लखनऊ: संभल ! उत्तर प्रदेश का वो जिला, जिसका कई पुराणों में जिक्र है। भारतीय धर्मग्रंथों में ये स्पष्ट लिखा गया है कि भगवान विष्णु का अंतिम अवतार इसी संभल में जन्म लेगा, जो klki नाम से विख्यात होगा और कलियुग का अंत करेगा। लेकिन, कभी हिन्दू संस्कृति से समृद्ध रहा ये शहर आज हिन्दू विहीन हो चुका है, विभिन्न समय पर हुए दंगों के कारण हिन्दुओं को यहाँ से पलायन करना पड़ा और धीरे-धीरे पूरे क्षेत्र पर मुस्लिमों का अधिकार हो गया। आज संभल में 78 फीसद मुस्लिम आबादी है, और हिन्दुओं की तीर्थनगरी में प्राचीन मंदिर तथा कूप वीरान पड़े हैं। लेकिन, इन मंदिरों में सबसे महत्वपूर्ण मंदिर माना जाता है हरिहर मंदिर, विष्णु भगवान को समर्पित ये मंदिर, शहर के बीचों बीच बना हुआ था।
लेकिन, अयोध्या, काशी, मथुरा सहित कई अन्य प्राचीन मंदिरों की तरह इस्लामी आक्रांताओं की मजहबी नफरत से ये हरी हर मंदिर भी ना बच सका। मुगल आक्रांता बाबर ने इस मंदिर को आंशिक रूप से तुड़वाकर उसकी जगह मस्जिद का निर्माण करवा दिया था। बाबर ने खुद अपनी आत्मकथा बाबरनामा में बड़ी शान से मंदिर तोड़ने का जिक्र किया है। बाबरनामा के पेज संख्या 687 पर बताया गया है कि बाबर जुलाई 1529 में संभल आया था। बाबर के फरमान पर ही श्री हरि हर मंदिर को आंशिक रूप से ध्वस्त कराया गया और फिर उस पर कब्जा करके मस्जिद के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया गया। कई बार हिन्दुओं ने इसे वापस पाने की कोशिश भी की, लेकिन मुगलों की लंबी गुलामी और फिर अंग्रेजी शासन के आगे उनकी एक ना सुनी गई। देश आज़ाद हुआ, तब हिन्दुओं को थोड़ी उम्मीद बंधी कि अब उनके साथ न्याय होगा और उनकी प्राचीन धरोहरें उन्हें वापस मिलेंगी जिनके लिए उनके पूर्वजों ने प्राण तक गंवा दिए। लेकिन 1991 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने पूजा स्थल अधिनियम लाकर हिन्दुओं के लिए ये रास्ता भी बंद कर दिया।
हिन्दू अब किसी भी स्थल पर दावा नहीं कर सकते थे, और ना ही कोर्ट जा सकते थे, जो मंदिर मुगल आक्रांताओं द्वारा तोड़ दिए गए थे, उनके स्थानों पर मस्जिदें बना दी गई थी, उनका कब्जा अब और पक्का हो चुका था। लेकिन, हाल ही में अयोध्या का फैसला आने के बाद और पूर्व CJI डीवाई चंद्रचूड़ द्वारा ये कहने के बाद कि पूजा स्थल अधिनियम किसी धर्मस्थल का धार्मिक चरित्र का पता लगाने से नहीं रोकता, यानी ये तो पता किया ही जा सकता है कि मौजूदा ढांचा पहले क्या था ? इसके बाद हिन्दुओं ने फिर हिम्मत जुटाकर श्री हरिहर मंदिर को वापस पाने की कोशिश की है। जिसके लिए कोर्ट ने सर्वे का आदेश दिया। हालाँकि, ये सर्वे भी आसानी से नहीं हुआ, क्योंकि मुस्लिम समुदाय किसी भी तरह के सर्वे का विरोध कर रहा था। उनका कहना है कि जहाँ एक बार मस्जिद बन जाती है, वहां फिर हमेशा मस्जिद ही रहती है। मुस्लिम समुदाय ये भी मानने