बेंगलुरूः बीते दिनों हिंदी दिवस के मौके पर गृह मंत्री अमित शाह द्वारा दिए बयान से राजनीति में उबाल आ गया है। खासकर दक्षिण भारत के राज्य इसका तीखा विरोध कर रहे हैं। इस बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश भी इस बहस में कूद गए हैं। देश में हिंदी को पूरे देश की भाषा के तौर पर अपनाने की बहस पर उन्होंने कहा कि यह हकीकत से परे है। राज्यसभा से सांसद रमेश ने कहा कि पूर्व पीएम जवाहरलाल नेहरु की विरासत को धूमिल करने और उसे मिटाने के लिए उन पर कुछ ताकतें हर दिन हमले कर रही है।
उन्होंने कहा कि अगर नेहरु के विचारों का परित्याग किया गया तो भारत का विचार ही समाप्त हो जाएगा। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने अपने भाषण की शुरुआत राज्यपाल, मुख्यमंत्री और अन्य गणमान्य व्यक्तियों को अंग्रेजी, कन्नड़, हिंदी में संबोधित करते हुए की। उन्होंने कहा कि मैं एक मिनट में तीन भाषाओं में बोला, केवल आपको संदेश देने के लिए...। उन्होंने कहा कि हमारे यहां एक देश..एक कर हो सकता है, एक देश..एक चुनाव हो सकता है लेकिन किसी भी परिस्थिति में हमारे यहां एक देश एक संस्कृति, एक देश एक भाषा नहीं हो सकती।
अमित शाह ने शनिवार को देश की साझी भाषा के तौर पर हिंदी को अपनाने की वकालत की थी, जिसके बाद इस मुद्दे पर चर्चा शुरू हो गई थी। दक्षिण के विभिन्न राजनीतिक दलों ने कहा कि वे भाषा को ‘थोपने’ के किसी भी प्रयास का विरोध करेंगे। कांग्रेस ने भी कहा कि संविधान ने जिन ‘संवेदनशील’ मुद्दों का समाधान कर दिया था, उनको लेकर नए सिरे से विवाद नहीं पैदा किया जाना चाहिए। शाह ने कहा था कि भाषा की विविधता भारत की ताकत है लेकिन एक राष्ट्रीय भाषा की जरूरत है ताकि विदेशी भाषाएं और संस्कृतियां देश की भाषा और संस्कृति पर हावी नहीं हों। बता दें कि गृह मंत्री के बयान पर काफी बवाल मचा था।
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