आप सभी को बता दें कि जगन्नाथ पुरी में विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा का शुभारंभ आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से होता है और इस यात्रा में भगवान कृष्ण और बलराम अपनी बहन सुभद्रा के साथ रथों पर सवार होकर 'श्री गुण्डिचा' मंदिर के लिए प्रस्थान करेंगे और अपने भक्तों को दर्शन देंगे. यह इस बार 4 जुलाई से शुरू हो रही है. जी हाँ, वहीं जगन्नाथ रथयात्रा प्रत्येक वर्ष की आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को प्रारंभ होती है और यह आषाढ़ शुक्ल दशमी तक नौ दिन तक चलती है. वहीं यह रथयात्रा वर्तमान मन्दिर से 'श्री गुण्डिचा मंदिर' तक जाती है इस कारण इसे 'श्री गुण्डिचा यात्रा' भी कहते हैं.
आप सभी को बता दें कि इस यात्रा हेतु लकड़ी के तीन रथ बनाए जाते हैं- बलरामजी के लिए लाल एवं हरे रंग का 'तालध्वज' नामक रथ; सुभद्राजी के लिए नीले और लाल रंग का 'दर्पदलन' या 'पद्म रथ' नामक रथ और भगवान जगन्नाथ के लिए लाल और पीले रंग का 'नंदीघोष' या 'गरुड़ध्वज' नामक रथ बनाया जाता है. वहीं इन रथों का निर्माण कार्य अक्षय तृतीया से प्रारंभ होता है और रथों के निर्माण में प्रत्येक वर्ष नई लकड़ी का प्रयोग होता है. कहते हैं इस लकड़ी चुनने का कार्य वसंत पंचमी से प्रारंभ होता है और रथों के निर्माण में कहीं भी लोहे व लोहे से बनी कीलों का प्रयोग नहीं किया जाता है. वहीं रथयात्रा के दिन तीनों रथों को मुख्य मंदिर के सामने क्रमशः खड़ा किया जाता है और इनमे सबसे आगे बलरामजी का रथ 'तालध्वज' बीच में सुभद्राजी का रथ 'दर्पदलन' और तीसरे स्थान पर भगवान जगन्नाथ का रथ 'नंदीघोष' होता है.
आपको बता दें कि रथयात्रा के दिन प्रात:काल सर्वप्रथम 'पोहंडी बिजे' होती है और भगवान को रथ पर विराजमान करने की क्रिया 'पोहंडी बिजे' कहलाती है. उसके बाद पुरी राजघराने वंशज सोने की झाडू से रथों व उनके मार्ग को बुहारते हैं जिसे 'छेरा पोहरा' कहा जाता है और 'छेरा पोहरा' के बाद रथयात्रा प्रारंभ होती है.
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