छात्रों ने नहीं, 'आतंकी' ने किया था हसीना का तख्तापलट! मोहम्मद यूनुस ने खुद कबूला

छात्रों ने नहीं, 'आतंकी' ने किया था हसीना का तख्तापलट! मोहम्मद यूनुस ने खुद कबूला
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ढाका: बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार का तख्तापलट, जिसे शुरू में छात्रों के स्वतःस्फूर्त आंदोलन का परिणाम बताया जा रहा था, वास्तव में लंबे समय से चल रही एक सोची-समझी साजिश का नतीजा था। इस तख्तापलट के पीछे असली मास्टरमाइंड कोई छात्र नेता नहीं, बल्कि हिज्ब-उल-तहरीर नामक आतंकी संगठन का सरगना महफूज आलम था। महफूज आलम और उसके आतंकी संगठन पर कई पश्चिमी देशों ने प्रतिबंध लगा रखा है।

इस सच्चाई का खुलासा बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मो. युनूस ने खुद किया। एक सार्वजनिक बयान में, उन्होंने महफूज आलम की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह वही व्यक्ति है, जिसने शेख हसीना की सरकार को गिराने की योजना बनाई और इसे सफल बनाया। युनूस ने यह भी कहा कि महफूज आलम चुपचाप काम करने में माहिर है और लंबे समय से इस साजिश को अंजाम देने के लिए काम कर रहा था। यह बयान युनूस ने अमेरिका में कई देशों के प्रमुख नेताओं के सामने दिया, जिससे वैश्विक स्तर पर हलचल मच गई।

 

रक्षा विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी और लेखिका तसलीमा नसरीन ने भी इस घटना पर अपनी राय देते हुए महफूज आलम को हिज्ब-उल-तहरीर से जुड़ा हुआ बताया। तसलीमा ने महफूज आलम को एक कट्टरपंथी बताते हुए कहा कि यह आतंकी संगठन लंबे समय से बांग्लादेश में सरकार गिराने की योजना बना रहा था, और अंततः इसे सफल बना दिया। चेलानी ने भी महफूज आलम की पृष्ठभूमि और उसकी साजिश का खुलासा करते हुए ट्वीट किया।

बांग्लादेश में इस तख्तापलट के पीछे छिपी साजिश का असर न केवल बांग्लादेश पर बल्कि भारत पर भी देखा जा सकता है। भारतीय विपक्ष इस तख्तापलट को लोकतंत्र की जीत बताकर खुश था। विपक्ष ने इसे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक राजनीतिक हथियार के रूप में भी प्रस्तुत किया, यह धमकियाँ देते हुए कि बांग्लादेश की तरह भारत की जनता भी मोदी के खिलाफ खड़ी होगी और प्रधानमंत्री को भागना पड़ेगा। लेकिन सच्चाई इससे उलट है। यह तख्तापलट न केवल बांग्लादेश के लिए, बल्कि भारत के लिए भी खतरनाक है। बांग्लादेश में पनप रहे कट्टरपंथ और आतंकवाद का असर भारत में भी दिखने लगा है। महफूज आलम जैसे आतंकी संगठनों के बढ़ते प्रभाव से भारत की सुरक्षा को गंभीर खतरा हो सकता है। यह न केवल लोकतंत्र पर बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता पर भी एक बड़ा हमला है।

इस घटना से भारत के विपक्ष के रुख पर सवाल उठने लगे हैं। क्या विपक्ष ने बिना सोचे-समझे इस तख्तापलट का समर्थन किया था? क्या यह सचमुच लोकतंत्र की जीत है, या आतंकवाद और कट्टरपंथ की सफलता? विपक्ष का शेख हसीना के खिलाफ और मोदी सरकार के विरोध में इसे एक लोकतांत्रिक आंदोलन के रूप में प्रस्तुत करना, वास्तव में भारत के हितों के खिलाफ है। यह तख्तापलट स्पष्ट रूप से कट्टरपंथ और आतंकवाद की जीत है, और भारत के लिए खतरे की घंटी है।

अगर भारत का विपक्ष इसे छात्रों का आंदोलन कहकर समर्थन करता है, तो वह यह भूल जाता है कि बांग्लादेश का स्थायित्व और सुरक्षा, भारत की सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण है। बांग्लादेश में आतंकवाद और कट्टरपंथ का उदय, भारत के लिए भविष्य में गंभीर सुरक्षा चुनौतियाँ पैदा कर सकता है। अभी यह देखना बाकी है कि युनूस के इस खुलासे का असली उद्देश्य क्या था, लेकिन एक बात तो स्पष्ट है कि यह तख्तापलट किसी भी लिहाज से लोकतंत्र की जीत नहीं है।

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