नई दिल्ली: संसद ने 20 दिसंबर को 'एक देश, एक चुनाव' से जुड़े विधेयकों को ध्वनि मत से मंजूरी दे दी। इस विधेयक का उद्देश्य लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ आयोजित करना है। राज्यसभा में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने 129वें संविधान संशोधन विधेयक, 2024 और संघ राज्य क्षेत्र विधि (संशोधन) विधेयक, 2024 को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजने का प्रस्ताव रखा, जिसे स्वीकृति मिल गई। इस समिति में कुल 39 सदस्य होंगे, जिनमें से 12 सदस्य राज्यसभा से और 27 सदस्य लोकसभा से नामित किए गए हैं।
राज्यसभा से शामिल किए गए सदस्यों में भाजपा के घनश्याम तिवाड़ी, भुवनेश्वर कलिता, डॉक्टर के लक्ष्मण, कविता पाटीदार, जदयू के संजय झा, कांग्रेस के रणदीप सुरजेवाला और मुकुल वासनिक, तृणमूल कांग्रेस के साकेत गोखले, डीएमके के पी. विल्सन, आप के संजय सिंह, बीजद के मानस रंजन और वाईएसआर कांग्रेस के विजय साई रेड्डी शामिल हैं। लोकसभा से समिति में नामित सदस्यों में भाजपा के पी.पी. चौधरी, सीएम रमेश, बांसुरी स्वराज, पुरुषोत्तम रुपाला, अनुराग ठाकुर, विष्णु दयाल शर्मा, भर्तृहरि महताब और संबित पात्रा जैसे नेता शामिल हैं। कांग्रेस की ओर से प्रियंका गांधी वाड्रा, मनीष तिवारी और सुखदेव भगत को जगह मिली है। इसके अलावा, सपा, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, टीडीपी, शिवसेना, राकांपा, माकपा और अन्य क्षेत्रीय दलों के भी प्रतिनिधि समिति का हिस्सा बनाए गए हैं।
राज्यसभा की कार्यवाही में मेघवाल ने कहा कि इन विधेयकों का उद्देश्य संविधान के दायरे में रहते हुए चुनाव प्रक्रिया को अधिक व्यवस्थित और प्रभावी बनाना है। हालांकि, विपक्ष ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यह विधेयक संविधान के मूल ढांचे पर हमला करता है और राज्यों की स्वायत्तता को कमजोर कर सकता है। कांग्रेस और अन्य दलों ने इस विधेयक के संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजे जाने की मांग की थी, जिसे बाद में स्वीकार कर लिया गया।
लोकसभा में इस विधेयक को 17 दिसंबर को पेश किया गया था। मत विभाजन के दौरान विधेयक के पक्ष में 263 वोट पड़े, जबकि 198 सदस्यों ने इसका विरोध किया। समिति को अपनी रिपोर्ट आगामी बजट सत्र के अंतिम सप्ताह तक पेश करने के लिए कहा गया है। विधेयक का मुख्य उद्देश्य संसाधनों की बचत और चुनावी प्रक्रिया को सुचारु बनाना है। हालांकि, इस पर अभी भी राजनीतिक दलों के बीच मतभेद बने हुए हैं।
सरकार का कहना है कि,यह पहल देश में संसदीय और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने की दिशा में बड़ा कदम है। इससे न केवल चुनावी खर्चों में कमी आएगी, बल्कि बार-बार चुनाव कराने से होने वाले प्रशासनिक और विकास कार्यों पर पड़ने वाले प्रभाव को भी कम किया जा सकेगा। जबकि विपक्ष इसे संविधान के खिलाफ, संघवाद के खिलाफ और मुसलमानों के खिलाफ बता रहा है।