नई दिल्ली: आज पूरा देश भारत में चार मठों की स्थापना करने वाले जगद्गुरु आदि शंकराचार्य की जयंती मना रहा है. शंकराचार्य का जन्म वैशाख की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को आठवीं सदी में केरल में हुआ था. उनके पिता का देहांत उनके बचपन में ही हो गया था. बचपन से ही शंकराचार्य का रुझान संन्यासी जीवन की ओर था. किन्तु उनके मां नहीं चाहती थीं कि वो संन्यासी जीवन अपनाएं. शंकराचार्य जयंती इस बार 17 मई को मनाई जा रही है.
कहा जाता है कि 8 वर्ष की आयु में एक बार शंकराचार्य जब अपनी मां शिवतारका के साथ नदी में स्नान करने पहुंचे थे. वहां उन्हें मगरमच्छ ने पकड़ लिया. जिसके बाद शंकराचार्य ने अपनी मां से कहा कि वो उन्हें संन्यासी बनने की इजाजत दे दें, वरना ये मगरमच्छ उन्हें मार देगा. जिसके बाद उनकी मां ने उन्हें संन्यासी बनने की मंजूरी दे दी. शंकराचार्य ने 32 साल की आयु में उत्तराखंड के केदारनाथ में समाधी ली. किन्तु इससे पहले उन्होंने हिंदू धर्म से जुड़ी कई रूढ़ीवादी विचारधाराओं से लेकर बौद्ध और जैन दर्शन को लेकर कई चर्चा की हैं. जिसके बाद शंकराचार्य को अद्वैत परम्परा के मठों के प्रमुखों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली उपाधि माना जाता है.
बता दें कि शंकराचार्य हिन्दू धर्म में सर्वोच्च धर्म गुरु का पद है, जो बौद्ध धर्म में दलाई लामा एवं ईसाई धर्म में पोप के समान समझा जाता है. इस पद की परम्परा आदि गुरु शंकराचार्य ने ही आरंभ की थी. शंकराचार्य ने सनातन धर्म के प्रचार और प्रतिष्ठा के लिए भारत के 4 कोनों में चार मठ स्थापित किए. उन्होंने अपने नाम वाले इस शंकराचार्य पद पर अपने चार मुख्य शिष्यों को बैठाया. जिसेक बाद इन चारों मठों में शंकराचार्य पद को निभाने की परंपरा शुरू हुई.
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