'संविधान नहीं, क़ुरान को मानेंगे..', अहमदाबाद ब्लास्ट के आतंकियों को बचाने के लिए हाई कोर्ट जाएगा जमीयत उलेमा-ए-हिंद

'संविधान नहीं, क़ुरान को मानेंगे..', अहमदाबाद ब्लास्ट के आतंकियों को बचाने के लिए हाई कोर्ट जाएगा जमीयत उलेमा-ए-हिंद
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लखनऊ: अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट केस में स्पेशल कोर्ट ने 18 फरवरी 2022 को 38 आतंकियों को फाँसी की सजा सुनाई है। वहीं, 11 अन्य दोषियों को उम्र कैद की सजा सुनाई गई है। अब जमीयत उलेमा-ए-हिंद इन आतंकियों के बचाव में उतर आया है। उसने इनके लिए बड़ी कोर्ट में कानूनी जंग लड़ने की बात कही है। वहीं इस आतंकी हमले के मास्टरमाइंड सफदर नागौरी ने देश के संविधान की बजाए कुरान को तरजीह देने की बात कही है। नागौरी को भी फाँसी की सजा सुनाई गई है और अभी वह भोपाल सेंट्रल जेल में कैद है।

जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने स्पेशल कोर्ट के फैसले को ‘अविश्वसनीय’ करार दिया है। साथ ही मदनी ने इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देने का ऐलान किया है। बता दें कि मौलाना अरशद मदनी दारुल उलूम देवबंद के प्रिंसिपल भी हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, मदनी ने कहा है कि जिनको सजा सुनाई गई है, उच्च न्यायालय में उनकी पैरवी देश के बड़े वकील करेंगे। उन्होंने कहा है कि जरूरत पड़ी तो उन्हें (आतंकियों को) बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट भी जाएंगे।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इस ब्लास्ट के मास्टरमाइंड नागौरी के साथ प्रतिबंधित संगठन SIMI के 5 अन्य आतंकी भी भोपाल की जेल में कैद हैं। इनके नाम शिवली, शादुली, आमिल परवेज, कमरुद्दीन नागौरी, हाफिज और अंसाब बताए गए हैं। इनमें अंसाब को उम्रकैद और अन्य 5 को फाँसी की सजा सुनाई गई है। रिपोर्ट के मुताबिक, सजा सुनाए जाने के बाद बाद भी नागौरी के चेहरे पर कोई शिकन नज़र नहीं आई। उसने जेल अधीक्षक दिनेश नरगावे से कहा कि, 'हमारे लिए संविधान मायने नहीं रखता, हम कुरान का फैसला मानते हैं।'

बता दें कि पीएम मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, उस वक़्त अहमदाबाद शहर में 26 जुलाई 2008 को करीब 70 मिनट के अंदर 21 बम ब्लास्ट हुए थे। इन धमाकों में 56 लोगों की जान चली गई थी और लगभग 200 लोग जख्मी हो गए थे। इस मामले में अहमदाबाद पुलिस ने 20 FIR दर्ज की थी, जबकि सूरत में अलग से 15 FIR दर्ज की गईं थी। वहीं, हमला करने वाले आतंकियों ने खुद माना था कि उन्होंने गोधरा कांड (गुजरात दंगे) का बदला लेने के लिए इस हमले की साजिश रची थी। ऐसे में जमीयत उलेमा-ए-हिन्द का उनके बचाव में उतरना सीधा आतंकियों का समर्थन करना नहीं तो फिर क्या है ?

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