गुजरात (Gujarat) का द्वारिकाधीश मंदिर (Dwarkadhish Temple) हिंदू धर्म के प्रमुख 4 धामों में से एक है। कहा जाता है यहां हर दिन लाखों भक्त दर्शन करने आते हैं। जी दरअसल ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने यहीं द्वारिका नगरी बसाई थी, जो समुद्र में समा गई। कहते हैं इस मंदिर की ध्वज बदलने की परंपरा काफी रोचक है। जी दरअसल यहां दिन में कई बार मंदिर का ध्वज बदला जाता है। आपको बता दें कि इस ध्वज की बनावट और चिह्न भी काफी विशेष होते हैं और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (Janmashtami 2022) के मौके पर इस मंदिर का ध्वज बदला जाता है। आइए बताते हैं कैसे?
आमतौर पर किसी भी मंदिर में विशेष मौकों पर ही ध्वज बदला जाता है, हालाँकि गुजरात के द्वारिकाधीश मंदिर में रोज 5 बार ध्वज बदला जाता है। कहा जाता है ये ध्वज श्रृद्धालु चढ़ाते हैं और ध्वज चढ़ाने के लिए एडवांस बुकिंग की जाती है। इस मंदिर की मंगला आरती सुबह 7।30 बजे, श्रृंगार सुबह 10।30 बजे, इसके बाद सुबह 11।30 बजे, फिर संध्या आरती 7।45 बजे और शयन आरती 8।30 बजे होती है। जी हाँ और इसी दौरान ध्वज चढ़ाए जाने की परंपरा है। ये ध्वज सिर्फ द्वारका के अबोटी ब्राह्मण ही चढ़ाते हैं। कहते हैं मंदिर में ध्वज चढ़ाने का मौका जिसे मिलता है वो ध्वज लेकर आता है, पहले इसे भगवान को समर्पित करते हैं और इसके बाद अबोटी ब्राह्मण वो ध्वज ले जाकर शिखर पर चढ़ा देते हैं।
ध्यान रहे द्वारकाधीश मंदिर में जो ध्वज लगाया जाता है उसका परिमाण 52 गज का होता है। जी हाँ और इसके पीछे के कई मिथक हैं। कहते हैं कि 12 राशि, 27 नक्षत्र, 10 दिशाएं, सूर्य, चंद्र और श्री द्वारकाधीश मिलकर 52 होते हैं। इसके अलावा ऐसा भी कहा जाता है कि कि श्रीकृष्ण के समय द्वारिका में 52 द्वार हुआ करते थे, इसलिए भगवान को 52 गज का धवज चढ़ाया जाता है। यह ध्वज एक खास दर्जी ही सिलता है और इस ध्वज पर सूर्य-चंद्रमा के प्रतीक बने होते हैं।
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