नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार, 25 नवंबर 2024 को संविधान की प्रस्तावना से जुड़े एक अहम मामले में फैसला सुनाया। अदालत ने संविधान की प्रस्तावना में शामिल किए गए ‘सेक्युलर’ (धर्मनिरपेक्ष) और ‘सोशलिस्ट’ (समाजवादी) शब्दों को हटाने की मांग करने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया। याचिकाओं को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह संशोधन दशकों पहले हुआ था, और अब इतने सालों बाद इसे लेकर सवाल उठाने का कोई औचित्य नहीं है। हालाँकि, वो संशोधन सही था या गलत, इसपर सुप्रीम कोर्ट ने कोई टिपण्णी नहीं की है, सिर्फ अधिक समय हो जाने का हवाला देकर याचिका ख़ारिज कर दी है।
चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि भारतीय संसद को संविधान में संशोधन का अधिकार प्राप्त है। इसके तहत संसद को प्रस्तावना में भी संशोधन करने का अधिकार है। अदालत ने इस तथ्य को स्पष्ट करते हुए याचिकाओं को खारिज कर दिया। इससे पहले, 22 नवंबर 2024 को अदालत ने इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
यह याचिकाएँ भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय और वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने दायर की थीं। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि 1976 में आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी की सरकार ने संविधान की प्रस्तावना में ‘सेक्युलर’ और ‘सोशलिस्ट’ शब्द जोड़े थे। इन शब्दों का मूल प्रस्तावना में उल्लेख नहीं था और संविधान की प्रस्तावना में बदलाव करने की इजाजत किसी को भी नहीं है। याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि प्रस्तावना का मूल स्वरूप देश की लोकतांत्रिक नींव का प्रतीक है और उसमें बिना व्यापक बहस या जनमत के किए गए बदलाव उचित नहीं थे। हालांकि, अदालत ने इन दलीलों को खारिज करते हुए इसे संसद के अधिकार क्षेत्र का मामला बताया।
भारत की संविधान की मूल प्रस्तावना, जिसे 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया था, में ‘सेक्युलर’ और ‘सोशलिस्ट’ शब्द शामिल नहीं थे। ये शब्द 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से 1976 में जोड़े गए। उस समय देश में आपातकाल लगा हुआ था, और इसे इंदिरा गांधी सरकार द्वारा पारित किया गया था। इन शब्दों को लेकर भारत के राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में समय-समय पर बहस होती रही है। कई विचारक और नेता इसे मूल प्रस्तावना की भावना से अलग मानते हैं, जबकि कुछ इसे भारतीय संविधान के आदर्शों को बेहतर ढंग से व्यक्त करने वाला परिवर्तन मानते हैं।
इस फैसले के बाद यह स्पष्ट हो गया कि संविधान की प्रस्तावना में किए गए संशोधन वैध हैं और संसद की शक्ति के दायरे में आते हैं। इस निर्णय से संविधान में प्रस्तावना के शब्दों को लेकर चल रही बहस को एक महत्वपूर्ण मोड़ मिल सकता है। लेकिन अब अगर मौजूदा सरकार संविधान में कुछ संशोधन करती है और विपक्ष इस मामले में सुप्रीम कोर्ट पहुंचता है, तो सुप्रीम कोर्ट का क्या जवाब होगा ये देखने लायक होगा ? क्या सुप्रीम कोर्ट यही कहेगी कि ये संसद के अधिकार का मामला है, या फिर विपक्षी दलों के मुताबिक फैसला सुनाएगी? बहरहाल, फ़िलहाल एक देश-एक चुनाव के लिए संविधान में बदलाव अनिवार्य होगा, उस समय ये प्रक्रिया देखने को मिल सकती है।
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