को तैयार नहीं कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई, जबकि बाबर खुद लिख रहा है। इरफ़ान हबीब जैसे कुछ मुस्लिम इतिहासकार खुलकर कहते भी हैं कि हाँ मुगलों ने कई मंदिर तोड़े, लेकिन अब उन्हें वापस नहीं दिया जा सकता। किन्तु, हिन्दू समुदाय कुछ बेहद ही महत्वपूर्ण मंदिर वापस पाने की मांग कर रहा है, और अदालतों से गुहार लगा रहा है। जिसमे काशी विश्वनाथ का मंदिर, मथुरा की श्री कृष्ण जन्मभूमि, संभल में हरिहर मंदिर शामिल है।
इसी हरिहर मंदिर की जगह आज जामा मस्जिद खड़ी है और कोर्ट ने इसका सर्वे करने का आदेश दिया था, जो काफी हिंसा और आगज़नी के बाद पूरा हो पाया था। अब उस सर्वे की 45 पन्नों की रिपोर्ट कोर्ट में पेश कर दी गई है, जिसमे वहां मंदिर होने के कई सबूत मिले हैं। रिपोर्ट के अनुसार, ढाँचे के अंदर 50 से अधिक फूल की कलाकृतियां, बरगद के दो पेड़, एक कुआं, और गुंबद के बीच लटकने वाली लोहे की जंजीर शामिल है। इस जंजीर में अभी झूमर टंगा हुआ है। साथ ही सर्वे रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि, मस्जिद के पुराने ढांचे को बदलने के सबूत भी मिले हैं।
उल्लेखनीय है कि, 19 नवंबर को विवादित मस्जिद के भीतर डेढ़ घंटे तक वीडियोग्राफी हुई थी, और अगले दिन भी लगभग तीन घंटे का सर्वे हुआ। इस दौरान ASI की टीम ने 1200 से अधिक तस्वीरें ली और वीडियो बनाए। अब एडवोकेट कमिश्नर रमेश राघव ने सिविल जज सीनियर डिवीजन आदित्य सिंह की अदालत में सीलबंद लिफाफे में सर्वे की रिपोर्ट दाखिल कर दी है। रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि ढाँचे में मिले सबूतों को देखकर कहा जा सकता है कि, इस स्थान पर कभी मंदिर रहा होगा। दरअसल, ढांचे में हिंदू धर्म से जुड़ी 50 से अधिक कलाकृतियां पाई गई हैं। इनमें फूल की नक्काशी और बरगद के पेड़ शामिल हैं, कई मंदिरों में बरगद के पेड़ की पूजा होती है। ASI टीम को ढाँचे के अंदर एक कूप (कुआँ) भी मिला है, जिसका आधा हिस्सा बाहर और आधा अंदर की तरफ है, बाहर वाले हिस्से को ढंक दिया गया है, ताकि कुआँ किसी को दिखाई ना दे। बता दें कि, हिन्दुओं के पौराणिक ग्रंथों में संभल में 84 कोसी परिक्रमा मार्ग, 68 तीर्थ और 19 कूप का जिक्र मिलता है। माना जा रहा है कि, ढाँचे के अंदर मिला कूप इनमे से ही एक है। इसके अलावा भी खुदाई के दौरान संभल में प्राचीन कूप मिले हैं, जिसे ढंक दिया गया था।
वहीं, ASI की रिपोर्ट के अनुसार, जामा मस्जिद के गुंबद के हिस्से को सपाट कर दिया गया है, और नया निर्माण किया गया है। वहीं, जो दीवारें और खंबे मंदिर की तरह दिखते हैं, उन्हें प्लास्टर और पेंट से ढकने की कोशिश की गई है। झूमर जिस जंजीर से लटका हुआ है, वह ऐसी जंजीर है, जो अक्सर मंदिरों में घंटा लटकाने के लिए इस्तेमाल होती है। इसके अलावा, ढाँचे के अंदर ऐसे कई प्रतीक भी मिले हैं जो प्राचीन मंदिरों में होते थे। दरवाजों, झरोखों, और दीवारों पर प्लास्टर कर पुरानी नक्काशी को छिपाने का प्रयास किया गया है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि मुस्लिम समुदाय द्वारा प्राचीन शिलालेखों के साथ छेड़छाड़ की गई है, और ऐसा लगता है कि पुरानी लिखावट को मिटाकर नई लिखावट शामिल की गई है।
