श्रीनगर: जम्मू कश्मीर के अनंतनाग जिले के कोकरनाग में मंगलवार (8 अक्टूबर, 2024) को आतंकवादियों ने टेरिटोरियल आर्मी के दो जवानों का अपहरण कर लिया। इस घटना में एक जवान आतंकियों के चंगुल से बचकर निकलने में सफल रहा, जबकि दूसरे जवान की हत्या कर दी गई। बलिदानी जवान का नाम हिलाल अहमद भट था, और उनका पार्थिव शरीर बुधवार (9 अक्टूबर, 2024) को गोलियों के निशान के साथ बरामद किया गया। पुलिस और सेना ने आतंकियों की तलाश के लिए सर्च ऑपरेशन शुरू कर दिया है।
जम्मू कश्मीर में इस साल लोकसभा चुनावों के बाद आतंकियों की गतिविधियों में वृद्धि देखी गई है, खासकर तब जब वे कम संख्या में जवानों को निशाना बनाते हैं। आतंकवादी हमले अब कश्मीर के अलावा जम्मू क्षेत्र में भी बढ़ रहे हैं, और इनमें पाकिस्तान के कमांडो भी शामिल बताए जा रहे हैं। इस घटना पर विचार करते हुए, यह सवाल उठता है कि क्या हिलाल अहमद भट, जो एक कश्मीरी और देश के सच्चे सिपाही थे, के बलिदान पर कश्मीर के नेता और जनता वैसे ही शोक मनाएंगे, जैसे उन्होंने लेबनानी आतंकी संगठन हिज़बुल्लाह के सरगना नसरल्लाह की मौत पर मनाया था? नसरल्लाह के मारे जाने के बाद भारत के कई इलाकों में मातम मनाया गया था, कैंडल मार्च निकाले गए थे, और मुस्लिम समुदाय ने इजराइल को आतंकी करार दिया था।
Spare few moments to remember Braveheart from #Kashmir Rifleman Hilal Ahmed Bhat who was abducted by the terrorists yesterday and his dead body was found today in #Pathribal Forest.
— Brigadier Hardeep Singh Sohi,Shaurya Chakra (R) (@Hardisohi) October 9, 2024
This brutal murder will certainly be avenged by #IndianArmy.
Jai Hind ???????? pic.twitter.com/UaCRoYbUKg
महबूबा मुफ्ती जैसे जम्मू कश्मीर के नेताओं ने अपनी चुनावी सभाएं तक रद्द कर दी थीं, लेकिन अब जब एक भारतीय सैनिक, जो खुद कश्मीरी था, आतंकियों का शिकार हुआ है, तो क्या उनके लिए भी ऐसा ही मातम मनाया जाएगा? क्या हिलाल अहमद भट के सम्मान में कोई रैली निकाली जाएगी, या किसी नेता के कार्यक्रम रद्द होंगे? यह सवाल उठता है कि जो लोग आतंकी बुरहान वानी के लिए रैलियां निकालते हैं, क्या वे अब हिलाल अहमद के बलिदान पर भी वैसे ही प्रतिक्रिया देंगे? या फिर उनकी सहानुभूति केवल आतंकियों के लिए ही होती है, न कि उन जवानों के लिए जो उनकी सुरक्षा के लिए अपनी जान देते हैं?
दूर देश में मारे गए एक आतंकी के लिए मातम मनाना और अपने ही वतन के लिए शहीद हुए सैनिक की कुर्बानी को नजरअंदाज करना एक गंभीर सवाल उठाता है। यह घटना न केवल उनकी देशभक्ति पर सवाल खड़ा करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि आतंकियों के प्रति उनकी सहानुभूति कितनी एकतरफा है।
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