जैसे यूरोप पर मुस्लिमों ने किया कब्जा, कश्मीर में वैसा ही करना चाहता था पाकिस्तान

जैसे यूरोप पर मुस्लिमों ने किया कब्जा, कश्मीर में वैसा ही करना चाहता था पाकिस्तान
Share:

नई दिल्ली: ऑपरेशन जिब्राल्टर 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध का एक प्रमुख और विवादास्पद अध्याय है। यह पाकिस्तान द्वारा भारतीय कश्मीर में घुसपैठ करने की योजना का कोड नाम था, जिसका उद्देश्य कश्मीर घाटी में विद्रोह और अस्थिरता पैदा करना था। पाकिस्तान की योजना थी कि इससे भारतीय शासन को सैन्य और कूटनीतिक नुकसान होगा और कश्मीर में एक बड़े पैमाने पर जन आंदोलन को भड़काया जा सकेगा।

ऑपरेशन जिब्राल्टर का नाम इस्लामिक इतिहास की महत्वपूर्ण लड़ाई "जिब्राल्टर की लड़ाई" के नाम पर रखा गया था। 711 ईस्वी में, उमय्यद खलीफा के सेनापति तारिक बिन जियाद ने स्पेन के जिब्राल्टर में ईसाई राजा रोडेरिक को हराया था। इस विजय ने मुसलमानों को यूरोप में अपना प्रभाव बढ़ाने की शुरुआत की और जिब्राल्टर को एक सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान बना दिया। इसके बाद मुसलमानों ने तेजी से इबेरियन प्रायद्वीप (मौजूदा स्पेन और पुर्तगाल) के बड़े हिस्से को कब्जा कर लिया। इस जीत के बाद इस्लामी सेनाओं ने स्पेन के ज्यादातर हिस्सों पर कब्जा कर लिया और यह क्षेत्र मुस्लिम शासन के अधीन आ गया जिसे अल-अंदलुस के नाम से जाना जाता है।

पाकिस्तान ने भी मुस्लिमों की इसी जीत से प्रेरित होकर कश्मीर पर कब्जा करना चाहता था। पाकिस्तान ने कश्मीर में विद्रोह को प्रोत्साहित करने के लिए अपने विशेष बलों को भेजा। इसका उद्देश्य था कि कश्मीर के मुसलमानों में असंतोष है और अगर उन्हें उकसाया जाए, तो वे भारतीय शासन के खिलाफ विद्रोह करेंगे। लेकिन यह योजना विफल हो गई। कश्मीरी स्थानीय लोगों ने घुसपैठियों का समर्थन नहीं किया और भारतीय सेना ने इन्हें पकड़ने और निष्क्रिय करने के लिए त्वरित कार्रवाई की।

5 अगस्त 1965 को भारतीय सेना ने घुसपैठियों के खिलाफ ऑपरेशन शुरू किया और दो दिनों के भीतर उन्हें कश्मीर घाटी से बाहर खदेड़ दिया। इसके परिणामस्वरूप, पाकिस्तान का पूरा ऑपरेशन ध्वस्त हो गया। पाकिस्तान की योजना की विफलता के कारण भारत ने तेजी से जवाबी कार्रवाई की और पाकिस्तान के खिलाफ कई हमले किए, जिससे यह संघर्ष धीरे-धीरे एक बड़े पैमाने पर युद्ध में बदल गया।

1965 का युद्ध अंततः ताशकंद समझौते के साथ समाप्त हुआ, जो 10 जनवरी 1966 को हुआ था। इस समझौते पर भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए। इस समझौते के तहत, दोनों देशों ने अपने सशस्त्र बलों को 5 अगस्त 1965 से पहले की स्थिति में लाने का निर्णय लिया। भारत पाकिस्तान के अंदर तक घुस गया था, जिससे यह समझौता हुआ।

ऑपरेशन जिब्राल्टर की विफलता ने पाकिस्तान को यह सिखाया कि कश्मीर में विद्रोह भड़काने की उसकी कोशिशें सफल नहीं हो सकतीं, खासकर जब स्थानीय आबादी का सहयोग न हो। इसके बाद, पाकिस्तान ने अपनी रणनीति में बदलाव किया और कश्मीर में अस्थिरता फैलाने के अन्य तरीकों की तलाश की।

जेल में मरा कैदी, तो परिवार को 7.5 लाख देगी केजरीवाल सरकार, शुरू हुआ विरोध

'पहली बार तिरंगा तले वोट डालेंगे जम्मू कश्मीर के लोग..', घाटी में गरजे अमित शाह

आदिवासी शिवानी से सलीम ने किया निकाह, फिर जमीन हड़पकर भगा दिया, झारखंड सरकार मौन

Share:

रिलेटेड टॉपिक्स
- Sponsored Advert -
मध्य प्रदेश जनसम्पर्क न्यूज़ फीड  

हिंदी न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_News.xml  

इंग्लिश न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_EngNews.xml

फोटो -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_Photo.xml

- Sponsored Advert -