मार्कोनी ने नहीं बल्कि इस भारतीय वैज्ञानिक को जाता है रेडियो के अविष्कार का श्रेय

मार्कोनी ने नहीं बल्कि इस भारतीय वैज्ञानिक को जाता है रेडियो के अविष्कार का श्रेय
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भारतीयों की बुद्धिमत्ता का लोहा पूरी दुनिया मानती है. यहां तक कि जब भारत गुलाम था और शिक्षा के संस्थानों और वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए संसाधनों का भी मोहताज था, उस वक़्त भी भारत ने विज्ञान के क्षेत्र में कई झंडे गाड़े थे. ऐसे ही एक भारतीय वैज्ञानिक हैं, जगदीश चंद्र बसु. आज प्रो. जगदीश बसु की पुण्यतिथि है. 23 नवंबर, 1937 को उन्होंने देहत्याग किया था.

जगदीश चंद्र बसु को ही रेडियो और माइक्रोवेव ऑप्टिक्स के आविष्कार का श्रेय जाता है. आमतौर पर भारतीय उन्हें उस वैज्ञानिक के रूप में याद करते हैं, जिसने पेड़ों में जीवन होने की खोज की थी. बसु का जन्म 30 नवंबर, 1858 को मेमनसिंह के ररौली गांव में हुआ था. मौजूदा समय में यह स्थान बांग्लादेश में है. बसु ने अपनी शुरुआती शिक्षा गांव के ही एक स्कूल में ली थी. इस स्कूल को उनके पिता ने ही स्थापित किया था. उनके संबंध में कहा जाता है कि आर्थिक रूप से संपन्न उनके पिता आसानी से उन्हें किसी अंग्रेजी स्कूल में भेज सकते थे, किन्तु वे चाहते थे कि बेटा मातृभाषा सीखे और अंग्रेजी की शिक्षा लेने से पहले अपनी संस्कृति के संबंध में अच्छी तरह से जान ले.

1884 में बसु ने नेचुरल साइंस में बैचलर की डिग्री ली और लंदन यूनिवर्सिटी से साइंस में भी बैचलर किया. बसु ने केस्कोग्राफ नाम के एक यंत्र का आविष्कार किया. यह आस-पास मौजूद अलग-अलग तरंगों को माप सकता था. बाद में उन्होंने पेड़-पैधों में जीवन साबित करने का एक प्रयोग रॉयल सोसाइटी में किया और पूरे विश्व ने उनकी खोज को सराहा. उन्होंने पौधे की उत्तेजना को एक चिन्ह के माध्यम से मशीन में दिखाया हुआ था. इसके बाद बसु ने उस पौधे की जड़ में ब्रोमाइड डाली. जिससे पौधे की गतिविधियां अनियमित होने लगीं. इसके बाद पौधे की उत्तेजना मापने वाले यंत्र ने कोई भी गतिविधि दिखाना बंद कर दिया. जिसका मतलब था कि पौधे की मौत हो चुकी है. कहा जाता है उनके द्वारा खोजे गए वायरलेस रेडियो जैसे यंत्र से ही रेडियो का अविष्कार हुआ. मगर अपने नाम से पेटेंट करा लेने के कारण रेडियो के आविष्कार का श्रेय मार्कोनी को दिया जाता है.

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