जापान की तरक्की में कैमरा और तकनीक की अहम भूमिका मानी जाती हैं, लेकिन यहां रहने वाली जनता की सुरक्षा के लिए तकनीक को ही पूरा श्रेय नहीं दिया जा सकता. जापान देश को सुरक्षित बनाते है यहां के कड़े कानून, अपराध रोकने वाली नीतियां और देश की शिक्षा. साल 2018 में ग्लोबल पीस इंडेक्स की सूची में जापान नौवें स्थान पर रहा हैं. इस सूची में पहले स्थान पर आइसलैंड था. वहीं इस लिस्ट में 28वें स्थान पर चिली भी शामिल रहा जो इस लिस्ट का लैटिन अमेरिका का पहला देश है.
जापान में ड्रग्स और क्राइम से जुड़ी संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2018 में जापान में एक लाख लोगों में 0.28 दर से हत्याओं की वारदात हुई थीं. वहीं, ब्राजील में साल 2017 में यह दर 30.8 रही. ये आंकड़े तो हालिया वक्त के हैं, लेकिन जापान अगर चैन की नींद सोता है तो उसके पीछे वहां की पुलिस की हथियारों और अपराधों को लेकर जीरो टॉलरेस पॉलिसी का हाथ ज्यादा है और ये तमाम नियम कायदे 200 साल पुराने हैं. जापान में इसे कोबेन कहा जाता है. एक कोबेन में दो से तीन पुलिस वाले रहते हैं. उनका काम होता है लोगों को सुरक्षा से जुड़ी जानकारी देना. अगर किसी नागरिक का कोई सामान गायब हो जाए तो वो कोबेन में इसकी शिकायत कर सकता है. ये पुलिस समाज को सेवा देने का काम करती है. पूरे जापान में 6600 कोबेन हैं.
साइकिल चालकों के लिए बनाए गए कानून के तहत शराब पीकर साइकिल चलाने वालों को जुर्माना और कारावास की सजा भी होती है. हेडफोन के साथ साइकिल चलाना, अपने सेल फोन के साथ काम करना या साइकिल चलाते सामय छाता ले जाना भी मना है. जापान के नागरिक भी इस कानून व्यवस्था का पालन करने में आगे रहते हैं और देश को बेहतर बनाने में योगदान देते हैं. कई घरों और दुकानों में एक स्टिकर लगा होता है जिसपर लिखा होता है 'कोडोमो 110 बैन इन द ले', जिसका मतलब है कि जो बच्चे खतरे में हों वो इस जगह को शेल्टर होम की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके अलावा, प्राथमिक शिक्षा के शुरुआती छह वर्षों के दौरान छात्र एक अलार्म ले जाते हैं जिसे वे खतरनाक स्थिति में बजा सकते हैं.
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