आज 15 अगस्त है यानी हमारे देश की आज़ादी का दिन जिसे हम बहतु ही धूमधाम से मनाते हैं। लेकिन आज स्वतंत्रता दिवस के साथ साथ श्री कृष्णा जन्मोत्सव भी है यानी आज जन्माष्टमी जो देश में काफी उत्साह के साथ मनाया जाता है।
देश के कोने कोने इसे बहुत ही उत्साह के साथ और हर्षोल्लास के साथ के मनाते हैं। हर शहर में और हर राज्य में इसे अलग अलग तरीके से मनाया जाता है। तो आज हम आपको यही बताने जा रहे हैं किस राज्य में और किस शहर में इसे किस रूप में और कैसे मनाया जाता है। आइये जानते हैं उन शहर के बारे में। इसी के साथ आपको बता दे कि आज श्री कृष्णा का ये 5244वां जन्म उत्सव मनाया जा रहा है।
मथुरा -
मथुरा भगवान श्री कृष्ण का जन्म स्थान है। जन्म के तुरंत बाद ही श्रीकृष्ण को उनके पिता वासुदेव ने गोकुल छोड़ दिया जहाँ उनकी परवरिश हुई। मथुरा में आने जाने वाले मंदिरों में श्री बन्दी बिहारी मंदिर, द्वारकाधीश मंदिर, श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर और प्रसिद्ध इस्कॉन मंदिर शामिल हैं।
श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़े हुए ये सभी तीर्थ स्थल महत्वपूर्ण हैं। यहां बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है जिसे देखने का एक अलग ही आनंद मिलता है।
वृन्दावन (Vrindavan) -
वृन्दावन मथुरा से 15 किमी स्थित है जहाँ श्रीकृष्ण ने अपना बचपन बिताया था। ये पवित्र भूमि से एक है जहाँ भगवान ने रास लीला भी की थी। वहीँ निधि वन भी एक ऐसा मन्दिर है भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है।
इतना ही नहीं ये भी माना जाता है कि निधिवन में आज भी श्री कृष्णा रासलीला करने आते हैं। यहां भी जन्माष्टमी में आपको काफी भीड़ देखने को मिलेगी।
गोकुल (Gokul) -
गोकुल में श्रीकृष्ण का अधिकांश बचपन बिता था और यही वजह है कि यहां जन्मष्टमी को नज़ारा ही अलग होता है जो भक्तों को और भी आनंद देता है।
इसके आस पास जंगल है जिसे कृष्ण में अपने गायों के झुंड को चराने के लिए लिया था। यहां जन्माष्टमी पर लोग दही और हल्दी के साथ खेलते हैं और एक-दूसरे के साथ डूबते हैं। गोकुल में महत्वपूर्ण मंदिर राधा रमन मंदिर और राधा दामोदर मंदिर हैं।
द्वारका (Dwarka) -
द्वारका में भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी किशोरावस्था बितायी थी। बता दे द्वारका का मूल द्वीप गुजरात के तट पर स्थित था, लेकिन यह माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण की मृत्यु के बाद समुद्र में डूब गया है।
द्वारका में एक अन्य मंदिर रुक्मिणी मंदिर है जो भगवान कृष्ण की पत्नी रुक्मिणी को समर्पित है। जन्माष्टमी से पहले के दिनों में भजन और सत्संग किये जाते हैं यह उत्सव पूरी रात पूरी रात तक चलता रहता है और लोग आनंद लेते है।
पुरी (Puri) -
यहां का जगन्नाथ मंदिर काफी प्रसिद्द है। आपको बता दे भगवान जगन्नाथ को, भगवान कृष्ण को अपने भाई-बहनों, बलराम और सुभद्रा के साथ रहने के लिए कहा जाता है।
पूरी में हर साल जन्माष्टमी समारोह जन्माष्टमी के दिन से 17 दिन पहले शुरू होता है। यहां रात में प्रार्थनाएं और भजन आयोजित किये जाते हैं जो बहुत ही खास होता है जिसमे इसके आखिरी दिन में कंस वध भी बताया जाता है।
उडुपी (Udupi) -
दक्षिण भारत में अगर आप जाट हैं तो यहां सबसे खास है उडुपी। डुपी के श्री कृष्ण मठ केंद्र में मुख्य मंदिर और इसके आस-पास के 8 अन्य मठों के साथ एक विशाल मंदिर है। उडुपी में जन्माष्टमी में क्षेत्रीय प्रभाव का एक स्पर्श है।
साथ ही इस खास मौके पर उडुपी की सड़कों पर भगवान श्रीकृष्ण के बचपन की कहानियों को प्रदर्शित करने वाले नाटक का आयोजन किया जाता है। जन्माष्टमी की रात में नृत्य, गायन और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
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