हाल ही में अगले साल भारत से जो लोग हज यात्रा करने के लिए जाएंगे उनको सभी प्रक्रिया का ऑनलाइन करनी होगी. जंहा इस तरह से भारत हज की पूरी प्रक्रिया का डिजिटल करने वाला पहला और एकमात्र देश बन गया है. दुनिया भर से हर साल लाखों लोग हज यात्रा के लिए सऊदी अरब पहुंचते हैं, इसे दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक माना जाता है.
फर्ज में शामिल हज यात्रा: सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मुस्लिमों को इस्लाम में जो फर्ज बताए गए हैं उनमें से एक ये भी है कि उनको अपने जीवनकाल में एक बार हज पर भी जाना है और वहां नियमों के अनुसार सभी चीजें करनी हैं. कुछ दिन पहले अल्पसंख्यक मामलों के कैबिनेट मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी सऊदी अरब गए थे, वहां उन्होंने सऊदी अरब के हज मंत्री डॉ.मोहम्मद सालेह बिन ताहिर के साथ बात की थी और समझौते पर हस्ताक्षर भी किए.
हज पर जाने वाले ई-मसीहा पर देंगे जानकारी: भारत सरकार ने सऊदी अरब सरकार के साथ जो समझौता किया है, उनमें सबसे खास ई-मसीहा स्वास्थ्य सुविधा है. इस सुविधा के तहत हर यात्री के स्वास्थ्य से जुड़ी छोटी सी छोटी जानकारी इसमें उपलब्ध होगी. यदि किसी हज यात्री को स्वास्थ्य से संबंधित कोई समस्या होगी तो इसी ऐप के जरिए उस यात्री को तुरंत मेडिकल सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी. डिजिटल प्रक्रिया के तहत ऑनलाइन आवेदन, ई-वीजा, मक्का-मदीना में ठहरने के इंतजाम और वहां के यातायात की जानकारी को जोड़ा गया है.
इन चीजों को करने के बाद पूरी होती हज यात्रा
इहराम: इसमें हज यात्रा करने वालों को खास तरह के कपड़े पहनने होते हैं. पुरुष दो टुकड़ों वाला एक बिना सिलाई का सफेद चोगा पहनते हैं. महिलाएं भी सेफद रंग के खुले कपड़े पहनती हैं जिनमें बस उनके हाथ और चेहरा बिना ढका रहता है. इस दौरान श्रद्धालुओं को सेक्स, लड़ाई-झगड़े, खुशबू और बाल व नाखून काटने से परहेज करना होता है.
तवाफ: मक्का में पहुंचकर श्रद्धालु तवाफ करते हैं यानि काबा का सात बार घड़ी की विपरीत दिशा में चक्कर लगाते हैं.
सई: हाजी मस्जिद के दो पत्थरों के बीच सात बार चक्कर लगाते हैं इसे सई कहते हैं. यह इब्राहिम की बीवी हाजरा की पानी की तलाश की प्रतिमूर्ति होता है.
अब तक उमरा: अब तक जो हुआ वह हज नहीं है, इसे उमरा कहते हैं. हज की मुख्य रस्में इसके बाद शुरू होती हैं. इसकी शुरुआत शनिवार से होती है जब हाजी मुख्य मस्जिद से पांच किलोमीटर दूर मीना पहुंचते हैं. अगले दिन लोग जबल उर रहमा नामक पहाड़ी के पास जमा होते हैं. मीना से 10 किलोमीटर दूर अराफात पहाड़ी के इर्द गिर्द जमा होकर लोग नमाज अता करते हैं.
मुजदलफा: सूरज छिपने के बाद हाजी अराफात और मीना के बीच स्थित मुजदलफा जाते हैं, वहां वे आधी रात तक रहते हैं. वहीं वे शैतान को मारने के लिए पत्थर जमा करते हैं. अगला दिन ईद के जश्न का होता है जब हाजी मीना लौटते हैं. वहां वे रोजाना के तीन बार के पत्थर मारने की रस्म निभाते हैं, इस रस्म के तहत यहां पहुंचे लोगों को आमतौर पर सात पत्थर मारने होते हैं.
पहली बार के बाद: पहली बार पत्थर मारने के बाद बकरे हलाल किए जाते हैं और जरूरतमंद लोगों के बीच मांस बांटा जाता है. बकरे की हलाली को अब्राहम के अल्लाह की खातिर अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी का प्रतीक माना जाता है.
कटवाते हैं बाल: इसके बाद हाजी अपने बाल कटाते हैं. पुरुष पूरी तरह गंजे हो जाते हैं जबकि महिलाएं एक उंगल बाल कटवाती हैं. ये भी एक रस्म होती है. यहां से वे अपने सामान्य कपड़े पहन सकते हैं.
फिर से तवाफ: हाजी दोबारा मक्का की मुख्य मस्जिद में लौटते हैं और काबा के सात चक्कर लगाते हैं. पत्थर मारने की रस्म अदायगी हाजी दोबारा मीना जाते हैं और अगले दो-तीन दिन तक पत्थर मारने की रस्म अदायगी होती है. पत्थर मारने के दौरान एक दो बार हादसे भी हो चुके हैं. यहां पर इस दौरान भगदड़ मच जाती है.
और फिर काबा, हज यात्रा पूरी: एक बार फिर लोग काबा जाते हैं और उसके सात चक्कर लगाते हैं, इसी के साथ हज यात्रा को पूरा माना जाता है.
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