते। हालांकि, यह भी कहा जाता है कि कुछ क्षेत्रों में तलवार के बल पर धर्म परिवर्तन कराया गया।
आज इंडोनेशिया की 87% आबादी मुस्लिम है, जिनमें से अधिकांश सुन्नी मुसलमान हैं। इसके बावजूद, इस देश में हिंदू-बौद्ध संस्कृति की झलक साफ देखी जा सकती है। इंडोनेशिया के नोटों पर भगवान श्री गणेश की तस्वीर इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। यहां के लोग श्री गणेश को ज्ञान और समृद्धि का प्रतीक मानते हैं। यह उनकी सहिष्णुता और अपनी संस्कृति से प्रेम का परिचायक है। इसके अलावा, इंडोनेशिया में कई स्थानों और लोगों के नाम संस्कृत और अरबी के मिश्रण से रखे गए हैं। उदाहरण के लिए, बाली जैसे इलाकों में हिंदू रीति-रिवाज और मंदिर आज भी देखे जा सकते हैं।
इंडोनेशिया में अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को बनाए रखने की जो परंपरा है, वह इसे बाकी मुस्लिम देशों से अलग बनाती है। पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में जहां इस्लामी कट्टरपंथ और आतंकवाद ने अपनी जड़ें गहरी कर ली हैं, वहीं इंडोनेशिया में यह ज्यादा प्रभावी नहीं हो सका। इसका कारण यहां की सहिष्णु और समावेशी संस्कृति है, जो उसे भारत से विरासत में मिली है। भारत और इंडोनेशिया के संबंध व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर आधारित रहे हैं। इंडोनेशिया की भाषा, कला और परंपराओं में भारतीय प्रभाव साफ नजर आता है। यहां के लोगों का कहना है कि रामायण और महाभारत उनके अपने ग्रंथ हैं।
संस्कृति और धर्म के इस गहरे प्रभाव का ही नतीजा है कि दोनों देशों के संबंध न केवल राजनीतिक और आर्थिक स्तर पर बल्कि सांस्कृतिक स्तर पर भी मजबूत हैं। इंडोनेशिया का उदाहरण दिखाता है कि सांस्कृतिक विविधता और सहिष्णुता कैसे किसी देश की ताकत बन सकती है। इंडोनेशिया, भले ही मुस्लिम बहुल देश हो, लेकिन उसकी जड़ें हिंदू-बौद्ध परंपराओं में गहरी हैं। यह उसकी सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे वह आज भी गर्व से संजोए हुए है।