बता दें कि, इस स्थान पर मंदिर होने के सबूत सरकारी दस्तावेज़ों में भी मिले हैं। मंडलीय गजेटियर के अनुसार, अबुल फजल द्वारा लिखे गए 'आइन-ए-अकबरी' में संभल में भगवान विष्णु के प्रसिद्ध हरि हर मंदिर का जिक्र है। अबुल फजल ने लिखा है कि, संभल के बीचों बीच एक टीले पर विशाल मंदिर है, जो हिन्दू देवता भगवान विष्णु को समर्पित है। इस मंदिर के निर्माण में पृथ्वीराज चौहान, राजा जगत सिंह और बरन के डोड राजा विक्रम सिंह के परपोते नाहर सिंह का नाम सामने आता है।
वहीं, एचआर नेविल ने मुरादाबाद गजेटियर (1911) में लिखा है कि, '(हरिहर मंदिर) मंदिर अब अस्तित्व में नहीं है। इसकी जगह पर अब मस्जिद बन चुकी है। पूरे मस्जिद भवन पर प्लास्टर है और इससे निर्माण सामग्री के विषय में सुनिश्चित मत असंभव है। प्रखंडों को खंभो की कतार के जरिए दो गलियारों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक गलियारा तीन मेहराबदार निकासों के माध्यम से जरिए खुलता है। यानी बाबर कह रहा है कि, उसने मंदिर तोड़ा, अबुल फजल लिख रहा है कि मंदिर था, सरकारी दस्तावेज़ कह रहे कि मंदिर था, ASI की रिपोर्ट में मंदिर होने के प्रमाण मिले हैं, लेकिन मुस्लिम समुदाय मानने को राजी नहीं है। उनका पहला तर्क ये है कि अगर मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई भी गई है, तो कांग्रेस सरकार द्वारा 1991 में बनाए गए पूजा स्थल कानून के तहत अब कुछ नहीं हो सकता। अब वो स्थन हमेशा के लिए मस्जिद का ही रहेगा। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने इसी पूजा स्थल कानून का हवाला देकर फ़िलहाल निचली अदालतों को फैसला देने से रोक दिया है। लेकिन, अगर पूजा स्थल कानून ख़त्म हो जाता है, तो कोई रास्ता निकल सकता है, जिससे सदियों से पीड़ित हिन्दुओं को न्याय मिल सके।
बता दें कि, इस मामले में 19 नवंबर 2024 को सिविल कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। उसी दिन अदालत ने मस्जिद के अंदर सर्वे का आदेश दिया था। सर्वे के दौरान 24 नवंबर को मस्जिद के बाहर मुस्लिमों की भारी भीड़ जमा हो गई, जो सर्वे का विरोध कर रही थी, उन्होंने पुलिस पर पत्थरबाजी शुरू कर दी। पुलिस के हथियार छीन लिए और उनके वाहनों में आग लगा दी। इस हिंसा में पांच लोगों की जान चली गई, जिससे स्थिति और तनावपूर्ण हो गई। अब ये रिपोर्ट अदालत में जमा हो चुकी है, जो स्पष्ट कहती है कि पहले यहाँ मंदिर होने के सबूत मिले हैं, अब देखना ये है कि अदालत इस मामले पर क्या कार्रवाई करती है ?