श्रीनगर: जम्मू और कश्मीर राज्य जांच एजेंसी (SIA) ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश नीलकंठ गंजू (Justice Neelkanth Ganjoo Murder Case) की हत्या के मामले को सोमवार (7 अगस्त) को, फिर से खोल दिया। बता दें कि, लगभग 34 साल पहले कश्मीरी पंडित जस्टिस गंजू, घाटी में बढ़ते इस्लामिक जिहाद का शिकार हो गए थे, जिसके बाद कश्मीर में एक बड़ा संघर्ष छिड़ गया था और बड़ी संख्या में हिंदुओं को घाटी से भागने के लिए मजबूर कर दिया गया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक, SIA ने रिटायर जज की हत्या के पीछे बड़ी आपराधिक साजिश का खुलासा करने के लिए आम जनता से जानकारी मांगी है।
In order to unearth the larger criminal conspiracy behind the murder of Retired Judge, Neelkanth Ganjoo three decades ago, the State Investigation Agency (SIA) has appealed all persons familiar with facts or circumstances of this murder case to come forward and share any account…
— ANI (@ANI) August 7, 2023
SIA ने कहा है कि, 'तीन दशक पहले सेवानिवृत्त न्यायाधीश, नीलकंठ गंजू (Justice Neelkanth Ganjoo Murder Case) की हत्या के पीछे बड़ी आपराधिक साजिश का पता लगाने के लिए, राज्य जांच एजेंसी (SIA) ने इस हत्या मामले के तथ्यों या परिस्थितियों से परिचित सभी लोगों से आगे आने और ऐसे किसी भी विवरण को साझा करने की अपील की है, जिनसे मामले की जांच पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। एजेंसी ने जानकारी साझा करने के लिए नंबरों के साथ ईमेल ID भी जारी की है। साथ ही एजेंसी ने आश्वासन दिया है कि किसी भी प्रकार की जानकारी लेकर आने वालों की पहचान गुप्त रखी जाएगी। साथ ही, प्रासंगिक जानकारी देने वालों को उचित पुरस्कार दिया जाएगा। इस हत्याकांड से संबंधित किसी भी जानकारी के लिए जनता से 8899004976 या ईमेल sspsia-kmr@jkpolice.gov.in पर संपर्क करने को कहा गया है।
जज नीलकंठ गंजू की हत्या:-
बता दें कि, 1966 से 1968 के बीच, न्यायाधीश गंजू (Justice Neelkanth Ganjoo Murder Case) ने सत्र न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के सह-संस्थापक मकबूल भट के मुकदमे की अध्यक्षता की थी। अगस्त 1968 में, उन्होंने 1966 में पुलिस कांस्टेबल अमर चंद की हत्या के लिए आतंकी मकबूल भट्ट को मौत की सजा सुनाई। सुप्रीम कोर्ट ने 1982 में उस फैसले को बरकरार रखा। इसके दो साल बाद, ब्रिटेन में JKLF के आतंकियों द्वारा राजनयिक रवींद्र म्हात्रे की हत्या के बाद, मकबूल भट्ट को तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई।
इसके पांच साल बाद, यानी 4 नवंबर, 1989 को, JKLF के 3 आतंकियों ने उच्च न्यायालय के न्यायाधीश नीलकंठ गंजू (Justice Neelkanth Ganjoo Murder Case) को उस समय दिनदहाड़े, सरेआम गोली मार दी, जब वह श्रीनगर में उच्च न्यायालय के पास हरि सिंह स्ट्रीट बाजार में थे। अमर चंद हत्याकांड के मुकदमे में शामिल होने के चलते जज गंजू की बेरहमी से हत्या कर दी गई। सत्र न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में उन्होंने अगस्त 1968 में आतंकवादी मकबूल भट को मौत की सजा दी थी। उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन, सेवानिवृत्त न्यायाधीश श्रीनगर के हरि सिंह स्ट्रीट मार्केट में स्थित जम्मू और कश्मीर बैंक की शाखा में गए थे। आतंकियों ने पास से उनपर कई गोलियां चलाईं, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई। उनकी हत्या के बाद, रेडियो कश्मीर पर एक घोषणा की गई थी कि, 'अज्ञात हमलावरों ने श्रीनगर के महाराज बाज़ार में एक पूर्व सत्र न्यायाधीश की गोली मारकर हत्या कर दी है।'
जज गंजू (Justice Neelkanth Ganjoo Murder Case) की हत्या, कुछ ही हफ्तों के भीतर किसी प्रमुख कश्मीरी पंडित की दूसरी हत्या थी। इससे पहले सितंबर में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता टीका लाल टपलू की आतंकियों ने हत्या कर दी थी। टीका लाल टपलू, आतंकियों के तथाकथित 'आजाद कश्मीर' आंदोलन के कट्टर विरोधी थे, और इस अभियान में बलिदान देने वाले पहले कश्मीरी पंडित भी, जिसके बाद अंततः घाटी से कश्मीरी पंडितों का पलायन शुरू हो गया।
कौन था मकबूल भट्ट ?
