अपनी धार्मिक मान्यताओं को दूसरों पर सख्त थोपने के खिलाफ हैं जस्टिस चंद्रचूड़..! धर्मांतरण करने करने वालों के लिए 'नसीहत' है CJI का ये बयान

अपनी धार्मिक मान्यताओं को दूसरों पर सख्त थोपने के खिलाफ हैं जस्टिस चंद्रचूड़..! धर्मांतरण करने करने वालों के लिए 'नसीहत' है CJI का ये बयान
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नई दिल्ली: बीते कुछ सालों से देश में धर्मान्तरण के मामले तेजी से बढ़े हैं। अब तो हालात यहाँ तक पहुँच गए हैं कि, ऑनलाइन गेमिंग एप के जरिए बच्चों के ब्रेन वाश कर उनका धर्मान्तरण कराया जा रहा है। इसका पूरा रैकेट ग़ाज़ियाबाद से पकड़ाया था। इस मामले में पुलिस ने मास्टरमाइंड शाहनवाज़ खान उर्फ़ बद्दो को गिरफ्तार किया था, जिसने ऑनलाइन गेमिंग के जरिए 400 बच्चों का ब्रेनवाश किया था। इसके अलावा, प्यार का झांसा देकर, डरा-धमकाकर या अन्य तरीकों से भी दूसरों पर अपना विश्वास थोपने की कोशिशें होती रहती हैं। दरअसल, किसी के धर्मांतरण की पूरी सोच उस विचार से पैदा होती है, जिसमे दावा किया जाता है कि, ''मेरा ही विश्वास, या मेरा ही ईश्वर सत्य है, बाकी सब का गलत।'' एक बार को व्यक्ति ये भी मान सकता है कि, केवल मेरा ही विश्वास सही है, लेकिन फिर भी उसे अपनी इस सोच को किसी दूसरे पर थोपने की आज़ादी नहीं दी जा सकती। भारत में सदियों से यह मानना रहा है कि, सभी रास्ते ईश्वर को जाते हैं, भले ही उसको मानने वालों के पंथ अलग-अलग क्यों न हो। इसलिए भारत के प्राचीन ग्रंथों में कहीं भी 'धर्मांतरण' का जिक्र नहीं मिलता। लेकिन, अब देश में इसकी घटनाएं आम होने लगी हैं, तो इसपर ध्यान देना आवश्यक हो जाता है। क्योंकि, जब आप अपना विश्वास किसी पर थोपते हैं तो टकराव पैदा होता है, हो सकता है सामने वाले की भी अपने विश्वास में उतनी ही आस्था हो, जितनी आपकी है, इसलिए हर किसी को दूसरे की आस्था का सम्मान करना चाहिए। धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दे पर देश के प्रमुख न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने हाल ही में एक इंटरव्यू दिया है, जिसमे दूसरों पर अपना विश्वास थोपने वालों के लिए स्पष्ट संकेत है। 

सर्वोच्च न्यायालय के CJI वाई चंद्रचूड़ आध्यात्मिकता और धार्मिक प्रवृति के व्यक्ति हैं। कई बार ये सवाल उठता है कि क्या देश के सर्वोच्च न्यायालय के सबसे ऊंचे पद पर आसीन न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के काम बीच उनकी धार्मिक मान्यताएं नहीं आतीं? बतौर जज उन्हें धर्म से संबंधित कई विवादित मामलों में भी निष्पक्ष रूप से सुनवाई कर तथ्यों के आधार पर फैसला सुनाना होता है, तो क्या ऐसे मामलों में उनका धर्म उन पर हावी होता है या फिर भारत का विश्वास ? जो कहता है जहाँ सत्य है, वहीं धर्म है। इस तरह के कई धार्मिक मामलों में वे जज रहे भी हैं और निष्पक्ष फैसला भी सुनाया है। डीवाई चंद्रचूड़ अपनी धार्मिक आस्था और काम के बीच किस तरह संतुलन बनाते हैं?

CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने एक इंटरव्यू में इन सभी सवालों पर बात की है। जब उनसे पुछा गया कि क्या CJI चंद्रचूड़ किसी विशेष ईश्वर में आस्था रखते हैं? तो उन्होंने कहा कि, 'निःसंदेह, मेरे अपने पारिवारिक देवता हैं। मेरे पास अपना पारिवारिक पूजा कक्ष भी है, जिसमें महाराष्ट्र की विशिष्टता नज़र आती है। जब मैं प्रार्थना करता हूं, तो मुझे एक शाश्वत सर्वोच्च सत्ता की अनुभूति होती है, जो ब्रह्मांड की व्यवस्था और मानव की नियति को नियंत्रित करता है।' बता दें कि CJI चंद्रचूड़ कभी भी बिना प्रार्थना किए कभी घर से बाहर नहीं निकलते। उन्हें अपने अनुष्ठान में काफी समय भी लगता है। उनका मानना है कि ऐसा करने से उन्हें न सिर्फ आंतरिक शक्ति और शांति प्राप्त होती है, बल्कि उन्हें इसका लाभ अपने कामकाजी जीवन में भी मिलता है। उन्हें जजों और वकीलों को अदालतों की भीड़ में, तमाम तरह के तर्क और दलीलें सुनकर निष्पक्ष रहकर काम करना पड़ता है। ऐसे में CJI चंद्रचूड़ सुबह-सुबह प्रार्थना के दौरान एकांत में जो वक़्त बिताते हैं, वह उन्हें पूरे दिन शांति और ऊर्जा की अनुभूति कराता है।

CJI डीवाई चंद्रचूड़ दो टूक शब्दों में कहते हैं कि वह अपनी धार्मिक मान्यताओं को किसी दूसरे पर थोपने के पक्ष में नहीं हैं। वह कहते हैं कि, 'किन्तु मैं अपनी धार्मिक मान्यताएं किसी दूसरे पर नहीं थोपता। मेरी धार्मिक मान्यताएं मेरे लिए अत्यंत व्यक्तिगत हैं। मेरे माता-पिता ने भी अपने धार्मिक विश्वास मुझ पर नहीं थोपे, और मैं भी अपने विश्वास किसी पर नहीं थोपता।'  जहां तक काम के बीच में धर्म के आने का प्रश्न है, इस पर CJI चंद्रचूड़ कहते हैं कि, “मैं संविधान और उसके मूल्यों के प्रति समर्पित होकर अपना कार्य करता हूं। जब मैं एक न्यायाधीश के तौर पर काम करता हूं, तो मैं संविधान के मूल्यों को लागू करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हूं। मैं आध्यात्मिकता के संबंध में अपने विचार अपने आसपास और यहाँ तक कि परिवार में भी किसी पर नहीं थोपता। उदाहरण के लिए मेरी पत्नी, पहाड़ों, नदियों, पेड़ों और पक्षियों की सुंदरता यानी 'प्रकृति' में सर्वोच्च सत्ता को देखती है। वह उस तरह की इंसान हैं, तो इसमें भी क्या हर्ज है।' बता दें कि, भारत में प्रकृति को ही मातृशक्ति मानकर पूजा जाता है, इसलिए हमारे यहाँ धरती को 'धरती माता' कहकर सम्मान देने का चलन रहा है। 

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ धार्मिक के साथ-साथ बहुत आध्यात्मिक भी हैं। उन्हें आध्यात्मिकता अपने पिता से विरासत में प्राप्त हुई है। उनके पिता जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ को नींद न आने की समस्या थी। वह कई-कई दिनों तक सो नहीं पाते थे। ऐसे में वह ध्यान योग यानी मेडिटेशन की सहायता से ही वह शांति पाते थे। डीवाई चंद्रचूड़ तो यहां तक कहते हैं कि उनके पिता सिर्फ मेडिटेशन के कारण ही जीवित रहते थे।  

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