दृढ़-निश्चय से आत्मबोध ग्रहण करने की यात्रा

दृढ़-निश्चय से आत्मबोध ग्रहण करने की यात्रा
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एक गाँव में एक छोटा बालक रहता था जो निपट मूर्ख माना जाता था. वो अपने गुरु के साथ रहकर अक्षर ज्ञान ले रहा था मगर पंद्रह साल का होने के बावजूद भी कुछ अक्षरों से अधिक नहीं सीख पाया क्योंकि उसका दिमाग बहुत कमजोर था. एक दिन उसके गुरु को किसी जरूरी काम से कहीं जाना था.वह नदी में स्नान करने गए और बालक से बोले, ‘मेरे स्नान करने तक मेरे कपड़े अपने हाथ में पकड़ कर रखना, मिटटी में नहीं रखना’ स्नान के बाद उन्होंने बालक को बुलाया तो वह कपड़े मिट्टी पर गिराकर गुरु के पास दौड़े चले गए. 

कपडे मिटटी में होने से गुरु बहुत क्रोधित हुए, मगर वह लड़का चुपचाप बस उन्हें देखता रहा. गुरु ने हताश होकर उसे एक चॉक पकड़ा दिया और कहा, ‘जब तक मैं वापस न आऊं, यहां बैठकर इस चट्टान पर ‘राम, राम, राम’ लिखते रहो.क्या पता तुम्हें कुछ अक्ल आ जाए.’ फिर वह अपने काम के लिए निकल गए.

लड़के को बहुत बुरा लगा कि उसके गुरु की सभी कोशिशें उस पर बेकार जा रही हैं. वह बस वहां बैठकर ‘राम, राम, राम’ लिखता रहा.  चॉक खत्म हो गई, फिर वह अपनी ऊंगली से लिखता रहा. उसकी उंगली घिस गई और उससे खून बहने लगा, मगर वह बस ‘राम, राम, राम’ लिखता रहा. शाम में जब गुरु आए, तो देखा कि लड़का अब भी ‘राम’ नाम लिख रहा है और उसकी उंगली पूरी घिस गई है. उन्होंने लड़के को उठाकर गले से लगा लिया और रोने लगे, ‘मैंने तुम्हारे साथ यह क्या कर दिया.’

उस दिन के बाद, वह लड़का एक कमाल का कवि बना और उसने एक आत्मज्ञानी प्राणी की तरह जीवन बिताया तथा सैंकड़ों कविताएं लिखीं. इस कहानी से यह ज्ञान प्राप्त होता है कि अगर किसी के अंदर इस तरह का दृढनिश्चय हो, अगर वह पूरी तरह एक दिशा में ध्यान एकाग्र कर दे, तो उस इंसान के लिए कुछ भी असंभव नहीं है.

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