रिपोर्ट के अनुसार, मकबूल भट एक कश्मीरी आतंकी था, जिसने नेशनल लिबरेशन फ्रंट (NFL) की सह-स्थापना की थी। यह 'आजाद कश्मीर प्लेबिसाइट फ्रंट' से संबंधित एक सैन्य शाखा थी। यही NFL, आगे जाकर आतंकी संगठन जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) का प्रणेता बना, जिसे बाद में गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया। भट ने जम्मू-कश्मीर में आतंकी ऑपरेशन को अंजाम दिया था। दो अधिकारियों की मौत के लिए उस पर मुकदमा चलाया गया और उसे दोषी ठहराया गया। भट को 11 फरवरी 1984 को दिल्ली की तिहाड़ जेल में फाँसी दे दी गई।
भट्ट का जन्म 18 फरवरी 1938 को वर्तमान कुपवाड़ा जिले में हुआ था। अपने कॉलेज के दिनों में, वह मिर्ज़ा अफ़ज़ल बेग के जनमत संग्रह मोर्चा से जुड़ा हुआ था। अगस्त 1958 में, शेख अब्दुल्ला (फारूक अब्दुल्ला के पिता) की गिरफ्तारी के बाद, भट्ट पाकिस्तान चला गया, जहां उसने पेशावर विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और उर्दू साहित्य में एमए किया। 1965 में वह प्रचार सचिव के रूप में आज़ाद कश्मीर जनमत संग्रह मोर्चा में शामिल हुआ। कश्मीर को 'आजाद' कराने की शपथ के साथ, उसने अमानुल्लाह खान के साथ मिलकर AKPF की एक भूमिगत सशस्त्र शाखा की स्थापना की और इसे नेशनल लिबरेशन फ्रंट (NFL) नाम दिया। वह समूह के समग्र समन्वय के लिए जिम्मेदार था।
भट के आतंकी संगठन पर घाटी में CID अधिकारी अमर चंद और यूनाइटेड किंगडम (UK) में भारतीय राजनयिक रवींद्र महात्रे के अपहरण और हत्या का आरोप था। उस पर गंगा नामक इंडियन एयरलाइंस के विमान के अपहरण में शामिल होने का भी आरोप लगाया गया था। अपहर्ताओं ने 36 NFL आतंकवादियों की रिहाई की मांग की थी और विमान को लाहौर ले गए थे। हालाँकि, यात्रियों को रिहा करा लिया गया था, और उसकी कोई मांग पूरी नहीं की गई थी। भट पर तोड़फोड़ और हत्या का मुकदमा चलाया गया। सितंबर 1968 में तत्कालीन सत्र न्यायालय के न्यायाधीश नीलकंठ गंजू (Justice Neelkanth Ganjoo Murder Case) ने उसे दोषी ठहराया और मौत की सजा सुनाई। उनकी कई याचिकाएँ खारिज होने के बाद, भट को 11 फरवरी, 1984 को फाँसी पर लटका दिया गया था।
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