गीत-संगीत की सुरमयी शाम में तबले व शास्त्रीय तान की जुगलबंदी

गीत-संगीत की सुरमयी शाम में तबले व शास्त्रीय तान की जुगलबंदी
Share:

इंदौर/ब्यूरो। शासकीय संगीत महाविद्यालय धार की ओर से संगीत सभा का आयोजन संगीत मूर्धन्य स्व. पंडित विष्णु नारायण भातखण्डे जी की पुण्यतिथि अवसर पर किया गया था। स्वरस्वती वंदना से कार्यक्रम का आग़ाज़ हुआ। महाविद्यालय के छात्र छात्राओं द्वारा प्रथम प्रस्तुति दी गई। समित मालिक ने धुपद गायन के साथ राग बागेश्री में आलाप एवं धमार की प्रस्तुति दी। बोल रहे नए हो खिलाड़ी भए हो रसियाउसके बाद राग बागेश्री में हीं सूलताल की रचना जिसके बोल नंद नंदन सो लागो मेरो मनवा की प्रस्तुति ने खूब तालियाँ बटोरीं। 

सुभाष देशपांडे ने राग मारू बिहाग में विलंबित एकताल में रसिया जाओना के पश्चात मध्यलय तीन ताल में रचना जागू  में सारी रेना की प्रस्तुति सराहनीय रही।अंत में राग पीलू धुन पर सुभाष देशपांडे द्वारा वायलिन वादन किया गया। मुन्नेखां द्वारा सारंगी वादन किया गया। आरम्भ में अतिथियों द्वारा माँ स्वरस्वती के छाया चित्र पर माल्यार्पण उपरांत समक्ष में दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया। कार्यक्रम के पूर्व प्रेस वार्ता का आयोजन किया गया।संगीत महाविद्यालय प्राचार्य ने बताया कि भातखण्डे का नाम संगीत की दुनिया में सदैव अमर रहेगा। उन्होंने भारतीय संगीत पद्धति को स्वरलिपि दी है। उन्ही की वजह से हमारे संगीत महाविद्यालय में संगीत परंपरा चल रही है। 

प्राचीन काल में गुरु शिष्य परंपरा के तहत यह शिक्षा दी जाती थी। भातखण्डे साहब ने बहुत सारे संगीत कलाकारों को सुना। इसके बाद उन्होंने परंपरा को जीवित रखने के लिए स्वरलिपि की स्थापना की है। उनकी पद्धतियों से हमारा संघ शिक्षा का क्रम चलता आ रहा है। उनकी पुण्यतिथि पर हम कार्यक्रम करते है। प्रेस वार्ता के दौरान शासकीय संगीत महाविद्यालय प्राचार्य कांती तिर्की, ललित कला महाविद्यालय जनभागीदारी समिति अध्यक्ष अतुल कालभवर, संगीत महाविद्यालय के जनभागीदारी समिति अध्यक्ष दीपल खलतकर मौजूद थे।


दरअसल मप्र शासन संस्कृति विभाग के निर्देश पर शासकीय संगीत महाविद्यालय द्वारा शास्त्रीय संगीत का आयोजन किया गया। प्रेस वार्ता में प्राचार्य ने बताया कि धार में संगीत विद्यालय की 1945 में शुरुआत हुई थी। इस विद्यालय से बड़े-बड़े कलाकार निकले हैं।वर्तमान में हमारे यहां 100 विद्यार्थी शिक्षा ले रहे हैं।धार नगरी राजा भोज की नगरी है। पूरे मध्यप्रदेश में आठ महाविद्यालय है। इसमें से एक महाविद्यालय हमारे धार शहर में है। दिल्ली के समित मलिक 26 वर्षाे से निरंतर ध्रुपद की प्रस्तुति दे रहे है। अब तक करीब 250 से 300 मंचों से प्रस्तुति दी है। उन्होंने बताया ध्रुपद पद्धदि 400 वर्षाें से निरंतर चल रही है। हमारे पूर्वजों का  महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जिनकी बदौलत यह घराना कायम रहा है। मैं इस परंपरा की 13 वी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व कर रहा हूं। मेरा सौभाग्य है कि मैं इस समारोह में मुझे भी पुष्पांजलि अर्पित करने का अवसर मिला। उन्होंने बताया सबसे प्राचीनतम गायन शैली ध्रुपद है। यहीं से सारी विधाओं का जन्म हुआ है। ख्याल कहे, ठुमरी कहे या लाइट म्यूजिक कहे। सारे संगीत का जननी ध्रुपद है। हम चाहते हैं यहां पर धार जिले के ज्यादा से ज्यादा बच्चे संगीत शिक्षा का लाभ ले। 

रजनी सिंह होंगी झाबुआ कलेक्टर, तत्काल आदेश पर मिली जिम्मेदारी

एसपी के बाद कलेक्टर पर भी गिरी गाज, सीएम ने दिए हटाने के आदेश

बार संचालक पर लग सकता है जुर्माना, कुछ दिन पहले दो पक्षों में हुआ था विवाद

Share:

रिलेटेड टॉपिक्स
- Sponsored Advert -
मध्य प्रदेश जनसम्पर्क न्यूज़ फीड  

हिंदी न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_News.xml  

इंग्लिश न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_EngNews.xml

फोटो -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_Photo.xml

- Sponsored Advert -