रांची: झारखण्ड दिनों-दिन जलविहीन होती जा रहा है, भीषण गर्मी के चलते वहां के झील-तालाब भी सूखते जा रहे हैं. जंगलों की कटाई, भूगर्भ जल का अंधाधुन्द दोहन और तकनीक के अत्यधिक इस्तेमाल से झारखण्ड में भारी जल संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई है. अगर राजधानी रांची की बात करें तो अब से डेढ़-दो दशक पहले जहां महज 50 से 60 फीट की गहराई में लबालब जल की उपलब्धता थी, वहीं आज कई हिस्सों में 300-400 फीट पर भी पानी नहीं है.
रांची में कई इलाके तालाब, जलाशय आदि के ना होने से ड्राई जोन घोषित हो चुके हैं, पठारी क्षेत्र होने से बरसात का जल भी रांची में नहीं ठहर पाता है. रांची की लगभग आधी आबादी को जलापूर्ति करने वाले गोंदा व हटिया डैम के इर्द-गिर्द जहां तेजी से आबादी बढ़ रही है, वहीं हरमू और स्वर्णरेखा नदी का अतिक्रमण कर लिया गया है.
रांची में नई-नई इमारतें बनाने के लिए कई तालाबों, जलाशयों को भर दिया गया है, फ़िलहाल रांची में मात्र 82 तालाब ही बचे हैं, जिसमे से अधिकतर सूखे पड़े हुए हैं. यह स्थिति तब है, जबकि ‘वेटलैंड’ (आद्र भूमि) एरिया के अंतिम छोर से कम से कम 200 मीटर की परिधि में किसी तरह के निर्माण कार्य पर प्रतिबंध है, ऐसे में जैव विविधता का हश्र क्या होगा, यह भविष्य तय करेगा. इस समस्या से बचने के लिए झारखण्ड सरकार ने 'वेटलैंड' का सहारा लिया है. दरअसल ‘वेटलैंड’ सूखे की स्थिति में जहां पानी को बचाने में मदद करते हैं, वहीं बाढ़ के हालात में यह जलस्तर को कम करने व सूखी मिट्टी को बांध कर रखने में मददगार होते हैं.
सरकारी आवास मामला: झारखण्ड में नहीं चलेगा SC का फरमान
रांची: काम्प्लेक्स में लगी आग, सैकड़ों लोग फंसे
चोरी के शक में पीट-पीटकर कर दी हत्या