Movie Review : 'मेन्टल' ही है 'जजमेंटल है क्या ' की कहानी, कंगना-राजकुमार ने फिर जीता दिल

Movie Review : 'मेन्टल' ही है 'जजमेंटल है क्या ' की कहानी, कंगना-राजकुमार ने फिर जीता दिल
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काफी समय से इंतज़ार कर रहे फैंस के लिए फिल्म 'जजमेंटल है क्या' रिलीज़ हो चुकी है. अब ये फिल्म रिलीज़ हुई है तो जानते हैं किस तरह की है ये कहानी. आइये जानते हैं क्या है इस फिल्म में खास. 

कलाकार : राजकुमार राव,कंगना रनौत,अमायरा दस्तूर,सतीश कौशिक,जिमी शेरगिल 
निर्देशक : प्रकाश कोवलामुदी 
मूवी टाइप : Comedy,Drama,Thriller 
अवधि : 2 घंटा 10 मिनट
रेटिंग : 3.5/5

कहानी: फिल्म की कहानी है मानसिक रोग एक्यूट सायकोसिस की शिकार बॉबी (कंगना रनौत) की, जो बचपन में माता-पिता के झगड़े में हुई उनकी मौत के कारण इस बीमारी से घिर जाती है. बीमारी के कारण वह कई बार झूठ और सच के बीच भेद नहीं कर पाती. इस रोग के कारण वह अत्याधिक गुस्से, हेलूसनेशन, इल्यूजन और मूड स्विंग का शिकार हो जाती है. असल में वह एक डबिंग आर्टिस्ट है और साउथ की फिल्मों से लेकर हॉरर फिल्मों तक अलग-अलग किरदारों को अपनी आवाज देती है. डबिंग के दौरान वह कई बार खुद को फिल्म का किरदार मानकर उसी तरह बर्ताव करने लगती है. इसी चक्कर में वह कभी पुलिसवाली बन जाती है, तो कभी हॉरर फिल्मों की हीरोइन. 

इतना ही नहीं, गुस्से में हुई मारपीट के कारण उसे 3 महीने के लिए मेंटल असाइलम में भी भर्ती किया जाता है और समय पर दवाएं लेने की ताकीद की जाती है. उसी दौरान उसके घर में केशव (राजकुमार राव) अपनी पत्नी रीमा (अमायरा दस्तूर) के साथ किराए पर रहने आता है. बॉबी केशव की ओर आकर्षित हो जाती है, मगर साथ में केशव की हरकतें बॉबी को शक में डाल देती हैं. अभी बॉबी, केशव की जासूसी कर ही रही होती है कि एक कत्ल हो जाता है. बॉबी पुलिस अफसर (सतीश कौशिक) और बृजेंद्र काला को यकीन दिलाने की कोशिश करती है कि कातिल केशव ही है, मगर केशव कत्ल का इल्जाम बॉबी पर लगाता है. कत्ल की गुत्थी उलझती जाती है और कहानी में एक नया एक नया ट्विस्ट आता है. 

रिव्यू: निर्देशक प्रकाश कोवलामुदी ने लेखिका कनिका ढिल्लन की दमदार स्क्रिप्ट के साथ पूरा न्याय किया है. फिल्म का फर्स्ट हाफ आपको थ्रिलर, सस्पेंस और डरावने अंदाज में बांधे रखता है. यानि फिल्म देखने पर आप बोर नहीं होंगे. वहीं निर्देशक ने थ्रिल को बढ़ाने के लिए जिस तरह के कलरफुल इमेजेस वाले सेट्स का इस्तेमाल किया है. वहीं सेकंड हाफ की शुरुआत में कहानी थोड़ी खिंच जाती है, मगर नए ट्रैक के साथ यह फिर पकड़ बना लेती है.  मनोरोगी के रूप में कंगना के दिमाग में चलने वाली आवाजों को भी निर्देशक विभिन्न शक्लों का रूप देने में कामयाब रहे हैं. इसके अलावा निर्देशक ने जिमी शेरगिल और कंगना के ट्रस्ट वाले द्रश्य के जरिए मेंटल इलनेस से पीड़ित रोगियों के प्रति मेसेज देने की कोशिश की है. फिल्म में काफी ह्यूमर है जो आपको कभी बोर नहीं होने देगा. बैकग्राउंड स्कोर उम्दा है, मगर कलाईमेक्स का प्रिडिक्टिबल होना अखरता है. निर्देशक उसे दमदार बना सकते थे. 

एक्टिंग : इसमें कोई दो राय नहीं कि फिल्म कंगना की है और बॉबी के किरदार की डर, बेबसी, गुस्से और पागलपन को कंगना ने जुनूनी अंदाज में निभाया है. हमेशा की तरह कंगना की एक्टिंग भी जूनिनी रही जिससे दर्शकों का दिल एक बार फिर जीत सकती हैं. कॉस्टूम से लेकर फेशल हाव-भाव तक वह सभी में अव्वल साबित हुई हैं. उनका अभिनय मेंटल इलनेस से पीड़ित लोगों का हाल बयान करने में सफल साबित होता है. 

वहीं राजकुमार राव कहीं भी उन्नीस साबित नहीं हुए हैं. समर्थ अभिनेता के रूप में केशव के किरदार की विविधता को उन्होंने बनाए रखा है. वहीं कंगना के टाइम पास बॉयफ्रेंड के रूप में हुसैन दलाल मनोरंजन करते हैं. छोटी-सी भूमिका में जिमी शेरगिल राहत देते हैं. इसके अलावा अमायरा ने ठीक-ठाक काम किया है. फिल्म में राइटर कनिका धिल्लन का केमियो भी है.

म्यूजिक : फिल्म में तनिष्क बागची के संगीत में ‘वखरा’ गाना खूब पसंद किया जा रहा है. यह रेडियो मिर्ची टॉप ट्वेंटी के चार्ट में तेरहवें पायदान पर है. इसके अलावा सोशल मीडिया पर भी काफी धूम मचा रहा है. 

क्यों देखें: कंगना और राजकुमार के फैन्स और थ्रिलर फिल्मों के शौकीन यह फिल्म देख सकते हैं. 

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