चेन्नई: तमिलनाडु विधानसभा में एक बड़ा विवाद उस समय खड़ा हो गया जब मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और विधानसभा अध्यक्ष एम. अप्पावु ने राज्यपाल आरएन रवि की बार-बार की अपील के बावजूद राष्ट्रगान गाने से इनकार कर दिया। गवर्नर ने विधानसभा की परंपरा के अनुसार कार्यवाही की शुरुआत और समाप्ति पर राष्ट्रगान गाने का अनुरोध किया था, लेकिन उनकी अपील को ठुकरा दिया गया। इससे नाराज गवर्नर ने सदन छोड़ दिया।
सोमवार को तमिलनाडु विधानसभा की कार्यवाही शुरू होने पर केवल "तमिल थाई वाझथु" गाया गया, जो राज्य का गान है। इसके बाद गवर्नर ने राष्ट्रगान गाने की अपील की, लेकिन मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष ने इसे सिरे से खारिज कर दिया। गवर्नर आरएन रवि ने इसे संविधान और राष्ट्रगान का अपमान बताया। गवर्नर के दफ्तर से जारी बयान में कहा गया, "यह बेहद शर्मनाक है कि तमिलनाडु विधानसभा ने राष्ट्रगान को सम्मान देने से इनकार कर दिया। संविधान का पालन करना और राष्ट्रगान का सम्मान करना हर नागरिक और संस्थान का कर्तव्य है। लेकिन मुख्यमंत्री और अध्यक्ष की इस हरकत ने तमिलनाडु की जनता और संविधान का अपमान किया है।"
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— RAJ BHAVAN, TAMIL NADU (@rajbhavan_tn) January 6, 2025
गवर्नर के वॉकआउट के बाद मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने बयान जारी कर गवर्नर पर पलटवार किया। उन्होंने गवर्नर के इस कदम को "बचकाना" करार दिया और कहा, "गवर्नर बार-बार विधानसभा की परंपराओं और तमिलनाडु की जनता का अपमान कर रहे हैं। उनका यह रवैया संविधान और लोकतंत्र के खिलाफ है।" उल्लेखनीय है कि, तमिलनाडु में राष्ट्रगान को लेकर यह विवाद पहली बार नहीं हुआ है। डीएमके नेतृत्व वाली सरकार और गवर्नर के बीच इससे पहले भी कई बार टकराव हो चुका है। लेकिन इस बार सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ एक राजनीतिक टकराव है, या फिर डीएमके की "द्रविड़ियन राजनीति" संविधान और राष्ट्र की एकता को चुनौती दे रही है?
इस घटना पर INDIA गठबंधन और खासकर कांग्रेस की चुप्पी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। कांग्रेस, जो खुद को लोकतंत्र की रक्षक और संविधान का प्रहरी मानती है, इस मुद्दे पर कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं दे रही? क्या कांग्रेस डीएमके के राष्ट्रविरोधी रवैये का मौन समर्थन कर रही है? पिछले दिनों डीएमके नेता के "सनातन धर्म को खत्म करने" वाले बयान पर भी कांग्रेस ने चुप्पी साधी थी। अब राष्ट्रगान के अपमान पर भी यही चुप्पी यह संकेत देती है कि कांग्रेस शायद तमिलनाडु में डीएमके की अलगाववादी सोच का समर्थन कर रही है।
क्या तमिलनाडु में राष्ट्रगान से इनकार करना यह संकेत नहीं देता कि डीएमके नेतृत्व संविधान को चुनौती देने की कोशिश कर रहा है? क्या "तमिल थाई वाझथु" को देश के राष्ट्रगान पर प्राथमिकता देकर एक अलग राष्ट्र की अवधारणा को बल नहीं दिया जा रहा? यह सवाल भी उठता है कि कांग्रेस, जो INDIA गठबंधन में डीएमके की सबसे बड़ी सहयोगी है, इस घटना पर क्यों चुप है? क्या यह चुप्पी तमिलनाडु में अलगाववादी सोच को समर्थन देने का संकेत है?
प्रधानमंत्री मोदी ने हमेशा "एक भारत, श्रेष्ठ भारत" की बात की है। लेकिन डीएमके और उसके सहयोगियों का यह रवैया क्या उस सोच के खिलाफ नहीं है? क्या यह भारत की अखंडता और एकता पर हमला नहीं है? सवाल यह है कि इस घटना के बाद देश की जनता चुप रहेगी, या फिर तमिलनाडु जैसे राज्यों में इस तरह की घटनाओं के खिलाफ आवाज उठाएगी।