नई दिल्ली: जब भी अंग्रेज़ों से भारत की आज़ादी का जिक्र आता है, तो हर भारतीय का सीना चौड़ा हो जाता है, लेकिन यही आज़ादी लाखों की मौत का कारण भी बनी थी. इसमें भारत माता को अंग्रेज़ों के अत्याचार से मुक्त कराने की जद्दोजहद में लगे स्वतंत्रता सेनानियों का लहू तो शामिल है ही, जिन्होंने हँसते-हँसते कभी फांसी का फंदा, कभी अंग्रेज़ों की गोली तो कभी तोप के मुँह के सामने खड़े होकर अपने प्राणों की आहुति दे दी.
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किन्तु इसके अलावा एक और बड़ा तबका था, जिसने जीवन में आज़ादी कहर बनकर बरसी थी, ये थे पाकिस्तान में रहने वाले हिन्दू और हिंदुस्तान में रहने वाले मुस्लिम. दरअसल, आज़ादी मिलने के एक दिन पहले ही बंटवारे की घोषणा हो चुकी थी, जिसके चलते दोनों देशों से लोग अपने खेत खलिहानों, मवेशियों और घरों को छोड़ एक अनजान रास्ते पर निकल रहे थे, जहां मौत उनका रास्ता देख रही थी, इस भीषण नरसंहार में लाखों लोग मारे गए थे और जिनके जिम्मेदार थे जवाहर लाल नेहरू.
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जी हाँ, जवाहर लाल नेहरू जिन्होंने भारत के प्रधानमंत्री बनने की जिद पकड़ रखी थी, जिसके कारण देश के अलग-अलग टुकड़ों को जोड़ कर एक करने वाले लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल को प्रधानमंत्री बनने से रोक दिया गया. सरदार नहीं चाहते थे की बंटवारा हो, क्योंकि वे रक्तपात से वाक़िफ़ थे और इसीलिए देश की बागडोर अपने हाथ में लेना चाहते थे, लेकिन नेहरू की जिद के आगे गाँधी झुक गए और उन्होंने सरदार से अपनी मांग वापिस लेने के लिए अनशन शुरू कर दिया, कोई अन्य चारा न देखते हुए सरदार ने अपनी मांग वापिस ले ली और जवाहर पीएम घोषित हुए इसके साथ ही बंटवारे पर भी हस्ताक्षर हो गए. आज भी इस बंटवारे की आग की आंच सीमा पर खड़े हमारे जवान महसूस करते हैं और कई बार उसी में झुलस भी जाते हैं.
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