पुरी: ओडिशा के जगन्नाथ पुरी मंदिर का सबसे बड़ा और अहम आयोजन पूरी रथ यात्रा है। यह यात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को आरम्भ होती है तथा आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को इसका समापन होता है। ये उत्सव पूरे 10 दिनों तक मनाया जाता है. रथयात्रा के चलते भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र एवं बहन सुभद्रा की मूर्तियों को तीन भिन्न-भिन्न दिव्य रथों पर नगर भ्रमण कराया जाता है. इस वर्ष जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत 20 जून से होगी. भगवान जगन्नाथ गुंडीचा मंदिर जाएंगे. इस उत्सव के लिए पुरी नगर देश भर के कृष्ण भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र होता है। जगन्नाथपुरी का वर्णन स्कन्द पुराण के साथ-साथ नारद पुराण में भी किया गया है।
जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत के स्वामी होता है। 12वीं शताब्दी में बने श्री जगन्नाथ मंदिर के सामने लकड़ी से बने 3 विशाल रथ सजा-धजा कर खड़े किए जाते हैं, जिन्हें हजारों लोग मोटी-मोटी रस्सियों से खींचते है। तीनों रथ भगवान जगन्नाथ, भाई बलरामजी तथा उनकी बहन सुभद्राजी के होते हैं। रथ यात्रा उत्सव 9 दिनों तक चलता है।
रथ यात्रा का विस्तृत वर्णन:-
इस रथ यात्रा की शुरुआत से पहले भगवान जगन्नाथजी के रथ के सामने सोने के हत्थे वाली झाडू लगाई जाती है। तत्पश्चात, मंत्रोच्चार एवं जयघोष के साथ ढोल, नगाड़े और तुरही बजा कर रथों को खींचा जाता है। इस रथ यात्रा की शुरुआत सबसे पहले बड़े भाई बलरामजी के रथ से होती है। तत्पश्चात, बहन सुभद्राजी और फिर अंत में जगन्नाथ जी के रथ को चलाया जाता है। तीनों भाई-बहन के रथों के रंग अलग होते हैं तथा नाम भी अलग-अलग होते हैं। भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘गरुड़ध्वज” या ‘कपिलध्वज” कहा जाता है। यह इन तीनों रथों में सबसे बड़ा होता है। इसमें कुल 16 पहिए लगे होते हैं। इस रथ की ऊंचाई 13.5 मीटर होती है। इस रथ में लाल एवं पीले रंग के कपड़े का उपयोग होता है। रथ की रक्षा गरुड़ करते हैं। रथ पर लगे ध्वज को ‘त्रैलोक्यमोहिनी” बोलते हैं। बलरामजी का रथ ‘तलध्वज” के नाम से पहचाना जाता है। यह भगवान जगन्नाथ के रथ से छोटा मगर सुभद्राजी से रथ से बड़ा होता है जिसकी ऊंचाई 13.2 मीटर होती है। बलरामजी के रथ में लाल एवं हरा कपड़े का उपयोग होता है। इस रथ में कुल 14 पहिए लगे होते हैं। इस रथ के रक्षक वासुदेव और सारथी मताली होते हैं।
सुभद्राजी के रथ को ‘पद्मध्वज” बोला जाता है। यह रथ 12.9 मीटर ऊंचा होता है तथा इसमें कुल 12 पहिए लगे होते हैं। इस रथ में लाल, काले कपड़े का उपयोग होता है। रथ की रक्षक जयदुर्गा व सारथी अर्जुन होते हैं। मौसी के घर पहुंच कर संपन्न होती है यात्रा। जगन्नाथ जी की रथ यात्रा पुरी से गुंडिचा मंदिर पहुंचकर पूरी होती है। इस मंदिर को भगवान की मौसी का घर माना जाता है। इस मंदिर में भगवान को एक सप्ताह तक ठहराया जाता है, जहां वे आराम करते हैं तथा उनकी पूजा की जाती है। इस मंदिर में यानी मौसी के घर पर तीनों को स्वादिष्ट पकवानों का भोग लगाया जाता है। तत्पश्चात, भगवान जगन्नाथ बीमार भी पड़ते हैं। यही नहीं उन्हें पथ्य का भोग लगा कर जल्द ठीक भी कर दिया जाता है।
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