रांची: झारखंड उच्च न्यायालय ने दुमका में अंकिता सिंह को जिंदा जलाए जाने के जघन्य मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए राज्य के पुलिस प्रमुख को तलब करते हुए रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है। झारखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन और न्यायमूर्ति एसएन प्रसाद की बेंच ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा है कि ऐसा लगता है कि राज्य में कानून का राज नहीं रह गया है। उन्होंने कहा कि अपराधियों में प्रशासन और कानून का जरा सा भी खौफ नहीं है।
झारखंड उच्च न्यायालय ने अपनी मौखिक टिप्पणी में इसे जघन्य अपराध करार देते हुए कहा कि इस मामले में पुलिस की कार्रवाई पर भी कई सवाल उठ रहे हैं। स्थानीय DSP नूर मुस्तफा ने अपने एक बयान में अंकिता को जिन्दा जलाने वाले शाहरुख़ हुसैन को मानसिक रोगी बताया था। हाई कोर्ट ने DSP के इस बयान की भी कड़ी आलोचना की है। उच्च न्यायालय ने DGP को आदेश दिया कि पीड़ित परिजनों को सुरक्षा दी जाए। साथ ही, ये भी सामने आया है कि अंकिता सिंह के उपचार में यदि लापरवाही नहीं बरती जाती, तो उसे बचाया जा सकता था। इस सम्बन्ध में भी झारखंड उच्च न्यायालय ने एक सप्ताह में रिपोर्ट मांगी है। पहले राज्य के महाधिवक्ता को पेश होने के लिए कहा गया, उसके बाद DGP को बुलाया गया। DGP ने मुख्य आरोपित की गिरफ़्तारी का हवाला देते हुए कहा कि पुलिस ने एक्शन लिया है। उन्होंने कहा कि तफ्तीश जारी है और राज्य सरकार ने भी फ़ास्ट ट्रैक सुनवाई की सिफारिश की है। साथ ही DGP ने झारखंड उच्च न्यायालय को मृतका को इंसाफ दिलाने का आश्वासन भी दिया।
हालाँकि, कोर्ट ने कहा है कि अब वो खुद इस जाँच की निगरानी करेगा। हाई कोर्ट ने कहा कि इस मामले में लापरवाही बरती गई है, क्योंकि अंकिता सिंह को त्वरित और बेहतर उपचार दिलाने के लिए कोई कोशिश नहीं की गई। उच्च न्यायालय ने अपनी टिप्पणी में कहा कि जल्द उत्तम उपचार के लिए किसी अच्छे अस्पताल में एडमिट कराने को लेकर सरकार ने कोई गंभीरता नहीं दिखाई।
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